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साहित्यिक रचनाओं पर भी बाजारवाद का असर : रेणु प्रकाश
मुंशी प्रेमचंद की जयंती पर जनवादी लेखक संघ की संगोष्ठी रांची : बाजार पहले भी था, पर आज यह अपने अनियंत्रित स्वरूप में है. इसके खिलाफ रोने-चिल्लाने का फायदा नहीं. हम विज्ञापन के दलदल में फंस जाते हैं. दूसरों की बातें हमें प्रभावित करती हैं. यह विडंबना है कि ‘हंस’ की कुछ कहानियां भी बाजारवाद […]
मुंशी प्रेमचंद की जयंती पर
जनवादी लेखक संघ की संगोष्ठी
रांची : बाजार पहले भी था, पर आज यह अपने अनियंत्रित स्वरूप में है. इसके खिलाफ रोने-चिल्लाने का फायदा नहीं. हम विज्ञापन के दलदल में फंस जाते हैं. दूसरों की बातें हमें प्रभावित करती हैं. यह विडंबना है कि ‘हंस’ की कुछ कहानियां भी बाजारवाद में डूबी हुई दिख रही हैं.
जब भी कॉरपोरेट जगत और सत्ता का गंठजोड़ होता है, तब गरीब जनता लुटती है. इसे पोषित करने वाली व्यवस्था के खिलाफ एकजुट होने की आवश्यकता है. साहित्यकार रेणु प्रकाश ने जनवादी लेखक संघ द्वारा ‘बाजार का जनविरोधी स्वरूप व साहित्य’ विषय पर आयोजित गोष्ठी में ये बातें कही. यह आयोजन प्रेमचंद जयंती के उपलक्ष्य में सफदर हाशमी सभागार, मेन रोड में हुआ. कार्यक्रम की अध्यक्षता ओम प्रकाश बर्णवाल ने की.
मुख्य अतिथि, हिंदी विभाग के अध्यक्ष, अरुण कुमार ने कहा कि भारतेंदु हरिश्चंद्र, महात्मा गांधी व प्रेमचंद ने स्वदेशी उद्योग, स्वदेशी आंदोलन की वकालत की थी. उस विचारधारा को फिर से जिंदा करने की जरूरत है. पूंजी ऐसी होनी चाहिए, जिससे देश अपने पैरों पर खड़ा हो सके. उन्होंने ‘ईदगाह’, ‘तमस’ व ‘शतरंज के खिलाड़ी’ के कई प्रसंगों का उल्लेख किया. एमजेड खान ने कहा कि अनियंत्रित बाजारवाद हमारी संस्कृति व जीवन को प्रभावित कर रहा है.
मनुष्य के ईमान पर डाका डाला जा रहा है. डॉ जमशेद कमर, शालिनी साबू, कुमार वीरेंद्र, प्रकाश विप्लव, वीणा श्रीवास्तव, मो समीउल्लाह खान असदकी, नूरजहां बेगम, डॉ रामदास व अन्य ने कहा कि आज बाजार लोगों की भावनाएं, संवेदनाएं, विश्वास व खान- पान को भी नियंत्रित कर रहा है. यह देश की नीति निर्धारित करने में भी अहम भूमिका निभाने लगा है. इसका असर कथा- कहानियों में भी नजर आता है.
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