रांची: झारखंड बिजली वितरण निगम लिमिटेड द्वारा 669.37 करोड़ के ग्रामीण विद्युतीकरण के ठेके में गड़बड़ी की शिकायत मिली है. टेंडर में अनियमितता बरतने और अधिक दर कोट करनेवालों का प्राइस बिड खोलने तथा कम दर देने वालों को अलग कर देने की शिकायत प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री से लेकर मुख्य सचिव तक को की गयी है.
कुमार राजेश और पृथ्वीराज सिंह ने इसकी शिकायत की है. कुमार राजेश की शिकायत पर मुख्य सचिव ने तत्काल जांच कमेटी गठित कर पांच अक्तूबर को रिपोर्ट देने का निर्देश ऊर्जा विभाग के प्रधान सचिव एसकेजी रहाटे को दिया है. मुख्य सचिव के पास यह शिकायत 27 सितंबर को पहुंची थी. इसके बाद ऊर्जा विभाग द्वारा तीन सदस्यीय कमेटी गठित कर जांच का आदेश दिया गया है.
क्या है मामला: झारखंड बिजली वितरण निगम लिमिटेड द्वारा 10 जिलों में बचे हुए गांवों के विद्युतीकरण के लिए जून 2015 में निविदा निकाली गयी थी. निविदा संख्या 88-97/पीआर/जेबीवीएनएल/15-16 है. इसके तहत पूर्वी सिंहभूम, सरायकेला-खरसावां, खूंटी, लोहरदगा, रांची, जामताड़ा, देवघर, साहेबगंज, गोड्डा व पाकुड़ के बचे हुए गांवों का विद्युतीकरण किया जाना है. कुल प्राक्कलित राशि 669.37 करोड़ है. निविदा में करीब 24 कंपनियों ने भाग लिया. कंपनियों ने निविदा प्रगति शुल्क के रूप में 70 हजार रुपये प्रति निविदा तथा बैंक गांरटी के रूप में 10 लाख रुपये जमा किये.
आरोप है कि तकनीकी मूल्यांकन कमेटी(टीइसी) ने निविदा में गड़बड़ी करते हुए अपनी चहेती कंपनियों को ऊंचे दर पर कार्य आवंटित करने की तैयारी कर चुके हैं. कमेटी के सदस्य सतीश ठाकुर, सुनील ठाकुर, मनमोहन कुमार व डीजीएम फायनेंस जयंत प्रसाद हैं. टीइसी पर आरोप है कि चीजों को तोड़-मरोड़ कर, गलत अर्थ लगाते हुए मानक दरों का घोर उल्लंघन कर केवल उन्हीं कंपनियों के प्राइस बिड खोलने की अनुमति दी गयी, जो उनकी चहेती कंपनी थी. आरोप है कि देश की कई बड़ी कंपनियों को निविदा के टेक्निकल बिड में अलग-अलग कारणों से छांट दिया गया और चहेती कंपनियों को निर्धारित दर से 22 से 34 प्रतिशत अधिक दर पर निविदा देने की तैयारी चल रही है. इसके चलते लगभग 140 करोड़ रुपये अतिरिक्त भार पड़ने का अनुमान है.
ये हैं जांच कमेटी में: ऊर्जा विभाग की जांच कमेटी में अध्यक्ष उपसचिव रविरंजन मिश्रा, अधीक्षण अभियंता विजय कुमार सिन्हा व सहायक अभियंता जयकांत कुमार सदस्य हैं. कमेटी को पांच अक्तूबर तक जांच रिपोर्ट देने का निर्देश दिया गया है.
बैंक गारंटी को लेकर छांटा गया
आरोप है कि बेबुनियाद तथ्य के आधार पर 24 में से 10 कंपनियों की निविदा अलग कर दी गयी. वह भी केवल इस कारण से कि कंपनियों ने बैंक गारंटी एकाउंट अफसर जेबीएनएल के बदले चीफ इंजीनियर(आरइ) के नाम जमा की थी, जबकि कंपनियां कहती रही कि बैंक से पूछ लिया जाये कि कंपनियों ने बैंक गारंटी की राशि जमा की है या नहीं. इसके बाद भी उनकी एक न सुनी गयी और उन्हें छांट दिया गया. पूर्व में भी संचरण या उत्पादन कंपनियों में बैंक गारंटी मुख्य अभियंता के नाम से दी गयी हैं, जिसे स्वीकार भी किया गया था.
वित्त नियंत्रक ने असहमति जतायी
मामले में वितरण कंपनी के वित्त नियंत्रक उमेश कुमार ने भी 14.9.15 को मुख्य अभियंता आरइ को बफ शीट जारी कर इस मामले में कड़ा एतराज जताया है. उन्होंने लिखा है कि अच्छी कंपनियों को केवल बैंक गारंटी एओ की जगह आरइ को देने के बहाने छांट दिया गया है, जबकि अन्य कागजातों की जांच तक नहीं की गयी. इस मामले में बैंक से पूछताछ की जानी चाहिए थी, जो नहीं की गयी. उन्होंने खुद जब बैंक से जांच की, तो एसबीआइ डोरंडा व बैंक अॉफ इंडिया क्लब साइड ने बैंक गारंटी दिये जाने की पुष्टि की. वित्त नियंत्रक ने टीइसी की इस कार्रवाई को न्यायसंगत नहीं माना है. उन्होंने पूरी तरह से टीइसी के निर्णय पर असहमति जतायी है.