राज्य में विधायक फंड से योजनाओं को क्रियांवित करने का अलग नियम है. 16 लाख तक की विधायक और मुख्यमंत्री विकास योजना पर पीडब्ल्यूडी कोड लागू नहीं है. सरकार ने विधायकों की अनुशंसा पर क्रियांवित की जानेवाली योजनाओं को इससे मुक्त रखा है. विधायकों के लिए बने नियम में उन्हें अभिकर्ता चुनने का अधिकार है. इससे कनीय अभियंता विधायक योजना में ठेकेदार की भूमिका निभाते हैं, जबकि उनकी नियुक्ति विकास कार्यों पर नजर रखने और किये गये काम के अनुरूप उसे मापी पुस्तिका(एमबी) में दर्ज करने के लिए हुई है.
सिर्फ इतना ही नहीं, विधायक योजना में कनीय अभियंता ही काम का प्राक्कलन बनाने, एमबी लिखने और अपने ही काम की गुणवत्ता सही करार देने का काम करते हैं. विधायक योजना की लागत राशि कनीय अभियंता को बतौर अग्रिम काम से पहले ही मिल जाती है. कागजी तौर पर अभिकर्ता तो कनीय अभियंता होते हैं, लेकिन काम करनेवाला कोई और होता है. इससे विधायक फंड और मुख्यमंत्री विकास योजना के नाम पर की गयी अग्रिम निकासी (एसी बिल) के खर्च का हिसाब मिलना(डीसी बिल) मुश्किल हो जाता है. डीसी बिल के रूप में वाउचरों का होना आवश्यक है, पर सरकार ने मान लिया है कि वर्ष 2009 से पहले के विधायक फंड और मुख्यमंत्री विकास योजना के 101 करोड़ के खर्च का वाउचर जुटाना मुश्किल है, इसलिए सरकार ने मापी पुस्तिका को आधार मान कर महालेखाकार को इस राशि के खर्च का हिसाब देने की योजना बनायी है. इससे असमंजस की स्थिति पैदा हो गयी है, क्योंकि महालेखाकर कार्यालय बिना वाउचर के किसी भी तरह का डीसी बिल स्वीकार नहीं करता है. सरकार ने वर्ष 2009-10 के बाद से अब तक का भी 442.42 करोड़ रुपये का डीसी बिल महालेखाकार को नहीं दिया है. इसमें विधायक फंड की राशि 295.80 करोड़ और मुख्यमंत्री विकास योजना का 146.62 करोड़ रुपये शामिल है.