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पुस्तक निगम के गठन की स्वीकृति
शिक्षा परियोजना से नहीं छपेगी किताब, सत्र 2016-17 से कॉरपोरेशन छापेगा किताब कॉरपोरेशन के लिए अलग से नियुक्त होंगे अधिकारी व कर्मचारी अब वित्त विभाग को भेजा जायेगा प्रस्ताव रांची : राज्य में कक्षा एक से आठ तक में बच्चों के लिए नि:शुल्क किताब वितरण का कार्य अब झारखंड शिक्षा परियोजना (जेइपीसी, झारखंड एजुकेशन प्रोजेक्ट […]
शिक्षा परियोजना से नहीं छपेगी किताब, सत्र 2016-17 से कॉरपोरेशन छापेगा किताब
कॉरपोरेशन के लिए अलग से नियुक्त होंगे अधिकारी व कर्मचारी
अब वित्त विभाग को भेजा जायेगा प्रस्ताव
रांची : राज्य में कक्षा एक से आठ तक में बच्चों के लिए नि:शुल्क किताब वितरण का कार्य अब झारखंड शिक्षा परियोजना (जेइपीसी, झारखंड एजुकेशन प्रोजेक्ट काउंसिल) की देखरेख में नहीं होगा. किताब की छपाई की जिम्मेदारी अब कॉरपोरेशन की होगी. राज्य में बुक कॉरपोरेशन के गठन का प्रस्ताव तैयार हो गया है. कॉरपोरेशन के गठन को लेकर बनी कमेटी ने शिक्षा विभाग को प्रारूप सौंप दिया है. कमेटी की रिपोर्ट के अनुरूप शिक्षा विभाग द्वारा प्रस्ताव तैयार किया गया है. प्रस्ताव को शिक्षा विभाग की स्वीकृित मिल गयी है.
टेक्सट बुक कॉरपोरेशन स्वतंत्र इकाई के रूप में काम करेगा. शिक्षा विभाग की देखरेख में इसका संचालन होगा. इसमें अधिकारी से लेकर कर्मचारी तक की अलग से नियुक्ति की जायेगी. वर्ष 2016-17 से किताब कॉरपोरेशन छपवायेगा. राज्य में कक्षा एक से आठ तक की किताब छपाई अभी अभी झारखंड शिक्षा परियोजना की देखरेख में होती है. किताब छपाई के लिए भारत सरकार व राज्य सरकार से मिलने वाली राशि कॉरपोरेशन को ट्रांसफर की जायेगी. प्रस्ताव अब वित्त विभाग को भेजा जायेगा. वित्त की सहमति के बाद प्रस्ताव कैबिनेट की बैठक में रखा जायेगा.
छपाई का तय होगा समय : राज्य में बच्चों को जब से किताब दी जा रही है, तब से मात्र दो वर्ष समय पर किताब मिल सकी है. किताब छपाई की प्रक्रिया शुरू करने की कोई समय सीमा तय नहीं है. परियोजना जब चाहे तब किताब की टेंडर की प्रक्रिया शुरू करती है. कभी सितंबर में तो कभी जून में टेंडर फाइनल होता है. टेंडर फाइनल करने में नौ माह तक का समय लग जाता है. शैक्षणिक सत्र शुरू होने के छह से आठ माह बाद किताब वितरण शुरू होता है. अब किताब छपाई की प्रक्रिया शुरू करने की समय सीमा तय होगी. प्रक्रिया शुरू करने से लेकर स्कूल तक किताब पहुंचाने के लिए तिथि तय की जायेगी.
टेंडर में हो रही थी गड़बड़ी : किताब छपाई के टेंडर में गड़बड़ी की लगातार शिकायत मिल रही थी. वर्ष 2005-06 में किताब के लिए 32 करोड़ खर्च हुए थे, जो वर्ष 2013-14 में बढ़ कर 99 करोड़ हो गये. नौ वर्ष में किताब छपाई के खर्च में 67 करोड़ की बढ़ोतरी हुई. इस दौरान बच्चों की संख्या कभी अचानक 13 लाख तक बढ़ गयी, जबकि अगले वर्ष बच्चों की संख्या 20 लाख तक कम हो गयी. बच्चों की संख्या बढ़ने के कारण वर्ष 2009-10 में बजट लगभग 20 करोड़ बढ़ गया, जबकि 2010-11 में बच्चे कम होने से किताब छपाई का खर्च 24 करोड़ कम हो गया.
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