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राज्य में 35 बोर्ड निगमों के पुनर्गठन की प्रक्रिया शुरू होते ही भाजपा में गतिविधियां तेज
सरकार महत्वपूर्ण योजनाओं में भी सांसदों और विधायकों की राय को देती है तरजीह रांची : राज्य में 35 बोर्ड निगमों के पुनर्गठन की प्रक्रिया शुरू होते ही भारतीय जनता पार्टी में गतिविधियां तेज हो गयी हैं. हालांकि अब तक किसी ने अपनी दावेदारी पेश नहीं की है. सूत्रों के अनुसार सरकार और संगठन के […]
सरकार महत्वपूर्ण योजनाओं में भी सांसदों और विधायकों की राय को देती है तरजीह
रांची : राज्य में 35 बोर्ड निगमों के पुनर्गठन की प्रक्रिया शुरू होते ही भारतीय जनता पार्टी में गतिविधियां तेज हो गयी हैं. हालांकि अब तक किसी ने अपनी दावेदारी पेश नहीं की है. सूत्रों के अनुसार सरकार और संगठन के बीच सामंजस्य स्थापित करने की कोशिश की जा रही है.
इसके तहत मुख्यमंत्री संगठन के पदाधिकारियों से भी विचार-विमर्श कर रहे हैं. हालांकि इसका कोई ठोस नतीजा अब तक नहीं निकला है, जिसके चलते बोर्ड-निगमों के पुनर्गठन का मामला अब तक लंबित है.
संगठन के करीब सरकार : पार्टी के एक पदाधिकारी ने बताया कि ऐसा पहली बार हो रहा है कि हर महत्वपूर्ण फैसले में पार्टी की राय ली जा रही है. पार्टी के पदाधिकारी ने बताया कि सरकार महत्वपूर्ण योजनाओं में भी सांसदों और विधायकों की राय को तरजीह देती है. यही वजह है कि समय-समय पर मुख्यमंत्री सांसदों और विधायकों के साथ बैठक करते रहते हैं.
सांसदों और विधायकों के साथ मुख्यमंत्री ने सरकारी योजनाओं पर सुझाव लेने के लिए 14 मई को बैठक बुलायी है. तबादलों के मुद्दे पर सरकार ज्यादा पैरवी भले ही न सुनती हो, पर डीएसपी, डीडीसी और बीडीओ स्तर के तबादले पर जनप्रतिनिधियों की पसंद का भी ख्याल रखा जाता है.
कार्यकर्ता दरबार बना जनता दरबार : सूत्रों ने बताया कि सरकार को कार्यकर्ताओं तक ले जाने के प्रयास के तहत ही भाजपा कार्यालय में कार्यकर्ता दरबार का आयोजन किया गया था. इसमें कार्यकर्ता कम और जनता ज्यादा आने लगी.
इसके चलते सीएम ने संवाद और समाधान केंद्र बनवा दिया, ताकि जनता अपनी शिकायतों को वहां रख सके. अब मुख्यमंत्री सुबह नौ से 11 बजे तक और शाम के पांच से नौ बजे तक कार्यकर्ता, पार्टी के नेता व कुछ अन्य लोगों से मिलते हैं. मुख्यमंत्री आवास के सूत्रों ने बताया कि मुलाकातियों में ज्यादातर संख्या भाजपा के नेताओं की ही रहती है.
आसानी से मिल सकते हैं जनप्रतिनिधि : भाजपा सूत्रों का कहना है कि विधायक व सांसदोंसे मुख्यमंत्री कम ही मिलते हैं?
मुख्यमंत्री आवास के सूत्रों ने इस पर बताया कि आरंभ में कोई सिस्टम नहीं रहने की वजह से ऐसा हुआ होगा, पर अब मुख्यमंत्री का साफ-साफ निर्देश है कि जब भी कोई जनप्रतिनिधि चाहे पार्टी का हो या किसी अन्य पार्टी का, मिलना चाहे, तो उन्हें इंतजार न कराया जाये. जनप्रतिनिधि मिलने से पहले केवल सूचित करके मिलने आ सकते हैं. हाल के दिनों में यह व्यवस्था की गयी है, ताकि जनप्रतिनिधि आसानी से मुख्यमंत्री से मिल सकें.
कुछ हम सुने, कुछ सरकार सुने : मनीष जायसवाल
हजारीबाग के विधायक मनीष जायसवाल का कहना है कि विधायकों से सीएम नहीं मिलते, ऐसी गलत बातें प्रचारित की जा रही है. उन्हें अब तक कोई परेशानी नहीं हुई है.
जब भी सीएम से मिलना होता है, आधा या एक घंटा पहले पता कर लेते हैं कि सीएम कार्यालय में हैं या नहीं. इसके बाद मिलने आ जाते हैं. सीएम विधायकों की बातों को गंभीरता से सुनते हैं.
सुझावों पर काम भी करते हैं. ऐसा नहीं होता, तो सीएम भला सांसद और विधायकों की बैठक ही क्यों बुलाते. यह तो एक बेहतर प्रयास है, ताकि संगठन और सरकार में समन्वय हो सके. कुछ हम सरकार की सुनें और कुछ हमारी सरकार सुने, यही तो समन्वय है.
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