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झारखंड आंदोलन के संरक्षक होरो स्वयं उपेक्षित रहे

झारखंड आंदोलन के संरक्षक होरो स्वयं उपेक्षित रहेएम इलियासहोरो साहब ने आजीवन उपेक्षितों, गरीबों, हाशिये पर ढकेल दिये गये लोगों, आदिवासियों अौर दलितों के हित के लिए संघर्ष किया. अपनी पूरे राजनीतिक जीवन में पूरी जीवटता के साथ हर उपेक्षा अौर शोषण का विरोध किया. वे झारखंड के असली पोषक, रक्षक अौर निर्माता हैं. उनके […]

झारखंड आंदोलन के संरक्षक होरो स्वयं उपेक्षित रहेएम इलियासहोरो साहब ने आजीवन उपेक्षितों, गरीबों, हाशिये पर ढकेल दिये गये लोगों, आदिवासियों अौर दलितों के हित के लिए संघर्ष किया. अपनी पूरे राजनीतिक जीवन में पूरी जीवटता के साथ हर उपेक्षा अौर शोषण का विरोध किया. वे झारखंड के असली पोषक, रक्षक अौर निर्माता हैं. उनके निधन से पूरा झारखंड मर्माहत अौर दु:खी हुआ. लगभग हर दल अौर संगठन के लोगों ने होरो साहब के योगदान को याद किया. वे वरिष्ठ विधायक, सांसद, मंत्री रह चुके थे, परंतु उपेक्षितों का यह मसीहा स्वयं उपेक्षा का शिकार हो गया. होरो साहब के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए आंदोलनकारी तत्कालीन मुख्यमंत्री शिबू सोरेन ने घोषणा की थी कि उनका अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ किया जायेगा.झारखंड आंदोलन के पुरोधा एनइ होरो को राजकीय सम्मान के साथ अंत्येष्टि का आदेश उपायुक्त कार्यालय रांची को 11 दिसंबर की शाम छह बज कर 41 मिनट पर मिल गया था. फैक्स से पहुंचे इस आदेश की प्रति डीसी कार्यालय में फाइल में नत्थी है. डीसी कार्यालय भले ही आदेश मिलने से इनकार करता रहा है, जबकि इस फैक्स पर अग्रेतर कार्रवाई के लिए एनडीसी को मार्क भी किया गया है.मंत्रिमंडल, सचिवालय एवं समन्वय विभाग से डीसी कार्यालय को भेजे गये इस आदेश की प्रति उनके कार्यालय से बाहर आ गयी है, जिसमें होरो की अंत्येष्टि राजकीय सम्मान से कराने का निर्देश दिया गया था. मंत्रिमंडल सचिवालय के अवर सचिव जीतवाहन उरांव द्वारा भेजा गया यह निर्देश 11 दिसंबर की शाम छह बज कर 41 मिनट पर उपायुक्त कार्यालय को मिला. फैक्स रिसीव करने के बाद उस पर उपायुक्त कार्यालय की मुहर लगायी गयी अौर इसे फाइल में नत्थी कर छोड़ दिया गया. आदेश फाइल में दबा रहा अौर होरो की अंत्येष्टि बिना राजकीय सम्मान के हो गयी.दिवंगत नेता होरो साहब का अंतिम संस्कार सम्मान के साथ नहीं किये जाने को लेकर संगठनों, राजनीतिक दलों अौर संस्थाअों ने कड़ा एतराज जताते हुए सरकार की संवेदनहीनता की पराकाष्ठा बताते हुए इसे अति दुर्भाग्यपूर्ण कदम बताया. विशेष कर लोगों को इसलिए भी काफी दु:ख हुआ कि राज्य के मुखिया के रूप में स्वयं एक आंदोलनकारी मुख्यमंत्री शिबू सोरेन विराजमान थे अौर स्वयं इन्होंने राजकीय सम्मान की घोषणा की थी, परंतु आखिर कौन लोग सत्ता की स्टेयरिंग को घूमा रहे थे कि होरो साहब जैसे वरिष्ठ नेता पर्व विधायक, सांसद को दुनिया से चले जाने के बाद भी नहीं छोड़ा अौर उनके सम्मान में कुछ भी करना शान के खिलाफ समझा, जबकि राजकीय सम्मान संबंधी आदेश भी जारी हो गये थे.झारखंड आंदोलन के सिपाही एनइ होरो दुनिया से रुखसत हो गये. अचरज की बात यह है कि अबुवा राज का दम भरनेवालों नेताअों के शासन में किसी नेता को होरो के अंतिम संस्कार में शामिल होेने की फुर्सत नहीं मिली. होरो मौत के 24 घंटे के भीतर बिसरा दिये गये. न राजकीय सम्मान, न प्रदेश सरकार का कोई प्रतिनिधि. अंतिम संस्कार में सम्मान की खानापूर्ति की अौपचारिकता निभायी गयी.तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष अर्जुन मुंडा ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण एवं संवेदनहीनता की पराकाष्ठा बताया था. उन्होंने कहा था कि एक अोर जहां राज्य सरकार अपने को अलग राज्य के अांदोलनकारियों एवं शहीदों की सरकार मानती है, वहीं उसे होरो जैसे शख्स की याद नहीं आती है. होरो जीवन के अंतिम काल तक झारखंड के सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक विकास के लिए संघर्ष करते रहे. राज्य सरकार की होरो के प्रति संवेदनहीनता घोर भर्त्सना का विषय है.हालांकि शिबू सरकार ने भूल सुधार करते हुए बाद में श्रद्धांजलि सभा अवश्य आयोजित की अौर दो बार बिहार सरकार के मंत्री रह चुके एनइ होरो को प्रोजेक्ट भवन में श्रद्धांजलि दी गयी. श्रद्धांजलि कार्यक्रम में सीएम शिबू, डिप्टी सीएम स्टीफन मरांडी, एक्स सीएम मधु कोड़ा, एजुकेशन मिनिस्टर बंधु तिर्की समेत सभी विभागों के प्रधान सचिव, अवर सचिव, डीजीपी ने एनइ होरो के चित्र पर माल्यार्पण किया. इसके बाद प्रोजेक्ट भवन में जवानों ने होरो को गन डाउन सैल्यूट दिया.11 को सार्वजनिक अवकाशसीएम शिबू सोरेन ने कहा था कि हर साल एनइ होरो की याद में 11 दिसंबर को उनकी पुण्यतिथि के अवसर पर सरकारी कार्यालयों में सार्वजनिक अवकाश रहेंगे. उन्होंने यह भी कहा था कि सिटी में स्थल चयन कर उनकी प्रतिमा स्थापित की जायेगी.शिबू सोरेन ने झारखंड जनभावना की उभार अौर सरकार के प्रति अविश्वास व संदेह निवारण के लिए यह सब घोषणाएं तो कर दीं, तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष अर्जुन मुंडा ने भी अपना तीखा तेवर दिखा दिया, पर आज भी होरो साहब उपेक्षित हैं. न तो सरकार द्वारा होरो साहब की प्रतिमा स्थापित की गयी है अौर न ही कोई स्मारक बना है. सरकार द्वारा राष्ट्रीय खेल अौर कई बड़े आयोजन हुए, पर कहीं होरो साहब नहीं दिखे. अब नहीं रहे होरो साहब को सरकारी सम्मान नहीं मिलने से कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि होरो साहब कल भी झारखंड की जनता के हीरो थे, अब भी हैं अौर आगे भी रहेंगे.(लेखक झारखंड आंदोलनकारी हैं और इन्होंने होरो पर पुस्तक भी लिखी है)

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