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पूरा राज्य ङोल रहा बिजली संकट

बिजली व्यवस्था सुधारने के लिए पांच वर्षो में नहीं हुआ कोई खास काम, अब बढ़े उपभोक्ता, बढ़ी खपत, लेकिन नहीं सुधरी बिजली व्यवस्था त्नराज्य में कहीं भी 20 घंटे तक बिजली नहीं सुनील चौधरी रांची : झारखंड में बिजली आपूर्ति लचर है. सुधार के लाख दावों के बावजूद बिजली का कटना जारी है. पांच साल […]

बिजली व्यवस्था सुधारने के लिए पांच वर्षो में नहीं हुआ कोई खास काम, अब
बढ़े उपभोक्ता, बढ़ी खपत, लेकिन नहीं सुधरी बिजली व्यवस्था त्नराज्य में कहीं भी 20 घंटे तक बिजली नहीं
सुनील चौधरी
रांची : झारखंड में बिजली आपूर्ति लचर है. सुधार के लाख दावों के बावजूद बिजली का कटना जारी है. पांच साल पहले जो स्थिति थी, आज भी लगभग वही स्थिति है. राजधानी रांची में 18 से 20 घंटे ही बिजली मिल पाती है तो अन्य इलाकों में इससे भी कम 15 से 18 घंटे तक ही बिजली मिल पाती है.
राज्य का कोई भी हिस्सा ऐसा नहीं है, जहां 24 घंटे निर्बाध रूप से बिजली आपूर्ति हो सके. गरमी के मौसम में लगातार पावर कटौती से लोग परेशान हैं. कहा जा रहा है कि ट्रांसफारमर और तार की क्षमता इतनी नहीं है कि गरमी में बिजली की फुल लोड आपूर्ति की जा सके. जिसके चलते समय-समय पर बिजली कटती रहती है.
26 लाख हो गये बिजली के उपभोक्ता
वर्ष 2010 में राज्य में 14 लाख बिजली के उपभोक्ता थे. जो 2015 में बढ़ कर26 लाख हो गये हैं.उस समय बिजली की मांग 82 करोड़ यूनिट बिजली की खपत प्रतिमाह होती थी और राजस्व 125 करोड़ मिलता था. जबकि खर्च 260 करोड़ रुपये प्रतिमाह था. अब उपभोक्ताओं की संख्या बढ़ने से प्रतिमाह 97 करोड़ यूनिट की खपत होती है. राजस्व 220 करोड़ ही प्राप्त होता है. जबकि बोर्ड 370 करोड़ रुपये की बिजली प्रतिमाह खरीदता है. स्थापना व्यय 35 करोड़ के करीब है. यानी बोर्ड को प्रतिमाह अभी भी 185 करोड़ रुपये का घाटा हो रहा है.
14 मेगावाट बिजली भी जोड़ नहीं सकी सरकार
झारखंड गठन के 14 वर्ष बीत चुके हैं. इन 14 वर्षो में राज्य सरकार अपने बूते 14 मेगावाट बिजली भी नहीं जोड़ सकी है. केवल दो निजी कंपनियों इनलैंड पावर से 55 मेगावाट व आधुनिक पावर 122 मेगावाट अतिरिक्त बिजली राज्य को मिलने लगी. पीटीपीएस की स्थिति जस की तस है. उत्पादन बढ़ाने के बड़े-बड़े वायदे हुए पर उत्पादन नहीं बढ़ सका. पीटीपीएस की स्थिति यह है कि यहां हर माह 20 से 25 करोड़ रुपये खर्च होते हैं.
जबकि 10 से 12 करोड़ रुपये की बिजली का उत्पादन होता है. पीटीपीएस से बिजली उत्पादन की लागत लगभग चार रुपये प्रति यूनिट की आती है. पीटीपीएस में 10 यूनिट हैं. पर कार्यरत केवल तीन यूनिट ही हैं. मरम्मत के कई प्रयास किये गये, पर उत्पादन नहीं बढ़ सका. पीटीपीएस के जीर्णोद्धार पर अबतक 470 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं.
वहीं इसके संचालन पर 14 वर्षो में 2800 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं. पर नतीजा सिफर ही रहा है. वर्तमान रघुवर दास की सरकार ने एनटीपीसी के हाथों पीटीपीएस का संचालन सौंप दिया है. एनटीपीसी वहां चार हजार मेगावाट का पावर प्लांट लगायेगा और पीटीपीएस के वर्तमान प्लांट से उत्पादन 325 मेगावाट तक बढ़ायेगा.
यह काम पांच वर्ष पहले पूरा करने की बात कही गयी थी.इस समय बिजली की पूरी निर्भरता टीवीएनएल पर है. यहां से लगभग 380 मेगावाट बिजली का उत्पादन होता है. सिकिदिरी हाइडल की स्थिति सामान्य नहीं है. केवल बारिश के मौसम में ही यह यूनिट चालू होती है. इससे 120 मेगावाट बिजली का उत्पादन होता है वह भी पीक आवर में केवल तीन घंटे के लिए ही.
छोड़ कर जा रहे हैं निवेशक
निजी कंपनियों में 34 कंपनियों ने यहां लगभग 51 हजार मेगावाट बिजली उत्पादन के लिए एमओयू किया था. पर इनमें से केवल अब छह कंपनियां ही बची हैं. 28 कंपनियों ने झारखंड से नाता तोड़ लिया है.
वहीं तिलैया में केंद्र सरकार की परियोजना 3960 मेगावाट अल्ट्रा मेगा पावर प्रोजेक्ट से भी रिलायंस ने हाथ खींच लिया है. कारण है कि सरकार जमीन नहीं दे सकी. अब सरकार उसे पुनर्विचार का आग्रह कर रही है. इन सभी परियोजनाओं पर पांच वर्ष पहले ही काम किया गया होता तो आज झारखंड बिजली के मामले में न केवल आत्मनिर्भर होता बल्कि दूसरे राज्यों को आपूर्ति करने में भी सक्षम होता.
आधारभूत संरचना नहीं, लचर है आपूर्ति
बिजली की आधारभूत संरचना सुधरे, इसके लिए हमेशा वादे किये गये. पर ठोस काम नहीं हो सका है.झारखंड गठन के समय अंडरग्राउंड केबलिंग का काम शुरू हुआ था. पर बाद में इसे आगे नहीं बढ़ाया गया. राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना के तहत लगभग 17 हजार गांवों का विद्युतीकरण किया गया. पर वहां बिजली मिले, इसकी समुचित व्यवस्था नहीं है. परिणामस्वरूप एक बार ट्रांसफारमर जल जाने पर महीनों तक गांव में बिजली गुल रहती है.
शहर में बारिश के दौरान ग्रिड फेल होते रहे हैं. पर इसकी भी कोई ठोस व्यवस्था नहीं की गयी. हाल ही में रांची के हटिया ग्रिड में दो पावर ट्रांसफारमर जले. जिसके कारण रांची, लोहरदगा में बिजली की समस्या खड़ी हो गयी. कारण है कि सरकार के पास बैकअप में ट्रांसफारमर नहीं है. दूसरी ओर गढ़वा जिले में आज भी यूपी पर ही बिजली की निर्भरता है. दुमका समेत संताल-परगना में पूरी व्यवस्था बिहार व एनटीपीसी के कहलगांव पावर प्लांट पर आश्रित है. इसे ललपनिया और पतरातू से जोड़ने का काम आज तक नहीं हो सका है.
घाटे में चल रहे हैं निगम
भारी घाटे में चल रहे झारखंड विद्युत बोर्ड को घाटे से उबारने के लिए सरकार ने जनवरी 2014 में बिजली बोर्ड का बंटवारा किया. वर्ष 2010 में बोर्ड का घाटा 135 करोड़ रुपये प्रतिमाह था. घाटे से उबारने के लिए ही ऊर्जा विकास निगम, वितरण निगम, संचरण निगम और उत्पादन निगम जैसी कंपनियां बनायी गयीं. पर ये स्वतंत्र रूप से काम नहीं कर सकीं.
कारण है कि सरकार अपने पसंद के अफसरों को सीएमडी और एमडी बनाने लगी. जिसके कारण बिजली आपूर्ति भी नहीं सुधरी और घाटा भी बढ़ता गया. अभी वितरण निगम को प्रतिमाह 185 करोड़ रुपये का घाटा हो रहा है. जिसके चलते आधारभूत संरचना पर खर्च नहीं हो पा रहा है. बोर्ड के अधिकारियों व कर्मचारियों के भारी-भरकम वेतन पर ही 35 करोड़ रुपये प्रतिमाह खर्च हो रहे हैं.
मांग के अनुरूप नहीं है बिजली
झारखंड में बिजली की मांग दिनों दिन बढ़ती जा रही है. अभी 2100 मेगावाट बिजली की जरूरत है. सरकार किसी तरह 1800 मेगावाट बिजली की जरूरत पूरी कर पा रही है. जिसके कारण कभी भी पूरे राज्य में जीरो कट बिजली आपूर्ति नहीं की जाती. ग्रामीण इलाकों में आज भी 10 से 12 घंटे ही बिजली मिलती है. जबकि शहरी इलाकों में औसतन 16 से 18 घंटे बिजली मिल रही है.
भूख हड़ताल पर बैठे माले विधायक
रांची : माले विधायक राजकुमार यादव शनिवार को धनवार क्षेत्र में बिजली की खराब स्थिति को लेकर अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठ गये हैं. पिछले दो दिनों से वह राजधनवार पावर हाउस के समीप घेरा डालो-डेरा डालो कार्यक्रम चला रहे थे.
श्री कुमार ने बताया कि मुख्यमंत्री ने 30 मार्च को सदन में आश्वासन दिया था कि एक माह में समस्या दूर कर देंगे. लेकिन, अब तक कुछ नहीं हुआ. ऊर्जा सचिव से भी क्षेत्र को लेकर बात की थी, उनका आश्वासन भी पूरा नहीं हुआ.

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