रांची: आवास बोर्ड के अधिकारियों ने मुर्दे के साथ जमीन देने का एकरारनामा किया. बोर्ड के तत्कालीन कार्यपालक अभियंता सहित अन्य ने निबंधन कार्यालय में एक व्यक्ति की पहचान मृतक के नाम से की. एकीकृत बिहार के समय हुई जालसाजी के पकड़ में आने के बावजूद झारखंड राज्य आवास बोर्ड के अधिकारियों ने जमीन के हस्तांतरण की अनुमति दे दी. इस मामले के पकड़ में आने के बाद इस मामले में शामिल झारखंड आवास बोर्ड के तत्कालीन एमडी मुनेश्वर राम सहित अन्य के विरुद्ध कार्रवाई की अनुशंसा की गयी है. एकीकृत बिहार के समय आवास बोर्ड ने 27 जुलाई 1978 को तपेश्वर प्रसाद नामक व्यक्ति को जमीन आवंटित करने से संबंधित आदेश जारी किया था.
इसमें उन्हें हरमू आवासीय कॉलोनी में प्लॉट संख्या डी/9 आवंटित किया गया था. हालांकि तपेश्वर प्रसाद ने बोर्ड के साथ जमीन लेने के लिए एकरारनामा नहीं किया. पांच नवंबर 1992 को उनकी मौत हो गयी. इसके बाद उनकी पत्नी ने 11 नवंबर 1992 को उनका मृत्यु प्रमाण बोर्ड में जमा किया. आवंटी की मौत होने और बोर्ड के साथ एकरारनामा नहीं होने की वजह से बोर्ड ने तपेश्वर प्रसाद द्वारा जमा करायी अग्रधन की राशि वापस लौटा दी. उनकी मौत के करीब दो साल बाद आवास बोर्ड के तत्कालीन अधिकारियों ने जालसाजी कर मृतक के नाम जमीन का एकरारनामा कर दिया. मृतक के नाम जमीन का निबंधित एकरारनामा करने के मामले में तत्कालीन कार्यपालक अभियंता ए नबी, ब्रज मोहन प्रसाद सिंह और उच्च वर्गीय लिपिक राम कुमार साहू शामिल थे.
इन लोगों ने सुनियोजित साजिश के तहत प्लॉट संख्या डी/9 को हस्तांतरित करने के लिए एकरारनामा तैयार किया. इसके बाद सात दिसंबर 1994 को किसी व्यक्ति को निबंधन कार्यालय में पेश कर तपेश्वर प्रसाद के रूप में उसकी पहचान की और एकरारनामे को निबंधित कराया. चूंकि तपेश्वर प्रसाद की मौत हो चुकी थी, इसलिए इस जमीन के एकरारनामे के आलोक में किसी ने किस्त की रकम जमा नहीं की.
राज्य विभाजन के बाद वर्ष 2008 में अचानक इस जमीन को तपेश्वर प्रसाद की पत्नी स्वर्णिमा सिन्हा के नाम हस्तांतरित करने की कार्रवाई शुरू हुई. बोर्ड के तत्कालीन एमडी मुनेश्वर राम ने 28 अगस्त 2008 को झारखंड आवास बोर्ड के बिहार आवास बोर्ड से प्लॉट संख्या डी/9 के आवंटन आदि से जुड़ी मूल फाइल की मांग की. उसी दिन उन्होंने स्वर्णिमा सिन्हा को प्रशासनिक शुल्क के रूप में 1000 रुपये और किस्त व सूद के रूप में 1.62 लाख रुपये जमा करने का आदेश दिया. इसका उद्देश्य आवंटन को पुनर्जीवित और नामांतरण करना बताया गया. बोर्ड के तत्कालीन कार्यपालक अभियंता ने इस मामले में अपनी राय देते हुए लिखा कि अग्रधन वापस करने के बाद आवंटन को पुनर्जीवित करना कानूनी तौर पर सही नहीं है. भू-संपदा पदाधिकारी ने अपनी टिप्पणी में यह सवाल उठाया कि तपेश्वर प्रसाद की मृत्यु के दो साल बाद उनके साथ एकरारनामा कैसे किया गया? इन आपत्तियों को नजर अंदाज करते हुए तत्कालीन प्रबंध निदेशक ने 15 अक्तूबर 2008 को आवंटन को पुनर्जीवित और नामांतरण करने की अनुमति दे दी.