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शुरू में होते थे दो शो

शहर में सिनेमा हॉल के आरंभ के दिनों में सिर्फ दो शो ही दिखाये जाते थे. पहला शो शाम के छह बजे से रात के नौ बजे तक का हुआ करता था. वहीं दूसरा शो रात के नौ बजे से देर रात 12 बजे तक चलता था. बाद में दर्शकों की बढ़ती संख्या और मांग […]

शहर में सिनेमा हॉल के आरंभ के दिनों में सिर्फ दो शो ही दिखाये जाते थे. पहला शो शाम के छह बजे से रात के नौ बजे तक का हुआ करता था. वहीं दूसरा शो रात के नौ बजे से देर रात 12 बजे तक चलता था. बाद में दर्शकों की बढ़ती संख्या और मांग को ध्यान में रखते हुए मैटिनी शो की शुरुआत की गयी. ये मैटिनी शो सिर्फ शनिवार और रविवार को दोपहर तीन बजे से शाम के छह बजे तक चला करता था.टिकटों के लिए होती थी मारामारीजब सिनेमा हॉल दर्शकों के बीच पॉपुलर होने लगा था, तब शो के टिकट के लिए काफी मारामारी होती थी. उन दिनों थर्ड व सेकेंड श्रेणी की टिकट के लिए काफी मारामारी हुआ करती थी. चूंकि उस समय टिकटों में नंबर नहीं हुआ करते थे. इसलिए अच्छी सीट के लिए देखने वालों के बीच काफी धक्का-मुक्की भी हो जाया करती थी….और टिकटों में लिखा जाने लगा सीट नंबरआरंभ के दिनों में टिकटों में नंबर नहीं लिखा होने की वजह से काफी मुश्किल होती थी. देश की आजादी के बाद बिहार के प्रथम राज्यपाल जय रामदास दौलत राम को यहां के सिनेमाघरों में टिकटों की कालाबाजारी और अव्यवस्था के संबंध में पता चला. वे स्वयं दर्शक के रूप में टिकट लेने आये. उन्हें इसी अव्यवस्था की वजह से टिकट नहीं मिल पायी. इसी घटना के बाद उन्होंने सभी सिनेमा घरों में टिकट पर सीट नंबर लगाने का आदेश दिया.

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