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मनोज कुमार मामले में अफसरों की राय से महाधिवक्ता असहमत

रांची : सहायक अभियंता मनोज कुमार को आइएएस में नियुक्त करने की अनुशंसा मामले में हुई गड़बड़ी पर राज्य के वरीय अधिकारियों और महाधिवक्ता की राय अलग-अलग है. वित्त विभाग और जल संसाधन विभाग सहित कार्मिक सचिव ने आइएएस में नियुक्ति की अनुशंसा के लिए विशेष गोपनीय चारित्री(स्पेशल एसीआर) को आधार माने जाने को गलत […]

रांची : सहायक अभियंता मनोज कुमार को आइएएस में नियुक्त करने की अनुशंसा मामले में हुई गड़बड़ी पर राज्य के वरीय अधिकारियों और महाधिवक्ता की राय अलग-अलग है. वित्त विभाग और जल संसाधन विभाग सहित कार्मिक सचिव ने आइएएस में नियुक्ति की अनुशंसा के लिए विशेष गोपनीय चारित्री(स्पेशल एसीआर) को आधार माने जाने को गलत करार दिया है. हालांकि महाधिवक्ता ने इसे सही माना है. वित्त सचिव ने तो एक साल के नियमित गोपनीय चारित्री के रहते हुए स्पेशल एसीआर लिखवाने काे जालसाजी करार दिया है.

स्पेशल एसीआर के आधार पर मनोज कुमार के नाम की अनुशंसा करने के मामले में जल संसाधन विभाग के प्रधान सचिव सुखदेव सिंह, वित्त विभाग के प्रधान सचिव अमित खरे और कार्मिक सचिव रतन कुमार की राय के बाद इस मामले में महाधिवक्ता की राय मांगी गयी थी.

महाधिवक्ता ने इस पूरे प्रकरण पर विचार करने बाद सरकार को दी गयी अपनी राय में कहा है कि स्पेशल एसीआर को तभी गलत माना जा सकता है, जब उस पर कंट्रोलिंग ऑफिसर का हस्ताक्षर गलत हो. मनोज कुमार के मामले में ऐसा नहीं है. उसके स्पेशल एसीआर पर किये गये कंट्रोलिंग ऑफिसर के हस्ताक्षर पर कोई विवाद नहीं है. विभाग की स्क्रीनिंग कमेटी ने भी इस स्वीकार कर लिया है. इसलिए सरकार पूरे मुद्दे पर विचार के बाद उचित फैसला करे. महाधिवक्ता की इस राय के बाद सरकार ने यह माना है कि मनोज कुमार मामले में महाधिवक्ता ने किसी तरह की अनियमितता नहीं पायी है.

दूसरी तरफ इस मामले की जांच रिपोर्ट में वित्त विभाग के प्रधान सचिव अमित खरे ने स्पेशल एसीआर को आधार मान कर मनोज कुमार के नाम की अनुशंसा करने को गलत माना है.

उन्होंने तो एक साल का नियमित वार्षिक गोपनीय चारित्री रहने के बावजूद उसी अवधि का स्पेशल एसीआर लिखने को जालसाजी करार दिया है. जल संसाधन विभाग के प्रधान सचिव सुखदेव सिंह ने भी अपनी रिपोर्ट में स्पेशल एसीआर को आइएएस में नियुक्ति के लिए अनुशंसा करने को कार्मिक विभाग द्वारा इस सिलसिले में जारी आदेश के खिलाफ माना है.

कार्मिक सचिव रतन कुमार ने अपनी टिप्पणी में यह माना है कि नाम की अनुशंसा करने में गलती हुई थी. इस मामले में तत्कालीन कार्मिक सचिव संतोष सत्पथी ने अपनी टिप्पणी में यह लिखा था कि राज्य सरकार द्वारा अब इस मामले में हस्तक्षेप करना संभव नही है.

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