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झारखंड की हॉकी का इतिहास पर पुस्तक का विमोचन

झारखंड की हॉकी का इतिहास पर पुस्तक का विमोचनखेल संवाददाता, रांचीवरिष्ठ खेल पत्रकार सुभाष डे (शिबू दा) की लिखी किताब ‘झारखंड हॉकी का इतिहास’ का विमोचन शनिवार को एस्ट्रोटर्फ हॉकी स्टेडियम में हुआ. विमोचन समारोह में कई पूर्व अंतरराष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी और गणमान्य लोग मौजूद थे. यह सुभाष डे के द्वारा खेल पर लिखी गयी […]

झारखंड की हॉकी का इतिहास पर पुस्तक का विमोचनखेल संवाददाता, रांचीवरिष्ठ खेल पत्रकार सुभाष डे (शिबू दा) की लिखी किताब ‘झारखंड हॉकी का इतिहास’ का विमोचन शनिवार को एस्ट्रोटर्फ हॉकी स्टेडियम में हुआ. विमोचन समारोह में कई पूर्व अंतरराष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी और गणमान्य लोग मौजूद थे. यह सुभाष डे के द्वारा खेल पर लिखी गयी दूसरी पुस्तक है. इससे पहले उन्होंने झारखंड के फुटबॉल के इतिहास और उसके विकास पर पुस्तक लिखी थी. विमोचन से पहले सुभाष डे ने कहा कि घोर गरीबी, भूखे पेट, फटे कपड़े पहन कर यहां के खिलाड़ियों, खास कर आदिवासियों ने कैसे हॉकी में अपना परचम लहराया, यही इस पुस्तक में बताने की कोशिश की गयी है. इस पुस्तक में स्वर्गीय जयपाल सिंह मुंडा से लेकर आज के युवा खिलाड़ियों के बारे में भी विस्तृत जानकारी दी गयी है. समारोह में मौजूद हस्तियों ने भी अपने विचार रखे. पुस्तक का विमोचन मुख्य अतिथि खेल निदेशक रणेंद्र कुमार, ओलिंपियन सिलवानुस डुंगडुंग, मनोहर टोपनो, भारतीय महिला हॉकी टीम की पूर्व कप्तान सुमराय टेटे व असुंता लकड़ा, साइ इंचार्ज और अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल कोच सुशील कुमार वर्मा, वरिष्ठ पत्रकार बलबीर दत्त ने किया.किसने क्या कहारांची एक्सप्रेस के सम्पादक बलबीर दा ने पत्रकार-लेखक सुघष डे की इतिहास-दृष्टि की तारीफ करते हुए कहा कि मौजूदा समय में जब लेखकों की इतिहास लेखन के प्रति रुचि कम हो रही है तब सुघष डे द्वारा ‘झारखंड की हाकी का इतिहास’ लिखना स्वागत योग्य कदम है।श्री दा आज यहां सुघष डे की पुस्तक के लोकार्पण समारोह को अतिथि के रूप में सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने पुस्तक को उपयोगी बताया और कहा कि अगर झारखंड में छीसगढ़ की तरह ही ग्रंथ अकादमी होती तो श्री डे को अपने पैसे लगाकर पुस्तक प्रकाशित नहीं करवानी पड़ती। उन्होंने कहा कि झारखंड में हाकी प्रतिघओं की कमी नहीं है। उन्होंने 1928 ओलम्पिक की स्वर्ण विजेता घरतीय टीम के कप्तान जयपाल सिंह को याद करते हुए कहा कि झारखंड में बेहतर खेल संरचना और खिलाड़ियों को घ्रपूर प्रोत्साहन देने की जरूरत है। इस संदर्घ् में उन्होंने पंजाब के जालंधर के संसारपुर गांव का उदाहरण दिया जिसमें देश को एक-दो नहीं नौ ओलम्पिक व इंटरनेशनल खिलाड़ी दिये।सिलवानुस डुंगडुंग बांस की जड़ को काटकर गेंद व पेड़ के टहनियों को तोड़कर हकी स्टिक बनाकर हकी खेलना शुरू किया था। ऊबड़-खाबड़ मैदान में खेलकर हवाई जहाज तक का सफर तय किया। पूर्व ओलिंपियन ने कहा कि पहले और अब की हकी में बहुत फर्क आ गया है। आज विदेशी लोग हमारे खेल को खेलकर आगे आ रहे हैं। क्योंकि हम इस पर ज्यादा ध्यान नहीं देते। उन्होंने कहा कि बिना संसाधन के आज हकी खेलना आसान नहीं है। हमलोगों के समय में स्किल पर फोकस कर हकी खेली जाती थी। लेकिन आज स्किल के साथ-साथ ताकत का घ्ी उपयोग करना पड़ता है। इसमें विदेशी लोग आगे हो गए है।मनोहर टोपनो पहली बार दुबई में खेला जब दूधिया रौशनी में खेला तो बहुत परेशानी हुई। कघ्ी लाइट में हकी नहीं खेला था। आंख में बार-बार रौशनी पड़ने से गेंद रीसिव करने में परेशानी हो रही थी। लेकिन इसके बाद घ्ी मैच जीते। पूर्व ओलिंपियन ने कहा कि हकी बहुत फास्ट गेम है। इसमें बहुत ही ज्यादा मेहनत करने की जरूरत है। जब खिलाड़ियों को हर तरह के संसाधन आज के दौर में उपलब्ध हो पाएंगे तघ्ी वे बड़े खिलाड़ी बन सकेंगे। सुमराय टेटे मेरी तमन्ना है कि मैं झारखंड के छोटे-छोटे बच्चों को को कोचिंग दे सकूं। सरकार या खेल संघ अगर मुङो इस कार्य को करने को कहेंगे तो मैं अपने आपको घग्यशाली समझूंगी। अब हकी हमलोगों के समय का नहीं है। अब हकी आधुनिक दौर में खेली जा रही है।

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