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केंद्र सरकार ने दो साल से रोक रखी है सहायता राशि
जल संसाधन : विभाग ने की थी एक हजार करोड़ की मांग रांची : झारखंड को सुवर्णरेखा प्रोजेक्ट के लिए मिलने वाली केंद्रीय सहायता गत दो वर्ष से नहीं मिली है. मार्च 2013 में ही 535 करोड़ रुपये की अंतिम किस्त मिली थी. इसके बाद से त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम (एआइबीपी) के तहत मिलनेवाली सहायता […]
जल संसाधन : विभाग ने की थी एक हजार करोड़ की मांग
रांची : झारखंड को सुवर्णरेखा प्रोजेक्ट के लिए मिलने वाली केंद्रीय सहायता गत दो वर्ष से नहीं मिली है. मार्च 2013 में ही 535 करोड़ रुपये की अंतिम किस्त मिली थी. इसके बाद से त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम (एआइबीपी) के तहत मिलनेवाली सहायता राशि रुकी हुई है. जल संसाधन विभाग ने वित्तीय वर्ष 2014-15 में एक हजार करोड़ रुपये की मांग की थी.
केंद्र सरकार ने 663 करोड़ देने पर सहमति जतायी, पर यह रकम अब तक नहीं मिली है. इस बीच राज्य सरकार केंद्र को लगातार रिमाइंडर देती रही है. केंद्रीय सहायता रूक जाने से प्रोजेक्ट में और विलंब हो रहा है. हालांकि प्रोजेक्ट से जुड़े चांडिल डैम व गालुडीह बराज का निर्माण लगभग पूरा हो गया है. पर डैम से संबंधित अन्य कार्य करीब 30 से 60 फीसदी तक ही हुए हैं.
विभागीय सूत्रों के अनुसार परियोजना पूरी करने के लिए अभी करीब चार हजार करोड़ रुपये की जरूरत है. खरकई नदी पर ईचा डैम का निर्माण अब तक शुरू नहीं होना प्रोजेक्ट की सबसे बड़ी बाधा है. पहले जन प्रतिरोध के कारण यह काम ठप था. अब मामला सिंगल टेंडर के कारण फंसा हुआ है.
ईचा डैम परियोजना का एक महत्वपूर्ण अंग है. इस डैम की कुल लंबाई 12.68 किमी है. यह बांध दो जिला पश्चिमी सिंहभूम एवं सरायकेला-खरसावां के अंतर्गत होगा. केंद्र से सहायता राशि न मिलने व राज्य बजट में भी इसके लिए प्रावधान न होने से करीब 35 वर्ष पहले वर्ष 1978-79 में शुरू सुवर्णरेखा बहुउद्देशीय परियोजना पर अब भी संकट मंडरा रहा है.
वहीं शुरुआत में विश्व बैंक संपोषित करीब 129 करोड़ लागत वाली यह परियोजना वर्तमान में 6613.74 करोड़ की हो गयी है. वहीं इसके विरुद्ध प्रोजेक्ट पर अब तक 3585.40 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं.
नेशनल प्रोजेक्ट बनाने की पहल
सुवर्णरेखा बहुउद्देशीय परियोजना पर पहले केंद्रीय सहायता लागत का 90 फीसदी थी. फिर इसे घटा कर 75 फीसदी कर दिया गया. अब केंद्र सरकार सहायता पैटर्न 50:50 करने जा रही है.
झारखंड इसमें बदलाव चाहता है. विभागीय सूत्रों के अनुसार, विभाग की वित्तीय स्थिति ऐसी नहीं है कि वह अकेले सुवर्णरेखा जैसी बड़ी परियोजना पर ही बड़ी रकम खर्च कर सके .
इसलिए इस प्रोजेक्ट को नेशनल प्रोजेक्ट घोषित करवाने पर विभाग विचार कर रहा है. यदि केंद्र ने मान लिया, तो सुवर्णरेखा परियोजना राष्ट्रीय परियोजना हो जायेगी. तब इसे फिर से केंद्रीय सहायता के रूप में 90 फीसदी राशि मिल सकेगी. राज्य सरकार को 10 फीसदी रकम ही खर्च करनी होगी.
मार्च 2018 तक का है समय
राज्य सरकार ने केंद्र को यह आश्वासन दिया था कि यह परियोजना 2016 तक पूरी कर ली जायेगी. केंद्र ने इसी आश्वासन के बाद राज्य को एआइबीपी के तहत 4224 करोड़ की सहायता की सहमति दी थी. शर्त यह थी कि काम समय पर न हुआ, तो यह रकम ऋण में बदल जायेगी.
तब मूल के साथ-साथ इसका सूद भी चुकाना होगा. इसके लिए राज्य सरकार ने केंद्र सरकार के साथ एग्रीमेंट भी किया था, पर प्रोजेक्ट पूरा होने में विलंब व राज्य सरकार के आग्रह के बाद योजना आयोग ने सुवर्णरेखा बहुउद्देशीय परियोजना को पूरा करने की मियाद 31 मार्च 2018 तक बढ़ा दी है. साथ ही यह भी कहा है कि इसके बाद और समय नहीं दिया जायेगा.
झारखंड, ओड़िशा और बंगाल को मिलना है लाभ
रांची के नगड़ी भदवा से निकलने वाली सुवर्णरेखा नदी की कुल लंबाई 395 किमी है. पहले 224 किमी तक यह नदी झारखंड में बहती है. वहीं पश्चिम बंगाल में 64 किमी तक बहने के बाद यह ओड़िशा में प्रवेश करती है.
अंतिम 62 किमी तक यह नदी ओड़िशा में बहते हुए बालासोर जिले के पास बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है. इसका कुल कैचमेंट एरिया तीनों राज्यों को मिला कर 12978.48 वर्ग किमी है.
वर्ष 1972 में सुवर्णरेखा बहुउद्देशीय परियोजना की कल्पना की गयी थी. परियोजना का लाभ पेयजल (मानगो, आदित्यपुर, चाईबासा, राजनगर व अन्य), सिंचाई (झारखंड-2.36 लाख हेक्टेयर, ओड़िशा-90 हजार हेक्टेयर व प. बंगाल-पांच हजार हेक्टेयर), बिजली उत्पादन (चांडिल बायीं मुख्य नहर पर आठ मेगावाट की पनबिजली योजना) व बाढ़ नियंत्रण (झारखंड के जमशेदपुर, प. बंगाल के मिदनापुर व ओड़िशा के बारीपदा में) के रूप में मिलना था.
वर्ष 1978 में सुवर्णरेखा बेसिन के पानी के उपयोग के लिए तीन राज्यों तत्कालीन बिहार, पश्चिम बंगाल व ओड़िशा सरकार के बीच त्रिपक्षीय समझौता हुआ था.
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