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अब गैर प्रशासनिक सेवा के लोग भी बनेंगे डीडीसी!

रांची: मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद राज्य सरकार ने कुछ बड़े प्रशासनिक बदलाव की तैयारी कर ली है. योजना विभाग के प्रस्ताव को मंजूरी मिल गयी, तो अब गैर प्रशासनिक सेवा के राजपत्रित (गजटेड) अधिकारी भी उप विकास आयुक्त (डीडीसी) बन सकेंगे. अभी की नियमावली के अनुसार डीडीसी के 18 पद अाइएएस के लिए तथा […]

रांची: मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद राज्य सरकार ने कुछ बड़े प्रशासनिक बदलाव की तैयारी कर ली है. योजना विभाग के प्रस्ताव को मंजूरी मिल गयी, तो अब गैर प्रशासनिक सेवा के राजपत्रित (गजटेड) अधिकारी भी उप विकास आयुक्त (डीडीसी) बन सकेंगे. अभी की नियमावली के अनुसार डीडीसी के 18 पद अाइएएस के लिए तथा छह पद राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के लिए तय हैं. नये प्रस्ताव में जोड़ा गया है कि आइएएस व राज्य प्रशासनिक सेवा सहित अन्य भी डीडीसी बन सकेंगे. यह कयास भी लगाया जा रहा है कि इस अन्य में आइएफएस भी हो सकते हैं.
इधर विभाग ने विभिन्न विभागों के पदाधिकारियों को दिये जाने वाले लघु दंड की प्रकिया भी बदलने की तैयारी कर ली है. पहले प्रतिनियुक्ति पर कार्यरत किसी व्यक्ति को लघु दंड उसका मूल विभाग ही दे सकता था. यानी यदि कोई चिकित्सक यदि श्रम या किसी अन्य विभाग में पदस्थापित है तथा उसपर कुछ अारोप हैं, तो इस स्थिति में उसे लघु दंड उसका मूल विभाग यानी स्वास्थ्य विभाग ही दे सकता था.

पर इसके लिए मुख्यमंत्री की सहमति अावश्यक थी. कैबिनेट से मंजूरी के बाद इस नियम में संशोधन किया गया था. यह निर्णय लिया गया था कि किसी राजपत्रित (गजटेड) पदाधिकारी को लघु दंड देने के लिए मुख्यमंत्री की स्वीकृति की अावश्यकता नहीं होगी. वहीं प्रतिनियुक्ति पर कार्यरत पदाधिकारी को वहीं दंडित करने संबंधी संशोधन भी किया गया था. यानी स्वास्थ्य से श्रम विभाग में प्रतिनियुक्त चिकित्सक को श्रम विभाग ही लघु दंड दे सकता था.

पर इसके लिए विभागीय मंत्री की सहमति जरूरी थी. अब इसमें फिर से बदलाव का प्रस्ताव है. अब इस दंड के लिए संबंधित विभागीय मंत्री की स्वीकृति की भी जरूरत नहीं होगी. प्रस्ताव के अनुसार अब सचिव सीधे किसी पदाधिकारी को लघु दंड दे सकेंगे. जानकार इसके दोनों पहलू की अोर इशारा करते हैं. इस बदलाव के तहत अच्छी बात यह होगी कि भ्रष्टाचार व अन्य मामले में दोषी को दंड देने की प्रक्रिया छोटी व सरल होगी. सचिव सीधे एक्शन ले सकेंगे. इसका दूसरा पक्ष यह है कि इससे कोई पदाधिकारी सचिव के विचारों से इतर स्वतंत्र होकर कुछ लिख-सोच नहीं सकेगा.

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