आदर्श बच्चों के लिए मां-बाप भी आदर्श बनें : गोपाल भट्टाचार्य

रांची: स्वतंत्रता सेनानी, लेखक व महर्षि श्री अरविंद व उनकी शिष्या श्री मां के साधक हैं गोपाल भट्टाचार्य. श्री अरविंद सोसाइटी, पुंडुचेरी के संयुक्त सह अंतरराष्ट्रीय सचिव, गोपाल दा ने लगभग पूरी दुनिया की यात्र की है. श्री अरविंद व श्री मां के विचार व उनके उपदेशों का प्रचार-प्रसार ही उनका कार्य है. सोसाइटी के […]

By Prabhat Khabar Print Desk | November 2, 2013 6:53 AM

रांची: स्वतंत्रता सेनानी, लेखक व महर्षि श्री अरविंद व उनकी शिष्या श्री मां के साधक हैं गोपाल भट्टाचार्य. श्री अरविंद सोसाइटी, पुंडुचेरी के संयुक्त सह अंतरराष्ट्रीय सचिव, गोपाल दा ने लगभग पूरी दुनिया की यात्र की है. श्री अरविंद व श्री मां के विचार व उनके उपदेशों का प्रचार-प्रसार ही उनका कार्य है. सोसाइटी के कार्य से रांची आये गोपाल दा ने प्रभात खबर से मौजूदा सवालों पर बात की है. लोग कहते हैं कि आज के बच्चे कल से अलग हैं. सकारात्मक व नकारात्मक दोनों संदर्भ में. आज के बच्चे सचमुच कैसे हैं.

श्री मां ने 1967 में ही कहा था कि तब के बच्चे मेधावी होंगे. आज के बच्चे सचमुच मेधावी हैं. देखिए नकारात्मक चीजों के लिए बच्चों को दोष देना गलत है. बच्चा मां के गर्भ से ही सब कुछ सीख कर नहीं आता. यह तय मानें कि जहां मां-बाप आदर्श नहीं हैं, वहां बच्चा भी आदर्श नहीं होगा. अपवाद की बात अलग है. मां-बाप को ऊंचे मूल्यों वाला होना चाहिए. मां की एक किताब है, आइडियल पैरेंट्स एंड आइडियल चाइल्ड. हर मां-बाप इसे पढ़ें.

स्कूलों में पाठय़क्रम तथा सीखने-सिखाने के तरीके में बदलाव की वकालत होती है. कई लोगों का मानना है कि आज की शिक्षा पद्धति मानवीय गुणों को कम कर बच्चों को सिर्फ रटंत बना रही है. इससे बच्चों का स्वाभाविक विकास नहीं होता.

स्कूलों में आज पहले सा वातावरण नहीं है. मां ने कहा था कि टीचर्स हैज नथिंग टू टीच (शिक्षकों के पास बच्चों को सिखाने के लिए कुछ भी नहीं है). आज के प्रोफेशनल शिक्षक के पास तो बच्चों के लिए कोई खास जगह ही नहीं है. दरअसल शिक्षकों को सीखने में बच्चों की सहायता भर करनी है. बच्चों को उनकी पसंद की चीजें सीखने व पढ़ने दें. हमें उन्हें शारीरिक, मानसिक, मनोवैज्ञानिक व आध्यात्मिक शिक्षा देनी चाहिए. पर दुर्भाग्य से सेक्यूलरिज्म के नाम पर यह नहीं होता. गौर करें, मैं धर्म नहीं, अध्यात्म की बात कर रहा हूं.

अब के दौर में उच्च शिक्षित लोग भी देश तोड़ने, देश लूटने के काम में लगे हैं. क्या यह उच्च शिक्षा पर भी सवाल नहीं है?
हायर एजुकेशन को प्रोफेशनल बना दिया गया है. अब मेडिकल की बात करें. पढ़ने में 25-30 लाख रु खर्च हो रहे हैं. ऐसे डॉक्टर बन कर कितनी सेवा होगी. श्री अरविंद ने कहा था कि आज पढ़ाई के लिए हर विषय तो है, पर जीवन में धैर्य व संयम का पाठ गायब है. जीवन में धन बहुत महत्वपूर्ण हो गया है. इसके लिए ज्यादा इंतजार नहीं किया जा रहा. इसलिए उच्च शिक्षा की ओर भी कम ही लोग जा रहे हैं.

देश भर में हो रहे घपले-घोटालों की गिनती बेकार है. आम आदमी राजनीति को गंदी चीज मानने लगा है व राजनीतिज्ञों को बुरे लोग. आप क्या सोचते हैं. आमतौर पर राजनीतिज्ञ वही बन रहे हैं, जो कुछ और नहीं कर सकते. देखिए बगैर आध्यात्मिकता व सात्विक विचारों वाली राजनीति से बुराई होनी ही है. लेकिन यह भी बता दूं कि आज से 50 साल बाद यह नहीं रहेगी. परिस्थितियां बुराई के चरम पर आ कर बदलेंगी. राजनीति में आनेवाले अच्छे लोग इस काम को गति देंगे.

आज कई तरह के बाबाओं व उनके आश्रम का बोलबाला है. ये खबर भी बन रहे हैं. काम, क्रोध व लोभ वाले ज्यादातर बाबा ढोंगी हैं. आज के बाबा समाज से अपने आप एलिमिनेट (अलग) कर दिये जायेंगे. यह हो भी रहा है.

अगर आपसे आज की अशांति, हिंसा, काम, क्रोध, अनैतिकता, भ्रष्टाचार व मानवता को शर्मसार करनेवाली सभी बुराइयों का एक इलाज पूछा जाये, तो आप क्या कहेंगे. स्प्रिचुअल रिवोल्यूशन (आध्यात्मिक क्रांति) इन सबका अकेला समाधान है. चाहे हम शिक्षा, समाज, राजनीति या दूसरे किसी भी पेशे की बात करें. आध्यात्मिकता का पुट हर जगह जरूरी है.

अंत में यह बताएं कि श्री अरविंद के विचारों का सारांश क्या है
आदमी यह अहसास नहीं करता कि वह खुद ईश्वर है. ऐसा महसूस करके व अपनी चेतना को शुद्ध-समृद्ध करके आप भी ईश्वर हो सकते हैं. भगवान कोई बाहर की चीज नहीं है. श्री अरविंद ने यही कहा है.

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