राजीव पांडेय,रांचीः राजधानी में स्वैच्छिक रक्तदान के प्रति लोगों की मानसिकता बदली है. आज रक्तदान के लिए लोग बड़ी संख्या में आ रहे हैं. यही कारण है कि ब्लड बैंकों में ब्लड की स्टोरेज क्षमता पहले से बढ़ी है. रिम्स के ब्लड बैंक के आंकड़े बताते हैं कि रक्तदान करनेवालों की संख्या पहले से काफी बढ़ी है. पिछले पांच साल में रक्तदाताओं की संख्या दोगुनी हो गयी है.
वर्ष 2009 में रिम्स ब्लड बैंक द्वारा 55 कैंप लगाये गये थे, जिसमें रक्तदाताओं की संख्या 1,285 थी, वहीं यह संख्या 2012 में 3,538 हो गयी. 2013 में अगस्त तक 63 कैंप लगाये गये, जिसमें2720 लोगों ने रक्तदान किया.यह खून देनेवाली युवाओं की टोली है. जरूरतमंद बीमार मरीजों के प्रति समर्पित इस ग्रुप का नाम है लाइफ सेवर्स (जीवन रक्षक). रांची, पटना सहित सभी मेट्रो शहरों में लाइफ सेवर्स के करीब तीन हजार सदस्य हैं. झारखंड में रांची के अलावा धनबाद, जमशेदपुर व बोकारो में भी इनका नेटवर्क है.
अतुल गेरा (31) इसके अगुवा हैं, जिन्होंने सोशल नेटवर्किग को इस पुण्य कार्य के प्रचार–प्रसार का माध्यम बनाया है. इस नौजवान ने वर्ष 2005 में लाइफ सेवर्स की स्थापना की. अपने एक संबंधी को खून मिलने में हुई भारी परेशानी इसकी तात्कालिक वजह थी. गुजरे वर्षो में लाइफ सेवर्स ने कई लोगों को जान बचायी है. रविवार 25 अगस्त को छत्तीसगढ़ के राजपुर में रांची से दो यूनिट ए–पोजिटिव खून भेजा गया. सृष्टि वर्मा (23), हरमीत, दाउद कमरान (23), राघव जालान, निशि गुप्ता व अरूप चक्रवर्ती जैसे कई यूथ इस सामाजिक कार्य में अतुल के हमराही हैं.
ज्यादा से ज्यादा युवाओं को रक्तदान से जोड़ने के लिए लाइफ सेवर्स ग्रुप ने झारखंड राज्य एड्स कंट्रोल सोसाइटी के साथ मिल कर स्कूल–कॉलेजों में अवेयरनेस प्रोग्राम भी चलाया है.ज्यादातर लोगों के मन में यह भ्रांति है कि रक्तदान करने से कमजोरी आती है व इससे संक्रमण का खतरा रहता है. दाउद कामरान के अनुसार युवा बेहतर श्रोता हैं, इसलिए उन्हें समझाने में ज्यादा परेशानी नहीं होती. ग्रुप दुर्लभ ब्लड ग्रुपवालों का पूरा ब्योरा रखता है. लाइफ सेवर्स व इसके स्वयं सेवकों की एक खासियत है. यह अपने नाम के साथ अपना ब्लड ग्रुप भी लिखते हैं.