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राज्य में चार साल से बाधित है अंडरग्राउंड माइनिंग प्रशिक्षण

संजय रांची : राज्य के तीन पॉलिटेक्निक में डिप्लोमा इन माइनिंग का कोर्स संचालित है. इनमें राजकीय पॉलिटेक्निक निरसा, भागा व कोडरमा शामिल है. भागा में बीसीसीएल कोटे की 10 सीटों को छोड़ दें, तो गत तीन-चार वर्षो से इन संस्थानों के विद्यार्थियों का प्रैक्टिकल लगभग बंद है. इस कोर्स के साथ एक वर्ष का […]

संजय
रांची : राज्य के तीन पॉलिटेक्निक में डिप्लोमा इन माइनिंग का कोर्स संचालित है. इनमें राजकीय पॉलिटेक्निक निरसा, भागा व कोडरमा शामिल है. भागा में बीसीसीएल कोटे की 10 सीटों को छोड़ दें, तो गत तीन-चार वर्षो से इन संस्थानों के विद्यार्थियों का प्रैक्टिकल लगभग बंद है. इस कोर्स के साथ एक वर्ष का पोस्ट डिप्लोमा अंडर ग्राउंड माइनिंग (भूमिगत खदान) का प्रशिक्षण जरूरी है.
तीन वर्षीय डिप्लोमा के बाद एक वर्ष का यह प्रशिक्षण दिया जाता है. झारखंड स्थित सीसीएल की अनुषंगी इकाइयां इस प्रशिक्षण की अनुमति नहीं दे रही हैं. इससे दो-तीन हजार विद्यार्थियों का भविष्य अंधकारमय हो गया है. पढ़ाई के बाद भी उन्हें नौकरी नहीं मिल रही.
सोर्स-पैरवी या व्यक्तिगत जुगाड़ से बच्चे यह प्रशिक्षण ले रहे हैं. इससे चार साल का यह कोर्स पूरा करने में उन्हें छह से आठ वर्ष लग रहे हैं. इधर राजकीय पॉलिटेक्निक के प्राचार्यो ने बोर्ड ऑफ प्रैक्टिकल ट्रेनिंग (बीपीटी) कोलकाता, सीसीएल व बीसीसीएल प्रबंधन, विज्ञान व प्रावैधिकी मंत्री व विभागीय सचिव को कई बार चिट्ठी लिखी है, पर आज तक इसका समाधान नहीं हुआ है. दूसरी ओर निजी संस्थानों को प्रशिक्षण की अनुमति दी जा रही है.
उदाहरण के तौर पर रांची स्थित एक संस्थान के प्रशिक्षण में कोई बाधा नहीं है. एक प्राचार्य ने कहा कि झारखंड में खान-खनिजों की कमी नहीं है. पर झारखंड के बच्चों को ही प्रशिक्षण नहीं मिलना दुर्भाग्यपूर्ण है. बताया गया कि राजकीय पॉलिटेक्निक में पढ़नेवाले बच्चे गरीब परिवारों से आते हैं. इनमें से करीब 35 फीसदी अनुसूचित जाति-जनजाति के हैं.
एक वर्षीय प्रशिक्षण के लिए पहले बीपीटी को लिखा जाता है. विद्यार्थियों के आवेदन संस्थान के माध्यम से बीपीटी को भेजे जाते हैं. केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रलय के तहत कार्यरत यह बोर्ड खनन कंपनियों को प्रशिक्षण के लिए कहता है. प्रशिक्षण पूरा करने के बाद विद्यार्थियों को डाइरेक्टर जेनरल ऑफ माइंस सेफ्टी (डीजीएमएस) प्रमाण पत्र निर्गत करता है.
इसी के आधार पर खनन कंपनियों में इन विद्यार्थियो को ओवर मैन, माइंस सर्वेयर, फोरमैन व माइनिंग सरदार जैसे पदों पर काम मिलता है.
प्रशिक्षण के दौरान विद्यार्थियों को प्रति माह तीन हजार रु छात्रवृत्ति भी मिलती है. इसका 50 फीसदी खनन कंपनियां तथा 50 फीसदी बीपीटी देता है. बीपीटी खनन कंपनियों को प्रशिक्षण के लिएकहती हैं, पर कंपनियां यह कह कर टाल रही हैं कि उनके पास प्रशिक्षण के लिए पर्याप्त सीट या संसाधन नहीं है.
रांची : सीसीएल में खनन आइटीआइ (डिप्लोमाधारी) के 353 पद इएंडएम में रिक्त हैं. इसके लिए योग्य उम्मीदवार नहीं मिल रहे हैं. कंपनी ने बहाली के लिए जो आवेदन मांगा था, उसमें खनन कार्य का अनुभव मांगा जाता है.
इनकी बहाली कैटेगरी-4 के पद के लिए निकाली जाती है. बार-बार आवेदन आमंत्रित करने के बावजूद नियुक्ति नहीं हो पा रही है. पद रिक्त रह जा रहे हैं.
यह मुद्दा मजदूर यूनियनों के प्रतिनिधियों ने जेसीसी की बैठक में भी उठाया था. जेसीसी में इसके कैडर स्कीम पर विचार किया जा रहा है. दूसरी कंपनियों में हो रही बहाली की प्रक्रिया के अनुसार यहां भी बहाली का निर्णय हुआ है. प्रबंधन इ-2 रैंक में इनकी बहाली पर तैयार है.

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