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लीज के चक्कर में उलझा खान विभाग

सुनील चौधरी रांची : राजकुमारी दौलत कुमारी के नाम 999 वर्ष के खनन के लिए दिया गया लीज सरकार के लिए सिर दर्द बना हुआ है. पालीगंज के तत्कालीन राजा जगरनाथ सिंह ने अपनी बेटी राजकुमारी दौलत कुमारी के नाम 999 वर्ष के लिए 22 मौजा का लीज देकर सरकार को यह दर्द दिया था. […]

सुनील चौधरी
रांची : राजकुमारी दौलत कुमारी के नाम 999 वर्ष के खनन के लिए दिया गया लीज सरकार के लिए सिर दर्द बना हुआ है. पालीगंज के तत्कालीन राजा जगरनाथ सिंह ने अपनी बेटी राजकुमारी दौलत कुमारी के नाम 999 वर्ष के लिए 22 मौजा का लीज देकर सरकार को यह दर्द दिया था.
सरकार इस मामले को एमएमडीआर के दायरे में लाने की कोशिश कर रही है. दूसरी तरफ राजा की तीसरी पीढ़ी कूी ओर से पावर ऑफ एटार्नी लेनेवाले सरकारी कोशिश से बचने के लिए यह दलील पेश की जा रही है कि अभी का कानून राजा के आदेश को प्रभावित नहीं कर सकता है.
क्या है मामला
वर्ष 1937 में पालीगंज स्टेट के तत्कालीन राजा जगरनाथ सिंह ने अपनी बेटी राज कुमारी दौलत कुमारी को गिरिडीह जिले के 22 मौजा का लीज दिया था. राजा ने लीज की अवधि 999 वर्ष निर्धारित की थी.1103.50 हेक्टेयर की इस लीज भूमि में फेल्सपार, क्वार्टज, सोप स्टोन, माइका व सिलिकॉन जैसे मिनरल हैं.
राजा की तीसरी पीढ़ी तक ने लीज नवीकरण नहीं कराया, क्योंकि इसकी अवधि 999 वर्ष निर्धारित है. राजकुमारी दौलत कुमारी ने बाद में अपने दामाद द्वारका प्रसाद सिंह के नाम लीज हस्तांतरित कर दी. 12.10.2009 को द्वारका प्रसाद सिंह का निधन हो गया.
निधन के पूर्व उन्होंने संजय वर्मा एवं मंगलमय पुरुषोत्तम के पक्ष में लीज हस्तांतरित कर दिया. इन दोनों ने लीज का पावर ऑफ अटार्नी कुणाल वर्मा के नाम कर दी. इसी दौरान केंद्र सरकार ने नये एमएमडीआर संशोधन एक्ट को जनवरी 2015 में लागू कर दिया.
इसके तहत अब किसी को 20 और 30 साल से अधिक का लीज नहीं दिया जा सकता. खान विभाग इस लीज को भी इस एक्ट के दायरे में लाना चाहता है. लीज धारक इसके पूर्व सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया था. कोर्ट द्वारा कहा गया था कि जब लीज 999 वर्ष के लिए दिया गया है, तो यह वैध है.
लीजधारक को लीज नवीकरण कराने की जरूरत नहीं है. इधर, गिरिडीह जिला खनन कार्यालय द्वारा लीज धारक द्वारा खनिजों की खुदाई पर रोक लगा दी गयी है. कहा गया है कि न तो पर्यावरण स्वीकृति और न ही फॉरेस्ट क्लीयरेंस लिया गया है, जबकि लीज धारक का तर्क है कि जब लीज दिया गया था, तब ऐसा कोई प्रावधान नहीं था कि वन एवं पर्यावरण की स्वीकृति ली जाये.
महाधिवक्ता की राय लेगा विभाग
गिरिडीह जिला खनन कार्यालय द्वारा मामले की गंभीरता को देखते हुए मुख्यालय से राय मांगी गयी है. संचिका मुख्यालय भेज दी गयी है. मुख्यालय में खान विभाग के अधिकारी इस मोटी फाइल का लगातार अध्ययन कर रहे हैं.
सूत्रों ने बताया कि विभाग अब इसी निष्कर्ष पर पहुंचा है कि पूरे मामले में महाधिवक्ता की राय ली जाये कि किस प्रकार इस लीज को नियम-कानून के दायरे में लाया जाय. एक तरफ एनजीटी का निर्देश है कि बिना पर्यावरण स्वीकृति के किसी भी माइंस से खुदाई न होने दिया जाय. दूसरी तरफ लीजधारक पुरानी लीज का हवाला देते हुए अपने आपको इस दायरे से बाहर मानता है.

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