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लगातार घटता जा रहा है सुवर्णरेखा, हरमू और अन्य नदियों का क्षेत्रफल राज्य के जलाशयों और नदियों का अतिक्रमण

रांची : झारखंड के अधिकतर जलाशयों, नदियों और पानी के स्रोतों पर लगातार अतिक्रमण हो रहा है. नतीजतन राजधानी रांची के तीन बड़े जलाशय समेत सुवर्णरेखा, हरमू और अन्य नदियों का क्षेत्रफल भी लगातार घटने लगा है. राज्य सरकार ने वर्ष 2011 मई में ही पानी के स्रोतों पर हो रहे अतिक्रमण को रोकने और […]

रांची : झारखंड के अधिकतर जलाशयों, नदियों और पानी के स्रोतों पर लगातार अतिक्रमण हो रहा है. नतीजतन राजधानी रांची के तीन बड़े जलाशय समेत सुवर्णरेखा, हरमू और अन्य नदियों का क्षेत्रफल भी लगातार घटने लगा है. राज्य सरकार ने वर्ष 2011 मई में ही पानी के स्रोतों पर हो रहे अतिक्रमण को रोकने और आ‌वश्यक कार्रवाई करने का आदेश दिया था. उस समय तत्कालीन विकास आयुक्त ने हटिया डैम के सूखने के बाबत यह निर्णय लिया था.

इसमें यह कहा गया था कि सरकार की तरफ से नदियों, जलाशयों के कैचमेंट क्षेत्र को विकसित किया जाये और उसे अतिक्रमणमुक्त बनाया जाये. इस दिशा में सरकार की ओर से यथोचित कार्रवाई अब तक नहीं की गयी. फिर से राज्य के 45 जलाशयों में से आधे से अधिक में पानी का स्तर कम हो रहा है. इसमें राजधानी का हटिया जलाशय, आदित्यपुर का सीतारामपुर डैम, सुवर्णरेखा नदी, दक्षिण कोयल और अन्य प्रमुख हैं. इतना ही नहीं सारंडा वन क्षेत्र में खनन की वजह से हो रहे प्रदूषण को भी भयावह बताया गया था.

कई जलाशयों का अस्तित्व भी समाप्त : रांची शहर के कई जलाशयों का अस्तित्व समाप्त हो गया है. इसमें इस्ट जेल रोड स्थित तालाब, हिनू के बाजपेयी पथ स्थित पुराना तालाब शामिल हैं. गुटवा स्कूल के समीप, भुतहा तालाब, कर्बला चौक स्थित तालाब सहित कई तालाबों का अब अस्तित्व नहीं रह गया है. इन तालाबों को भर कर वहां कंस्ट्रक्शन का काम कर दिया गया है. इसी प्रकार हिनू स्थित हिनू नदी के मुहाने को भी अतिक्रमित कर वहां भवन बना दिये गये हैं. हरमू नदी पर सरकार की तरफ से 80 करोड़ से अधिक की लागत से जीर्णोद्धार कार्यक्रम चलाया जा रहा है. नदी के तट का 50 फीसदी से अधिक का क्षेत्र अतिक्रमित हो चुका है. सुवर्णरेखा नदी के उदगम स्थल नगड़ी में भी वहां के पानी को चावल मीलों की ओर से प्रदूषित कर दिया गया है.
हाइकोर्ट के निर्देशों का भी नहीं हो पाया अनुपालन : राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल, झारखंड सरकार और ज्यूडिशियल अकादमी की ओर से प्रकाशित पुस्तक में वंदना सिंह ने भी अतिक्रमण की बातें स्वीकार की है. इसमें झारखंड हाइकोर्ट की ओर से नदी संरक्षण और पर्यावरण संतुलन बनाये रखने के लिए दिये गये आदेशों का जिक्र किया गया है. पुस्तक में कहा गया है कि दे‌वघर जिले में पुनासी डैम की वजह से संताल परगना में ड्राइ जोन की स्थिति बन गयी है.

हाइकोर्ट के निर्देश पर राज्य सरकार ने कंपेंसेटरी एफोरेस्ट्रेशन के लिए 5286 एकड़ जमीन का बाद में अधिग्रहण किया. हाइकोर्ट ने संज्ञान लेने के बाद सरकार से यह पूछा था कि कैसे राज्य के नदियों, जलाशयों की स्थिति खराब हो रही है. सभी संबंधित विभागों से जलाशयों के सूखने और उसे अतिक्रमण मुक्त करने का निर्देश भी दिया गया. ‌वर्ष 2011 में यह कार्यवाही की गयी. इसमें एक निजी कंपनी को सुवर्णरेखा नदी में प्रदूषण फैलाने के बाबत समुचित मुआवजा देने की बातें भी कही गयी थी. यह कहा गया था कि झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद की ओर से मामले की जांच कर मुख्य सचिव को रिपोर्ट सौंपी जाये. खरकई और सुवर्णरेखा नदी को अतिक्रमण मुक्त करने, इसके पानी के केंद्रीय जल आयोग से जांच कराने और दामोदर नदी का प्रदूषण मापने का निर्देश भी सरकार को दिया गया था. राज्य सरकार को नदियों काे संरक्षित करने के लिए कार्य योजना बनाने के निर्देश भी दिये गये थे.

राजधानी के तीनों जलाशय हैं अतिक्रमित
राजधानी के तीनों जलाशयों को सरकार ने अतिक्रमित माना है. इसकी वजह से सरकार ने नये मास्टर प्लान में जलाशयों को अतिक्रमण मुक्त करने के लिए कैचमेंट एरिया के 20 मीटर तक किसी भी तरह का निर्माण नहीं करने का निर्णय लिया है. जानकारी के अनुसार 48 वर्ग किलोमीटर में फैले हटिया डैम में लगातार दूसरी बार पानी का स्तर कम हो गया है. इसके कैचमेंट एरिया में अतिक्रमण और अन्य गतिविधियों की वजह से पानी कम हो रहा है. कमोबेश यही स्थिति गोंदा जलाशय की है. यह 9.44 वर्ग किलोमीटर में फैला है. इसके 20 फीसदी हिस्से में अतिक्रमण होने की बातें सरकार भी स्वीकारती है. रुक्का डैम सुवर्णरेखा नदी के कैचमेंट में 717 वर्ग किलोमीटर में फैला है. इसे भी अतिक्रमण से बचाने की सरकार के पास कोई योजना नहीं है.

अब रूपारेल, अरवारी, सारसा, भगानी व जहाजवाली नदियों में रहता है सालभर पानी
रांची. झारखंड के विभिन्न जिलों में पेयजल व सिंचाई का संकट है. राज्य में बहनेवाली अधिकतर नदियां बरसात के बाद सूखने लगती हैं. इस बार राज्य में सुखाड़ का असर है. समय पर बारिश नहीं हुई. फसलें नष्ट हो गयीं. वहीं राजस्थान की स्थिति दूसरी है. हमारी नदियों की ही तरह राजस्थान की कई नदियां सूखी थीं. इसमें रूपारेल, अरवारी, सारसा, भगानी अौर जहाजवाली नदियां शामिल हैं. अब इन नदियां में सालोंभर पानी रहता है. पानी का बहाव भी रहता है. यह ऐसी अनोखी व सच्ची घटना है, जिसे राजस्थान के राजेंद्र सिंह ने कर दिखाया है. अकेले नहीं, स्थानीय लोगों की सहायता से.

राजस्थान के भीखमपूरा स्थित अपनी गैर सरकारी संस्था तरुण भारत संघ की सहायता से राजस्थान के एक हजार से अधिक गांवों को पानीदार बनानेवाले राजेंद्र सिंह को इस भगीरथ प्रयास के लिए वर्ष 2001 में रमण मैग्सेसे अवार्ड मिला. वर्ष 2015 में स्टॉकहोम वाटर प्राइज. उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के रहनेवाले राजेंद्र सिंह ने स्थानीय लोगों से जलछाजन व जल संवर्द्धन सीखा. फिर लोगों के सामूहिक प्रयास से इसे एक अभियान का रूप दिया. जल की अविरल धारा का संबंध पर्यावरण व पारिस्थितिकी से भी है. इसके लिए उन्होंने जन जागरूकता लायी. राजेंद्र सिंह ने कुछ साधुअों के साथ कई यात्रा व पदयात्राएं भी की हैं.
इस प्रकार जीवित हुई मृत नदियां
राजस्थान के ग्रामीणों ने राजेंद्र सिंह व उनकी संस्था तरुण भारत संघ के सहयोग से वर्ष 1985 से लेकर 2007 तक में सवई माधोपुर, भरतपुर, अलवर, दौसा व करौली जिले में मिट्टी व पत्थर के 8,600 चेक डैम बना डाले. राजस्थान में इन्हें जोहाड कहा जाता है. इन्हीं जोहाड के कारण राजेंद्र सिंह को लोग राजस्थान में जोहाडवाले बाबा भी कहते हैं. लगभग 6,500 वर्ग किमी में फैले इन जोहाड (चेक डैम) के सहारे पानी एेसा रुका कि 1,068 गांवों को तो पानी मिला ही, साथ ही दशकों से सूखी पांच नदियां भी फिर से बहने लगी. अरवारी नदी का बहना तो खुद राजेंद्र सिंह के लिए भी चमत्कार से कम नहीं था. इसके उदगम स्थल सहित इसके कैचमेंट एरिया में जब जोहाड (चेक डैम) की संख्या 375 पहुंच गयी, तो यह नदी अपने आप बहने लगी.
सामूहिक सहयोग से होता है बड़ा काम
लोगों के सामूहिक प्रयास व सहयोग का यह ज्वलंत उदाहरण है. पानी रोकने सहित इसे बचाने के प्रयास भी राजस्थान में खूब हुए. ग्रामीणों ने अपने स्तर से एक अरवारी (नदी) संसद का गठन किया. इसमें 72 गांवों के प्रतिनिधि शामिल थे. अरवारी संसद ने पानी व इसके इस्तेमाल को लेकर 11 कानून बनाये. सिर्फ भूमिहीन किसानों को ही नदी से सीधे पानी लेने की इजाजत दी गयी. निर्धारित किया गया कि गांव के लोग गन्ने की खेती नहीं करेंगे. भैंसे कम पालेंगे, क्योंकि इसमें ज्यादा पानी खर्च होता है. जल संरक्षण के लिए, क्या ये सारे प्रयास झारखंड में भी दोहराये जायेंगे.

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