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कूड़ेदान बनते राज्य के शहर (15 नवंबर)

कूड़ेदान बनते राज्य के शहर (15 नवंबर)उत्तम महतोरांची. देश में चल रहे स्वच्छता अभियान को सफल बनाने के लिए राज्य के विकसित शहरों में चल रहे प्रयासों से अवगत कराते हुए प्रभात खबर ने झारखंड में कूड़े-कचरे का हालत का जायजा लिया. देश के बड़े शहरों के उलट झारखंड के शहरों में कूड़ा कोई मुद्दा […]

कूड़ेदान बनते राज्य के शहर (15 नवंबर)उत्तम महतोरांची. देश में चल रहे स्वच्छता अभियान को सफल बनाने के लिए राज्य के विकसित शहरों में चल रहे प्रयासों से अवगत कराते हुए प्रभात खबर ने झारखंड में कूड़े-कचरे का हालत का जायजा लिया. देश के बड़े शहरों के उलट झारखंड के शहरों में कूड़ा कोई मुद्दा मालूम नहीं होता. शहरों की हर सड़क, हर गली कूड़े-कचरे से भरी है. मोहल्लों का कूड़ा पूरे सप्ताह, ज्यादातर जगहों पर तो महीनों तक सड़क पर पड़ा रहता है. कूड़ा उठाने की व्यवस्था पूरी तरह फेल है. सड़कों के किनारे लगाये गये कूड़े से भरे डस्टबीन को साफ करनेवाला कोई नहीं है. रांची में भीड़ भरी सड़कों पर सबसे पीक ऑवर में कूड़ा उठाने का ट्रक ट्रैफिक जाम लगाता है. घरों से कूड़ा उठानेवालों का कोई नियमित समय या दिन नहीं है. कूड़ा निष्पादन की कोई व्यवस्था नहीं है. यहां के लोग भी स्वच्छता के प्रति जागरूक नहीं दिखते. घर साफ कर बाहर कूड़ा फेंकते हैं. कूड़े का उठाव नहीं होने पर केवल भाषण देते हैं. स्थानीय निकायों में शिकायत करने की जहमत भी नहीं उठाते. झारखंड धीरे-धीरे कूड़ेदान बन रहा है. नहीं होता है सालिड वेस्ट मैनेजमेंटझारखंड में सालिड वेस्ट मैनेजमेंट का कोई इंतजाम नहीं है. पूरे शहर में कहीं भी कचरे का निष्पादन नहीं होता. कूड़ा खुले में सड़ने के लिए फेंक दिया जाता है. जवाहर लाल नेहरू अरबन रिनुअल मिशन के तहत केंद्र सरकार ने कचरा निष्पादन के लिए मदद देने का भी प्रावधान किया था, परंतु सरकारी शिथिलता और घटिया कार्यशैली की वजह से राज्य मदद नहीं ले सका. साल 2011 में योजना के तहत राजधानी रांची व धनबाद में कूड़ा निष्पादन के लिए कंपनी का चयन किया गया था, परंतु जिम्मेदारी लेने वाली कंपनी एटूजेड दो साल भी नहीं टिकी. कचरे के प्रोसेसिंग प्लांट के नाम पर कंपनी ने 2.5 करोड़ भुगतान लेकर केवल पिलर गाड़ने का काम किया. औद्याेगिक शहर में कंपनियां करती हैं वेस्ट मैनेजमेंटझारखंड के केवल दो शहरों में कचरे के निष्पादन का काम होता है. दोनों ही शहरों में कूड़े का निष्पादन राज्य सरकार के भरोसे नहीं है. राज्य में जमशेदपुर व बोकारो में ही कूड़े का निष्पादन होता है. जमशेदपुर में यह काम टाटा स्टील जुस्को के माध्यम से कराती है, वहीं बोकारो में बोकारो स्टील प्लांट द्वारा कूड़े के निष्पादन का इंतजाम किया गया है. जमशेदपुर में कूड़ा निष्पादन काम जुस्को करती है. यहां कंपनी कूड़े के उठाव के बाद गीले कचरे से खाद बनाती है, वहीं प्लास्टिक आदि से यहां पर कई सड़कें भी बनायी गयी हैं.देश के विकसित राज्यों में हाइटेक है कचरा उठाने का इंतजाम कूड़ा उठाने के लिए नयी-नयी तकनीक का इस्तेमाल पुरानी खबर हो गयी है. सूचना तकनीक ने कूड़ा उठाने के काम को और ज्यादा हाईटेक बना दिया है. अब कूड़ा-कचरा उठाने के लिए भी तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है. देश में कूड़ा उठाव के लिए इस्तेमाल की जा रही प्रणाली काफी समय लेने वाली है. देश के ज्यादातर शहरों में कूड़ा उठाने के लिए दिन या समय निर्धारित होता है. तय समय पर कूड़ा उठानेवाला अपने रिक्शे या अन्य वाहन में आता है. इकट्ठा किया हुआ कूड़ा उठा कर ले जाता है. वह नजदीकी डंपिंग यार्ड (कूड़े का ढ़ेर जमा करने की जगह) में ले जाकर कूड़ा डाल देता है. वहां से स्थानीय नगर निगम का वाहन अपने निर्धारित समय के हिसाब से कूड़ा कचरा प्रबंधन प्लांट या डंपिंग स्टेशन तक ले जाता है. वर्षों से देश में कूड़ा निष्पादन की यही प्रक्रिया चल रही है, परंतु अब इसमें बदलाव आ रहा है. देश के कई बड़े शहरों ने कूड़े के उठाव और निष्पादन के लिए नयी व्यवस्था तैयार की है. कई कर रहे हैं. नागरिक अपनी सुविधा के लिए स्वयं जागरूक हो रहे हैं. सफाई कर्मचारी के अनियमित और देर से आने की शिकायतों का समाधान खोज रहे हैं. चार गुना ज्यादा आबादी वाले अहमदाबाद रोज करता है 1800 टन कूड़े की रिसाइकिलिंग60 लाख की आबादी वाले अहमदाबाद की प्रमुख सड़कों की तो बात ही छोड़ दें, वहां गली-मोहल्ले में भी कूड़ा नहीं दिखता है. सिवरेज ड्रेनेज योजना के बेहतर क्रियान्यवयन के कारण शहर की सड़कों पर कहीं जलजमाव नहीं दिखता है. अहमदाबाद से रोज 1800 टन कूड़ा-कचरा निकलता है. कचरा डिस्पोजल करने के लिए शहर के चार छोर में चार बड़े डंपिंग यार्ड का निर्माण अहमदाबाद म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन (एएमसी) के द्वारा किया गया है. इसके अलावा शहर के अंदर ही कूड़ा को ट्रांसफर करने के लिए एक दर्जन से अधिक ट्रांसफर स्टेशन बनाये गये हैं. यहां की सफाई व्यवस्था तीन चरणों में होती है. पहले चरण में घर से कूड़ा को निकाल कर सड़कों पर लगाये गये डस्टबीन में डाला जाता है. यहां से कूड़े को उठा कर ट्रांसफर स्टेशन में डाला जाता है. अंतिम चरण में कचरे को रिसाइकिल किया जाता है.कचरे से बनता है खाद और टाइल्सअहमदाबाद से रोज निकले कूड़े को फिर से इस्तेमाल के लायक बनाया जाता है. कूड़े के लिए बनाये गये ट्रांसफर स्टेशन पर कचरे को सूखे और गीले की श्रेणी में अलग-अलग किया जाता है. फिर कूड़े को बड़े वाहनों में लोड करके डंपिंग यार्ड तक पहुंचाया जाता है. डंपिंग यार्ड पहुंचने के बाद गीले कचरे (चावल, रोटी, ब्रेड, फल व हरी सब्जी) से खाद बनाया जाता है. गीले कचरे को खाद निर्माण के प्लांट में ले जाया जाता है. वहीं, सूखे कचरे(प्लास्टिक, पेपर, बोतल, बिल्डिंग मेटेरियल) को अलग करके उससे ईंट व टाइल्स का निर्माण किया जाता है. दिन में दो बार होती है सफाईअहमदाबाद नगर निगम के द्वारा शहर की सफाई व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए दिन में दो बार सफाई की जाती है. सुबह के छह बजे से लेकर 11 बजे तक डोर टू डोर(हर घर से) कूड़ा का कलेक्शन किया जाता है. कूड़ा कलेक्शन के बाद इस कूड़े को प्रमुख डस्टबीनों में डाल दिया जाता है. दिन के तीन बजे से शाम छह बजे तक दूसरे चरण का सफाई अभियान प्रारंभ किया जाता है. इसके तहत सड़कों से कूड़े का उठाव किया जाता है. कूड़ा उठाने के इस कार्य में अहमदाबाद नगर निगम के पास 17 हजार कर्मचारियों की लंबी चौड़ी फौज है. अगर किसी मोहल्ले में किसी कर्मचारी ने कचरा नहीं उठाया, तो इसके लिए लोग निगम के टॉल फ्री नंबर पर शिकायत भी दर्ज करा सकते हैं. एक भी शिकायत दर्ज हो जाने के बाद संबंधित मोहल्ले में कूड़ा नहीं उठाये जाने की खबर निगम के कमिश्नर से लेकर उस एरिया से जोनल सुपरवाइजर के मोबाइल पर पहुंच जाता है. फिर उस मोहल्ले में कचरा के उठाव के लिए स्पेशल वाहन भेजा जाता है. संबंधित कर्मचारी पर भी काम में लापरवाही बरतने के आरोप में कार्रवाई की जाती है.बंगलुरू में कूड़ा उठाने के लिए होता है मोबाइल एप का इस्तेमालकर्नाटक की राजधानी बेंगलुरू में कूड़ा उठाव के लिए मोबाइल एप का इस्तेमाल किया जा रहा है. मोबाइल एप से लोग कूड़ा उठाने वाले तक अपनी बात पहुंचा रहे हैं. उसे अपने सुविधानुसार कचरा उठाने के लिए बुला रहे हैं. घर में कूड़ा नहीं होने पर या छुट्टियों में बाहर जाने पर कर्मचारी को आने से मना भी कर रहे हैं. सफाई कर्मचारी के अनुपस्थित रहने या देर से आने की शिकायत भी एप पर की जा सकती है. आइटी कंपनी माइंड ट्री ने विशेष रूप से कूड़ा उठाने के लिए इस एप को डिजाइन किया है. यह एंड्रायड मोबाइल पर आसानी से इंस्टॉल हो जाता है. कैसे काम करता है एपकूड़ा उठाने के लिए बनाये गये एप के दो वर्जन हैं. पहले एप में कूड़ा उठाने वाले कर्मचारी हैंं, तो दूसरे एप से सभी घरों को जोड़ा गया है. जैसे ही भवन मालिक के द्वारा अपने घर में कूड़ा होने की समस्या इसमें दर्ज करायी जाती है, सफाई कर्मचारी को इसकी सूचना मिल जाती है. उसे यह भी पता चल जाता है कि संबंधित व्यक्ति का घर कहां पर है. एप की खासियत यह है कि इसमें भवन मालिक एप के माध्यम से सफाई कर्मचारी को यह रिमांइडर करा सकता है कि फलां समय में फलां के घर से कूड़े का उठाव किया जाना है. परेशान लोगों ने की शुरुआत सफाईकर्मियों की मनमानी से परेशान लोगों ने मोबाइल एप के माध्यम से हल निकाला. बेंगलुरू के बसावनगुडी मोहल्ले के लोग कूड़े की समस्या से परेशान थे. सफाई कर्मचारी मोहल्ले में कूड़ा उठाने समय से नहीं आते. कई बार वे 15-20 दिनों के बाद आते थे. लोगों को पता तक नहीं चलता था कि कब सफाईकर्मी आया और चला गया. मोहल्ले की महिलाओं ने अपनी समस्या बंगलुरू के वृहत महानगरपालिका में हेल्थ ऑफिसर के समक्ष रखी, परंतु उनकी शिकायतों पर कुछ नहीं हुआ. तब मोहल्ले के लोगों ने आइटी कंपनी से संपर्क कर अपने काम का एप डेवलप करने का आग्रह किया. जुड़े हैं हजार से अधिक घरकूड़ा उठाने में मदद के लिए तैयार किये गये एप पर शुरुआत में काफी कम संख्या में लोग जुड़े थे. सही तरीके से प्रचार नहीं होने के कारण एप कारगर नहीं हो रहा था. फिर, मोहल्ले की महिलाओं ने टोली बनायी. घर-घर गयीं और लोगों को एप से जुड़ने का आग्रह किया. लोगों ने बात समझी और एप से जुड़ते गये. आज इस एप के माध्यम से हजारों घरों का कूड़ा नियमित रूप से निर्धारित समय में उठ रहा है. लोगों का समय बच रहा है. सहूलियत हो रही है. आज पूरे मोहल्ले में किसी घर के आगे कूड़े का ढेर नहीं दिखता.

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