रांची: झारखंड में औद्योगिक परियोजनाओं के क्रियान्वयन में विलंब के कारण लागत में 94 हजार करोड़ रुपये की वृद्धि हो गयी है. प्राकृतिक संपदा से संपन्न झारखंड में औद्योगिक विकास की निराशाजनक तसवीर उभर रही है. झारखंड में करीब दो लाख करोड़ रुपये की निवेश परियोजनाओं के खराब क्रियान्वयन की वजह से अब उनकी लागत करीब 94,400 करोड़ रुपये तक बढ़ गयी है ,जो असल लागत से 47 प्रतिशत ज्यादा है. यह जानकारी अग्रणी उद्योग मंडल द एसोसिएटेड चेंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (एसोचैम) के एक ताजा अध्ययन में सामने आयी है.
डिले इन इंवेस्टमेंट इंप्लीमेंटेशन इन झारखंड : एन एनालीसिस (झारखंड में निवेश परियोजनाओं में विलंब : एक विश्लेषण) विषयक अध्ययन की रिपोर्ट के अनुसार, झारखंड में दो लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की लागत की 180 परियोजनाएं अब तक शुरू नहीं हो सकी हैं. इनमें से 105 की या तो लागत बढ़ गयी है अथवा उनका समय निकल गया है.
झारखंड में रुकी परियोजनाओं में से सबसे ज्यादा 48 प्रतिशत विनिर्माण क्षेत्र से जुड़ी हैं. उसके बाद बिजली (29 प्रतिशत), खनन (10 प्रतिशत), गैरवित्तीय सेवाएं (नौ प्रतिशत) तथा सिंचाई (चार प्रतिशत) की परियोजनाएं रुकी हैं. अध्ययन में बताया गया है कि वर्ष 2004-05 से 2013-14 के बीच इस राज्य ने औद्योगिक विकास के क्षेत्र में मात्र 1.2 प्रतिशत की साल-दर-साल वृद्धि दर (सीएजीआर) ही प्राप्त की है. इससे झारखंड देश के प्रमुख 20 राज्यों में सबसे निचले स्थान पर है. वर्ष 2010-11 में जीएसडीपी में इस क्षेत्र की भागीदारी जहां 42 प्रतिशत थी, वहीं यह साल 2013-14 में घटकर 37.5 फीसदी ही रह गयी.
एसोचैम के आर्थिक अनुसंधान ब्यूरो (एइआरबी) द्वारा तैयार की गयी इस अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2004-05 से 2013-14 के दौरान भारत की सकल घरेलू उत्पाद में झारखंड के योगदान में भी गिरावट आयी है. वर्ष 2004-05 में जहां यह दो प्रतिशत था, वहीं 2013-14 में यह घटकर 1.9 फीसद रह गयी.
एसोचैम के राष्ट्रीय महासचिव डीएस रावत ने रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि प्राकृतिक संसाधनों के लिहाज से बेहद संपन्न झारखंड विकास के मोर्चे पर अपनी क्षमताओं के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर पा रहा है. ऐसा होने से वह निवेश के लिए अनुकूल स्थान का अपना आकर्षण खोता जा रहा है. इससे उबारने के लिए विकास तथा वित्तीय प्रबंधन की बेहतर रणनीति अपनाने की जरूरत है.