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इतिहास जानना व इससे सीखना जरूरी : मेरी गेरार्ड
रांची : बाइबल के कुड़ुख (उरांव) व मुंडारी में अनुवाद करनेवाले जर्मन मिशनरी फर्दीनंद हाह्न (1846-1910) व डॉ ऑल्फ्रेड नोत्रोट (1837-1924) की वंशज मेरी गेरार्ड और वूलफ्रॉम पीट्ज नोत्रोत ने कहा कि इतिहास की जानकारी रखना व इससे सीखना महत्वपूर्ण है़ वे शनिवार को चर्च हिस्ट्री एसोसिएशन ऑफ इंडिया द्वारा गोस्सनर थियोलॉजिकल कॉलेज सभागार में […]
रांची : बाइबल के कुड़ुख (उरांव) व मुंडारी में अनुवाद करनेवाले जर्मन मिशनरी फर्दीनंद हाह्न (1846-1910) व डॉ ऑल्फ्रेड नोत्रोट (1837-1924) की वंशज मेरी गेरार्ड और वूलफ्रॉम पीट्ज नोत्रोत ने कहा कि इतिहास की जानकारी रखना व इससे सीखना महत्वपूर्ण है़ वे शनिवार को चर्च हिस्ट्री एसोसिएशन ऑफ इंडिया द्वारा गोस्सनर थियोलॉजिकल कॉलेज सभागार में आयोजित सेमिनार में बोल रहे थे़ दोनों अमेरिका से आये है़ं.
कुड़ख में किया अनुवाद
मेरी गेरार्ड ने कहा कि कार्ल हाइनिख फर्दीनंद हाह्न उरांव और असुर लोगों की भाषा-संस्कृति के विद्वान थे़ उन्होंने ही सर्वप्रथम बाइबल के प्रमुख हिस्सों का कुड़ुख में अनुवाद किया था़ समाजसेवा के लिए कुड़ख भाषा सीखने, लोगों की बातें सुनने और शिक्षा व स्वास्थ्य सेवा पर ध्यान केंद्रित किया़ उन्होंने रांची, चाइबासा, लोहरदगा व पुरुलिया में जरूरतमंदों और शोषण के शिकार लोगों के बीच कार्य किया़ कई अस्पतालों की स्थापना की़ लोहरदगा, पुरुलिया और मुज्जफरपुर में कुष्ठ परिवारों के लिए कार्य किया़ तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने उन्हें विशिष्ट सेवा कार्यों के लिए कैसर -ए-हिंद (प्रथम श्रेणी ) सम्मान से नवाजा था़
मुंडारी बाइबल लिखी, बिरसा मुंडा के शिक्षक थे
दूसरे वक्ता वूलफ्रॉम पीट्ज नोत्रोत ने बताया कि डॉ ऑल्फ्रेड नोत्रोट बिरसा मुंडा के शिक्षक रहे़ जब बिरसा मुंडा गिरफ्तार हुए, तब उन्होंने रांची जेल में आकर उनसे मुलाकात भी थी़ डॉ ऑल्फ्रेड नोत्रोट ने मुंडारी व्याकरण तैयार किया़ बाइबल के पुराने व नये नियम का मुंडारी में अनुवाद किया़ उन्होंने बुड़जू (खूंटी), चाइबासा व रांची में गरीबों की सेवा की़ कार्यक्रम का संचालन रेव्ह टीएस सी हंस ने किया़.
इससे पूर्व गोस्सनर थियोलॉजिकल कॉलेज के प्राचार्य रेव्ह एमएम एक्का ने अतिथियों का स्वागत किया़ मौके पर बिशप सीडी जोजो, बिशप डॉ निर्मल मिंज, थियोडोर फायरब्रांट, फादर इमानुएल बारला, फादर अगुस्टीन केरकेट्टा, एलियाजर टोपनो, रेव्ह इदन टोपनो, रेव्ह निरल बागे, रेव्ह नीरज झकमक एक्का, थियोलॉजी के विद्यार्थी व अन्य मौजूद थे़
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