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अवैध वसूली पूरी तरह ठप व्यवसायियों को मिली राहत
बाजार समिति से हटा टैक्स कई नेताओं व अफसरों का धंधा चौपट सुबह चार बजे से ही शुरू हो जाती थी अवैध इंट्री रांची : बाजार समिति से टैक्स हट जाने का असर पंडरा सहित सारे बाजार पर दिख रहा है. गाड़ियों की भागमभाग और अवैध वसूली को लेकर दांव-पेंच का धंधा पूरी तरह बंद […]
बाजार समिति से हटा टैक्स
कई नेताओं व अफसरों का धंधा चौपट
सुबह चार बजे से ही शुरू हो जाती थी अवैध इंट्री
रांची : बाजार समिति से टैक्स हट जाने का असर पंडरा सहित सारे बाजार पर दिख रहा है. गाड़ियों की भागमभाग और अवैध वसूली को लेकर दांव-पेंच का धंधा पूरी तरह बंद हो गया है. सुबह चार बजे से पंडरा बाजार में रौनक दिखने लगती थी. कृषि उत्पादों से लदे ट्रकों की अवैध इंट्री भी शुरू हो जाती थी. अब सब कुछ बंद हो गया है.
इतना ही नहीं बाजार के बाहर सड़कों पर गाड़ियों को पकड़ने और उनसे मोटी रकम की वसूली का धंधा भी बंद हो गया है. कुल मिला कर धंधे में लिप्त लोगों के लिए बाजार सूना हो गया है. सामान्य रूप से मालों से लदे ट्रकों की इंट्री हो रही है. ट्रक पर क्या माल है, ओवरलोडिंग है या नहीं, देखनेवाला कोई नहीं है. पहले जहां बाजार समिति के चतुर्थवर्गीय कर्मी भी मुस्तैद दिखते थे, अब अफसर-सुपरवाइजर तक सुस्त हो गये हैं. अफसरों-कर्मचारियों से लेकर नेताओं व बड़े साहबों का धंधा भी चौपट हो गया है.
करोड़ों की होती थी अवैध वसूली
पहले बाजार से करोड़ों की वसूली की सूचना सामने आती थी. इसमें सबकी मिलीभगत की बातें कई बार सामने आयीं. यहां तक कि सेवानिवृत्त कर्मी भी इस अवैध वसूली में लगे हुए थे. ओवर लोड माल को कम दिखा कर राशि की वसूली की जाती थी. वहीं कई ट्रकों की इंट्री तक नहीं होती थी. सारा पैसा मिलीभगत कर अफसर-कर्मचारी हड़प जाते थे. यह सिलसिला यहां वर्षो से चल रहा था. इस राशि की बंदरबांट नीचे से लेकर ऊपर तक होती थी. ये बातें सामने आ रही थीं कि हर दिन यहां 200 ट्रकों की इंट्री होती थी, लेकिन कागज में सिर्फ 70 की इंट्री दिखायी जा रही थी. इस तरह 130 ट्रकों का टैक्स चुरा लिया जा रहा था.
होश उड़ गये हैं नेताओं-अफसरों के
बाजार समिति से कई नेताओं व बड़े अफसरों का धंधा चलता था. चावल-चीनी से लेकर दाल व मसाला तक उनके घरों में यहां से मुफ्त जाते थे. लंबे समय से उनका घर मुफ्त के सामानों से चल रहा था. यहां तक कि काजू-किशमिश-बादाम भी वे यहीं का खा रहे थे.
कुछ नेताओं की राजनीति भी यहीं से चल रही थी. उनके निर्देश पर उनके जरूरतमंद समर्थकों के घरों में भी यहीं से मुफ्त में चावल, दाल, आटा, तेल जाता था. कई छोटे नेताओं की रोजी रोटी पूरी तरह यहीं से चलती थी. बड़े साहबों (राज्य स्तरीय) के घरों में सामान हर महीने समय से पहुंच जाता था. बदले में वे गोरख धंधे में लगे लोगों को संरक्षण देते रहे. अब इन सबके होश उड़ गये हैं. हर महीने पैसा लगा कर दाल-चावल खरीदना पड़ रहा है.
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