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जेपी आंदोलनकारियों को लाभ मिलना संदिग्ध
राज्य भर से आये हैं 1337 आवेदन जिलों से नहीं मिले पुख्ता कागजात संजय रांची : राज्य के जेपी आंदोलनकारियों को सम्मान सहित मासिक पेंशन का लाभ मिलने में संदेह है. इसका कारण संबंधित लोगों के जेल जाने के पुख्ता कारणों का पता नहीं चल पाना है. आंदोलनकारी होने संबंधी लाभ पाने के लिए आवेदन […]
राज्य भर से आये हैं 1337 आवेदन
जिलों से नहीं मिले पुख्ता कागजात
संजय
रांची : राज्य के जेपी आंदोलनकारियों को सम्मान सहित मासिक पेंशन का लाभ मिलने में संदेह है. इसका कारण संबंधित लोगों के जेल जाने के पुख्ता कारणों का पता नहीं चल पाना है. आंदोलनकारी होने संबंधी लाभ पाने के लिए आवेदन देने की अंतिम तिथि 16 नवंबर 2015 तक राज्य भर से 1337 लोगों ने अावेदन दिये हैं.
गौरतलब है कि सरकार ने जेपी आंदोलनकारियों या उनकी पत्नी को विभिन्न मानकों के आधार पर सम्मान सहित 2500 से पांच हजार रुपये तक मासिक पेंशन देने का निर्णय लिया है.
दरअसल सरकार ने जेपी के नेतृत्व में 18 मार्च 1974 से 21 मार्च 1977 की अवधि में प्रजातंत्र का अस्तित्व बचाने तथा जनता के मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए हुए आंदोलन में शरीक लोगों को चिह्नित करने का काम झारखंड-वनांचल आंदोलनकारी चिह्नितीकरण आयोग को दिया है.
आयोग ने जेपी आंदोलनकारियों से उनके आंदोलन में शामिल होने के प्रमाण सहित आवेदन मांगे थे. आंदोलनकारियों को अपने आवेदन के साथ मेंटेनेंस अॉफ इंटरनल सिक्यूरिटी एक्ट (मीसा) तथा डिफेंसअॉफ इंडिया रूल (डीआइअार) के तहत छह माह या इससे अधिक समय तक जेल में बंद रहने संबंधी प्रमाण पत्र भी देने थे.
इधर इस मामले में यह पेंच आ गया है कि मीसा या डीआइअार के तहत बंद होने संबंधी प्रमाण पत्र तो जेलों से मिले हैं, पर इससे यह साबित नहीं होता कि वे जेपी आंदोलन में ही जेल गये थे.
क्योंकि ये दोनों एक्ट तब आंतरिक सुरक्षा के कई पहलुअों पर लागू होते थे. अायोग ने अांदोलनकारियों से जुड़े कागजात उपायुक्तों से मांगे, पर अब तक किसी जिले से पुष्ट कागजात नहीं मिले हैं. यह भी संदेहास्पद है कि 70 के दशक के कागजात जिलों में उपलब्ध हैं भी या नहीं. ऐसी स्थिति में आयोग आवेदनकर्ताअों को पक्के तौर पर आंदोलनकारी नहीं मान सकता. अब सरकार अधिसूचना में फेरबदल कर ही रास्ता निकाल सकती है.
अायोग को भंग कर परामर्श समिति बने
झारखंड-वनांचल आंदोलनकारी तथा जेपी आंदोलनकारी चिह्नितीकरण अायोग के अध्यक्ष रिटायर्ड जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद का मानना है कि अब अायोग को भंग कर देना चाहिए. क्योंकि आयोग ने तथ्य व कागजात के अाधार पर झारखंड-वनांचल अांदोलनकारियों को चिह्नित कर लिया है. हजारों आवेदन एेसे हैं, जिनकी पुष्टि पुख्ता कागजात व प्रमाण के अभाव में अब संभव नहीं. उधर जेपी आंदोलनकारियों की पहचान में भी पुख्ता प्रमाण संबंधी अड़चन है.
एेसे में अायोग का बने रहना फिजुलखर्ची है. जस्टिस प्रसाद ने प्रभात खबर से कहा कि सरकार चाहे, तो बिहार की तर्ज पर कुछ सक्षम सरकारी या गैर सरकारी कर्मियों की एक स्थायी परामर्श समिति बना सकती है. एेसे आवेदन सतत अाते रहते हैं. यदि प्रमाण व तथ्य हो, तो समिति इन्हें बतौर आंदोलनकारी चिह्नित कर सकती है.
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