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आदिवासियों को कर्ज दिलाने में सरकार विफल

रांची: आदिवासियों को गृह निर्माण व शैक्षणिक कार्यो के लिए ऋण दिलाने में सरकार विफल रही है. मामला कानूनी राय तथा हाइकोर्ट के हस्तक्षेप के बाद भी आज तक सुलझा नहीं है. एक ओर सरकार उपरोक्त कार्यो के लिए भूमि बंधक रख कर लोन लेने की बात कहती है, तो दूसरी ओर बैंक छोटानागपुर कास्तकारी […]

रांची: आदिवासियों को गृह निर्माण व शैक्षणिक कार्यो के लिए ऋण दिलाने में सरकार विफल रही है. मामला कानूनी राय तथा हाइकोर्ट के हस्तक्षेप के बाद भी आज तक सुलझा नहीं है. एक ओर सरकार उपरोक्त कार्यो के लिए भूमि बंधक रख कर लोन लेने की बात कहती है, तो दूसरी ओर बैंक छोटानागपुर कास्तकारी अधिनियम (सीएनटी) तथा संताल परगना कास्तकारी अधिनियम (एसपीटी) की विभिन्न धाराओं का हवाला देकर ऋण देने से इनकार करते हैं. यहां तक कि सीएनटी व एसपीटी में प्रावधान रहने के बावजूद आदिवासियों के लिए कृषि ऋण भी ले पाना मुश्किल है.

दरअसल बैंक ऋण न चुका पाने की स्थिति में रिकवरी को लेकर चिंतित होते हैं. ऋण संबंधी यह मामला वर्ष 2005 से ही चर्चा में रहा है. वर्ष 2005 में अनुसूचित जनजाति (एसटी) समुदाय के लोगों को गृह निर्माण व शिक्षा के लिए ऋण ले सकने संबंधी चिट्ठी निकाली गयी थी, पर बाद में सीएनटी का हवाला देते हुए उपायुक्त रांची ने विभाग को पत्र लिख कर (संख्या 1647, दिनांक-16.1.07) से इस संबंध में मार्गदर्शन मांगा था.

तत्कालीन भू राजस्व सचिव विष्णु कुमार ने विधि विभाग से राय ली थी तथा इस क्रम में महाधिवक्ता के परामर्श का हवाला देते हुए 30 जुलाई 2007 को एक चिट्ठी निकाली थी. इसमें महाधिवक्ता की राय को कोट करते हुए लिखा था कि जनजातीय समुदाय के लोग अपनी रैयती भूमि बंधक रख कर गृह निर्माण व शिक्षा के लिए ऋण नहीं ले सकते हैं. सीएनटी की धारा 46, 47 व 49 के तहत कोई भी आदिवासी गृह निर्माण व शिक्षा के लिए न तो अपनी जमीन बंधक रख कर और न ही बैंक को ट्रांसफर कर ऋण ले सकता है. इधर, इस विभागीय चिट्ठी (दिनांक- 30 जुलाई 2007) के खिलाफ झारखंड हाइकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गयी. फेलिक्स तांबा बनाम झारखंड सरकार व अन्य के मामले में हाइकोर्ट ने विभागीय चिट्ठी को विधि विरुद्ध तथा अनुचित ठहराते हुए याचिका स्वीकृत कर ली थी. सुनवाई के बाद हाइकोर्ट की दो सदस्यीय खंडपीठ ने विस्तृत आदेश भी दिया था.

इसके आलोक में तत्कालीन भू राजस्व सचिव आरएस पोद्दार ने 19 नवंबर 2008 को चिट्ठी जारी कर पहले की विभागीय चिट्ठी (30 जुलाई 2007) को निरस्त कर दिया था. हेमंत सरकार के कार्यकाल के दौरान भी आदिवासियों को घर व शिक्षा के नाम पर बैंक के पास जमीन बंधक रख कर ऋण ले सकने संबंधी चिट्ठी जारी हुई थी. पर इस पूरी सरकारी कवायद का लाभ आदिवासियों को नहीं मिला और न ही मिल रहा है. अब राजस्व व भू सुधार विभाग ने जनजातीय समुदाय के जरूरतमंद लोगों को गृह निर्माण व शिक्षा सहित व्यावसायिक ऋण दिलाने के लिए सीएनटी व एसपीटी एक्ट की संबंधित धाराओं में संशोधन करने संबंधी प्रारूप तैयार किया है. प्रारूप को सहमति के लिए जनजातीय सलाहकार परिषद (टीएसी) को भेजा गया है. संशोधन हो गया, तभी जनजातीय समुदाय के लोगों को बैंक से ऋण मिलने क रास्ता साफ हो सकेगा.

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