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बंद पड़ी पंचायतें : झारखंड के अधूरे विकेंद्रीकरण का प्रतीक

सिराज दत्ता ‘‘हम गांव के विकास के लिए काम करना चाहते हैं, लेकिन असहाय हैं. हमारे पास न पैसा है, न कर्मचारी है और न ही सहायता करनेवाला है’’. ये शब्द खूंटी जिला के एक मुखिया के हैं. उनका कार्यकाल इस वर्ष समाप्त होनेवाला है. झारखंड में 32 सालों बाद हुए पंचायती राज चुनाव के […]

सिराज दत्ता

‘‘हम गांव के विकास के लिए काम करना चाहते हैं, लेकिन असहाय हैं. हमारे पास न पैसा है, न कर्मचारी है और न ही सहायता करनेवाला है’’. ये शब्द खूंटी जिला के एक मुखिया के हैं.

उनका कार्यकाल इस वर्ष समाप्त होनेवाला है. झारखंड में 32 सालों बाद हुए पंचायती राज चुनाव के केवल साढ़े चार सालों में पंचायतें दिशाहीन नजर आ रही हैं. झारखंड सरकार की कई कोशिशों के बावजूद ग्रामीण अभी भी विकेंद्रीकृत शासन से वंचित हैं.

बंद पंचायतों की कहानी

पिछले कुछ वर्षो में, झारखंड के अधिकतर ग्राम पंचायतों में बुनियादी सुविधाएं जैसे कंप्यूटर, मेज, इत्यादि से लैस पंचायत भवनों का निर्माण हुआ है. लेकिन, मुआयना करने पर पाया गया कि ये भवन अधिकतर बंद ही रहते हैं. ऐसे अनेक ग्रामीण हैं जो एक बार भी अपने पंचायत कार्यालय नहीं गये. . वे प्रखंड कार्यालय जाना पसंद करते हैं, जहां उन्हें सरकारी योजनाओं की जानकारी एवं सुविधाएं मिलती है. अनेक मुखियाओं का कहना है कि पंचायतों के पास उनके नागरिकों को देने के लिए कोई बुनियादी सेवा नहीं है.

झारखंड पंचायती राज अधिनियम में फंड, योजनाओं एवं पदाधिकारियों के विकेंद्रीकरण का ढांचा दिया गया है, परंतु जमीनी हकीकत कुछ और बताती है. झारखंड सरकार ने 2010 के चुनाव के पश्चात कुछ विभागों के विकेंद्रीकरण हेतु क ई आदेश निकाले थे. अभी तक, बीआरजीएफ, 13वि वित्तीय आयोग और पेयजल एवं स्वच्छता, को ही विकेंद्रीकृत किया गया है. मनरेगा एवं राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य अभियान (एनआरएचएम) जैसे कार्यक्रमों में पंचायतों की भूमिका स्पष्ट है. फिर भी ये कार्यक्रम प्रखंड प्रशासन एवं विभागों द्वारा संचालित होते हैं.

बंद पड़े पंचायत भवन यह संकेत दे रहे हैं कि बुनियादी ढांचा बनाना या सरकारी आदेश प्रकाशित करना ही ग्रामीण नागरिकों तक विकेंद्रीकृत शासन पहुंचाने के लिए काफी नहीं है. पंचायतों में निबंधित पदाधिकारियों एवं कर्मचारियों की कमी भी अधूरे विकेंद्रीकरण का एक प्रतीक है. अधिकतर ग्राम पंचायतों के पास केवल दो ही निबंधित पदाधिकारी हैं, ग्राम रोजगार सेवक व पंचायत सेवक एवं यह अक्सर देखा जाता है कि ये अपना अधिकतम काम पंचायत कार्यालय के बजाय प्रखंड कार्यालय में ही करते हैं.

इन पदाधिकारियों की जवाबदेही भी पंचायत मुखिया के बजाय प्रखंड विकास पदाधिकारी के प्रति है. प्रखंडस्तरीय पंचायत समिति की भी कुछ ऐसी ही कहानी है. खूंटी जिले के एक प्रखंड प्रमुख ने बड़ी सरलता से कहा कि हालांकि बीडीओ पंचायत समिति के सचिव हैं, लेकिन बीडीओ खुद ही सारे निर्णय लेते हैं, और प्रमुख के संस्थागत पद की मान्यता को उचित सम्मान नहीं देते.

मुखियाओं को पंचायतों में कोई भी कार्यक्रम शुरू करने के लिए विभागीय आदेश एवं प्रखंड स्तरीय प्रशासन के निर्देश का इंतजार करना पड़ता है. पश्चिमी सिंहभूमि जिले के एक मुखिया ने बताया, ‘जिला की ओर से हमें लक्ष्य दिया जाता है, जैसे शौचालय बनाना इत्यादि. परंतु इसके साथ हमें किसी प्रकार की सहायता या काम करने हेतु पदाधिकारी नहीं दिया जाता है. लक्ष्य पूर्ण करने पर हमें विभागीय अफसर बातें भी सुनाते हैं.

बंद पंचायतों को खोलने के सहयोगी

पिछले साढ़े चार वर्षो के अनुभवों से यह साफ दिखता है कि कई बाधाओं के बावजूद पंचायतों ने मनरेगा व बीआरजीएफ जैसे कार्यक्रमों का क्रियान्वयन किया है. पंचायत ऐसी योजनाओं को सफल बनाने के लिए अन्य समुदाय आधारित संगठनों व महिला स्वयं सहायता समूह एवं उनके फेडरेशन की सहायता ले सकते हैं.

झारखंड सरकार के एनआरएलएम-मनरेगा सीएफटी परियोजना के माध्यम से अनेक ग्रामीण युवाओं का सहभागीदारीपूर्ण नियोजन, जल छाजन एवं मनरेगा क्रियान्वयन संबंधित कौशल वर्धन हो रहा है. ऐसे कुशल युवाओं को पंचायतों में विशेषज्ञों के रूप में रखा जा सकता है, जिससे पंचायतों की नियोजन एवं क्रियान्वयन करने की व्यवस्थागत क्षमता बढ़ेगी. साथ ही पंचायती राज संस्थाओं को संस्थागत एवं तकनीकी सहारा हेतु,राज्य, जिला एवं प्रखंड स्तरों पर त्रि-स्तरीय प्रोफेशनल सहयोगी ढांचे की जरूरत है.

केंद्र सरकार ने पंचायतों को सशक्त करने हेतु एक प्रमुख केंद्रीय कार्यक्रम, राजीव गांधी पंचायती राज सशक्तीकरण योजना, को इस वर्ष बंद कर दिया है. अत: केंद्रीय पंचायत सशक्तीकरण कार्यक्रम के अभाव में अब राज्य सरकार पर पंचायती राज को सशक्त करने का अधिक भार है. इस वर्ष होनेवाले पंचायती राज चुनाव से पहले झारखंड सरकार को बंद पड़े पंचायतों को खोलने के तरीके तलाशने होंगे.

(लेकर सामाजिक कार्यकर्ता हैं)

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