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मजबूत होते गये हैं जुल्म और शोषण करने वाले : डॉ बीपी केशरी

मजबूत होते गये हैं जुल्म और शोषण करने वाले : डॉ बीपी केशरीफोटो राज- ‘विस्थापन और जनांदोलन’ का लोकार्पण, कई साहित्यकार व आंदोलनकारी जुटेसंवाददाता रांचीझारखंडी चिंतक डॉ बीपी केशरी ने कहा कि आम आदमी की तकदीर में खुशहाली लाने की तमाम कोशिशें हुई हैं, पर जुल्म और शोषण करने वाले लगातार मजबूत हुए है़ं दलित […]

मजबूत होते गये हैं जुल्म और शोषण करने वाले : डॉ बीपी केशरीफोटो राज- ‘विस्थापन और जनांदोलन’ का लोकार्पण, कई साहित्यकार व आंदोलनकारी जुटेसंवाददाता रांचीझारखंडी चिंतक डॉ बीपी केशरी ने कहा कि आम आदमी की तकदीर में खुशहाली लाने की तमाम कोशिशें हुई हैं, पर जुल्म और शोषण करने वाले लगातार मजबूत हुए है़ं दलित व कमजोर तबके ज्यादा विवश होते जा रहे है़ं आजादी के बाद जो स्थित सामने आयी है, वह सुखद नहीं है़ विकास के नये मॉडल को बदलने की जरूरत है़ ‘विस्थापन और जनांदोलन’ में विकास के इस मॉडल के दुष्परिणाम नजर आते है़ं एक नये देशज मॉडल की जरूरत रेखांकित होती है़ वह शनिवार को विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन की पुस्तक ‘विस्थापन एवं जनांदोलन’ के लोकार्पण के मौके पर बोल रहे थे़ कार्यक्रम का आयोजन सत्यभारती सभागार में हुआ़ प्रो मालंच घोष ने कहा कि एमओयू से विस्थापन और गरीबी बढ़ती जाती है़ फादर स्टेन स्वामी ने ‘जमीन जिसकी, खनिज उसका’ से जुड़े सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की जानकारी दी़ पत्रकार फैसल अनुराग ने पुस्तक की समीक्षा की़ इस मौके पर सीपीआइ के केडी सिंह, त्रिदिब घोष, शेषनाथ वर्णवाल, मुन्नी कच्छप, जीतन मरांडी समेत काफी संख्या में लोग मौजूद थे़ कार्यक्रम के दौरान डाॅ बीडी शर्मा को श्रद्धांजलि भी दी गयी़ पुस्तक में ‘साम्राज्यवादी विकास मॉडल में अंतर्निहित विस्थापन’, ‘विकास का बदसूरत चेहरा- औद्योगिक परियोजनाओं से विस्थापन’, ‘प्राकृतिक संपदा की साम्राज्यवादी लूट और विस्थापन’, ‘भारी तबाही और विस्थापन का सबब बने बांध’, ‘पर्यावरण के बिगड़ने का कारण साम्राज्यवादी विकास मॉडल’, ‘शहरी सौंदर्यीकरण- विस्थापन की दास्तान’, विनाश, वंचना के खिलाफ आंदोलनरत जनता, ‘आदिवासी भाषा और संस्कृति का सवाल’, ‘महिलाओं की गुलामी को गहराता विस्थापन’ , ‘साम्राज्यवादी विकास मॉडल में अंतर्निहित विस्थापन’ , ‘जनांदोलन पर सरकारी जुल्मो सितम’ और ‘संसदीय राजनीति बनाम जनांदोलन की वैकल्पिक राजनीति’ खंड में आलेख संग्रहित है़ं पुस्तक का संपादन केएन पंडित, अजय कुमार, दामोदर तूरी, अरुण ज्योति व जीतन मरांडी ने किया है़ 352 पृष्ठ की इस पुस्तक की कीमत 225 रुपये है़

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