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रेन वाटर हार्वेस्टिंग हो सकता है बेहतर विकल्प
जल ही जीवन है. मनुष्यों के साथ-साथ जीव-जंतुअों के लिए भी पानी का महत्व कम नहीं है. जल बिना जीवन की कल्पना ही बेकार है. झारखंड में वर्षा का वार्षिक आैसत 1200 मिलीमीटर है. अगर आंकड़ों में देखें तो यह जरूरत से काफी अधिक है, लेकिन यह पानी बेकार चला जाता है. इसके पीछे कुछ […]
जल ही जीवन है. मनुष्यों के साथ-साथ जीव-जंतुअों के लिए भी पानी का महत्व कम नहीं है. जल बिना जीवन की कल्पना ही बेकार है. झारखंड में वर्षा का वार्षिक आैसत 1200 मिलीमीटर है.
अगर आंकड़ों में देखें तो यह जरूरत से काफी अधिक है, लेकिन यह पानी बेकार चला जाता है. इसके पीछे कुछ भाैगोलिक परिस्थितियां कारण हैं, तो कुछ मानव निर्मित. इस कारण वर्षा जल से भूमिगत जल का रिचार्ज नहीं हो पा रहा है. अब हालत यह है कि सतही जल की कमी की वजह से भूमिगत जल का बड़े पैमाने पर दोहन होने लगा है.
इस कारण राज्य में पेयजल संकट की स्थिति पैदा हो रही है. झारखंड में भूमिगत जल सीमित है, उस भंडार को खत्म होने से बचाने के लिए सभी को सोचना पड़ेगा. शहरी क्षेत्रों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग को विकल्प माना जा रहा है. इसे अब अनिवार्य बनाने की जरूरत महसूस की जाने लगी है. इस मुद्दे पर राज्य के जल वैज्ञानिक व भू-गर्भ निदेशालय के पूर्व निदेशक एसएलएस जगेश्वर से बातचीत की गयी.
रांची : राज्य में सतही जल अथवा भूगर्भ जल की रिचार्ज व पूर्ति वर्षा जल से होती है. राज्य में वर्षापात का वार्षिक आैसत 1200 मिली मीटर है, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर इसकी आैसत 800 मिली मीटर है. भाैगोलिक स्थिति के कारण हमारे राज्य में 75 से 80 प्रतिशत वर्षा जल बह कर बेकार हो जाता है. निचले सतहों में चला जाता है, जहां से वह समुद्र में मिल जाता है.
झारखंड में वर्षा पर्याप्त मात्रा में होती है, फिर भी हमलोग पानी का संकट झेलते हैं. यहां जल समस्या विकराल होती जा रही है. यदि अभी से ठोस कदम नहीं उठाया गया, तो यह भविष्य का सबसे बड़ा संकट होगा. ग्रामीण इलाकों से अधिक राज्य के शहरी क्षेत्रों में संकट बढ़ता जा रहा है. शहरी क्षेत्रों में जलस्तर तो नीचे जा ही रहा है, सतही जल का संचयन भी कम हो गया है.
क्लाइमेट चेंज की वजह से वर्षा प्रभावित हो रही है. कम समय में अधिक तीव्रता से हो जानेवाली बारिश से भू गर्भ जल का पुनर्भरण एवं जल क्षेत्रों में सतही जल का संचयन नहीं हो पा रहा है. रांची में नवंबर-जनवरी में ही पानी की राशनिंग करनी पड़ रही है, क्योंकि बरसात तक पीने का पानी जलाशय में उपलब्ध नहीं है. साथ ही जलग्रहण क्षेत्र, कैचमेंट एरिया में अतिक्रमण हो गया है. उसमें बारिश के पानी जाने के अधिकतर रास्ते बंद हो गये है. डैम की स्टोरेज कैपासिटी कम हो गयी है.
पेयजल व स्वच्छता विभाग कुछ भी कहे, लेकिन 60-65 प्रतिशत घरेलू उपयोग भू गर्भ जल पर ही निर्भर है. शहर दोहरी समस्या से जूझ रहे हैं. शहर कंक्रीट के जंगल में तब्दील हो रहे हैं. इससे भू-गर्भ जल के पुनर्भरण के रास्ते भी बंद हो रहे हैं. जिस अनुपात में जमीन के अंदर से पानी निकाला जा रहा है, उसी अनुपात में उसका पुनर्भरण नहीं हो रहा है. ग्रामीण इलाकों में नेचुरल रिचार्ज पिट है. खदान इलाकों में शुद्ध पेयजल की समस्या है.
भारतीय पठार का हिस्सा होने के कारण झारखंड में भू-गर्भ जल का संधारण करनेवाली संरचनाअों का पूर्णत: अभाव है. गंगा-सिंधु नदी बेसिन क्षेत्र में भूगर्भ जल के संधारण के लिए सैकड़ों संरचनाएं (एक्यूफर) माैजूद है. लगभग 40000 फीट तक माैजूद है. वहीं झारखंड में प्रकृति ने हवा व माैसम के प्रभाव से ऊपरी सतह (बेडर्ड जोन) का निर्माण किया है, जो भू-गर्भ को संधारित करनेवाली संरचनाअों की तरह काम करता है.
जिनकी गहराई 20 फीट से लेकर 110-120 फीट तक है. इसी जोन में कुंए, हैंडपंप का निर्माण किया जाता है. इसके अतिरिक्त पठारी क्षेत्र में फ्रैक्चर्स से पानी भरता है. वहां से भी पानी का दोहन हो रहा है. झारखंड में भू-गर्भ जल सीमित मात्रा में है. उसका भी पुनर्भरण शहरी क्षेत्रों में रुक गया है. अति दोहन से गंभीर संकट उत्पन्न होनेवाला है.
क्या हो सकता है
बारिश के पानी को रोकना आैर रेन वाटर हार्वेस्टिंग कर भू-गर्भ जल को रिचार्ज करने की योजनाअों पर काम करना होगा. ग्रामीण इलाकों में जगह-जगह जलाशय, चेक डैम, कुंआ का निर्माण बड़े पैमाने पर किया जाये. नदियों से बह कर जानेवाले पानी को कैसे बचायें, इस पर विचार हो तथा नदियों को जोड़ने पर काम शुरू किया जाये.
शहरी क्षेत्रों के दो मंजिला घरों की छतों पर, कंपाउंड, सड़क, नाली से बहकर जानेवाले बारिश के पानी को रिचार्ज पिट के माध्यम से जमीन के अंदर डाला जाये. इससे भू-गर्भ जल का पुनर्भरण संभव है. पानी के मामले में अब लोगों को अपनी मानसिकता बदलने की जरूरत है.
रेन वाटर हार्वेस्टिंग से होगा लाभ
रेन वाटर हार्वेस्टिंग से भू-गर्भ जल का पुनर्भरण किया जाता है. यह सरल माध्यम है. इसका तकनीक भी उपलब्ध है. रांची शहर में 200 से अधिक स्थानों पर बारिश के पानी को रेन वाटर हार्वेस्टिंग तकनीक से रिचार्ज पिट के माध्यम से जमीन के अंदर डाला जाता है. भू-गर्भ जल भंडार में वृद्धि होती है आैर जल स्तर के गिरावट पर रोक लगता है. भू-गर्भ जल की गुणवक्ता में सुधार होता है. जल जमाव वजल भंडार के प्रदूषण पर नियंत्रण पाया जा सकता है. मिट्टी के कटाव पर भी रोक लगती है.
राजभवन में हैं 11 रेन वाटर हार्वेस्टिंग संरचनाएं
राजभवन परिसर में बारिश के पानी से भू-गर्भ जल को रिचार्ज करने के लिए 11 रेन वाटर हार्वेस्टिंग संरचनाअों का निर्माण वर्ष 2011 में किया गया था. इससे राजभवन परिसर में जल की समस्या का काफी हद तक समाधान हो गया है.
भू-गर्भ जल निदेशालय के तत्कालीन निदेशक एसएलएस जगेश्वर ने संरचनाअों का निर्माण कराया था, जिसके लिए उन्हें राज्यपाल ने प्रशस्ति पत्र प्रदान किया था.
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