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16 उग्रवाद प्रभावित जिलों में पानी की पाइपलाइन नहीं

रांची : चापनल ही ग्रामीण क्षेत्रों का मुख्य पेयजल स्रोत है. राज्य में चापानलों की कुल संख्या 4.04 लाख है. यह संख्या राष्ट्रीय औसत से अधिक है. इतनी बड़ी संख्या में चापानल होने के बाद भी ग्रामीण क्षेत्रों में पानी की परेशानी है. दरअसल, झारखंड में भूमिगत जल लगातार चापानलों की पहुंच से दूर होते […]

रांची : चापनल ही ग्रामीण क्षेत्रों का मुख्य पेयजल स्रोत है. राज्य में चापानलों की कुल संख्या 4.04 लाख है. यह संख्या राष्ट्रीय औसत से अधिक है. इतनी बड़ी संख्या में चापानल होने के बाद भी ग्रामीण क्षेत्रों में पानी की परेशानी है. दरअसल, झारखंड में भूमिगत जल लगातार चापानलों की पहुंच से दूर होते जा रहे हैं.
चापानलों की स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अप्रैल 2015 से अब तक लगभग एक लाख चापानलों को चालू करने के लिए मरम्मत की जरूरत पड़ी. भूमिगत जल का स्तर नीचे जाने की वजह से लगभग 15 हजार चापानल मृत हो गये. इन सबके अलावा भी 30 हजार से अधिक चापानलों से पानी नहीं आ रहा है. कमो-बेश यही हाल कुओं का भी है. ठंड के मौसम में ही कुएं सूखते जा रहे हैं.
चापानल नहीं, अब पाइप लाइन से ही मिलेगा पानी : राज्य में चापानलों की बड़ी संख्या और लगातार गिरते जल स्तर की वजह से राज्य सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में पाइपलाइन के जरिये ही पानी पहुंचाने की योजना बनायी है. नये चापानलों को लगाने की योजना बंद कर दी गयी है. अब राज्य में अत्यावश्यक होने पर ही चापानल लगाने की अनुमति प्रदान की जाती है.
गुजरे एक वर्ष में अपवादों को छोड़ कर कोई नया चापानल नहीं लगाया गया है. ग्रामीण जलापूर्ति योजना के रूप में सरकार ने गांवों तक पाइपलाइन के जरिये पानी पहुंचाने की वृहत योजना आरंभ की है. इन योजनाओं से पांच लाख से अधिक लोगों के लाभान्वित होने का अनुमान लगाया गया है. हालांकि जलापूर्ति योजना को पूरी करना सरकार के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रही है.
अतिक्रमण से खत्म होने के कगार पर राज्य की नदियां
राज्य में जलसंकट के प्रमुख कारणों में एक अतिक्रमण भी है. नदियों के रास्ते में किये गये अवैध निर्माण ने उनको विलुप्त होने के कगार पर पहुंचा दिया है.
नदियों के किनारे पर कभी दिखायी देनेवाली हरियाली की जगह अब कच्चे-पक्के मकान दिखने लगे हैं. राज्य भर के शहरों और आसपास बहनेवाली कई नदियां अब केवल नाला बन कर रह गयी हैं. अतिक्रमण के कारण नदियों का उद्गम स्थल भी अब जनवरी में ही सूख जा रहा है. अतिक्रमण ने नदियों की गहराई को भी पाट दिया है.

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