रांचीः गुमला की अमृता का पैर खराब हो चुका था. उसे काट कर अलग करने की नौबत आ गयी थी. पैसा नहीं था इलाज कराने का. खून की व्यवस्था नहीं हो पा रही थी. वह रिम्स में भरती थी. जैसे ही यह खबर अखबार में छपी, अमृता की सहायता के लिए लोग सामने आ गये. अमृता को जितना खून की जरूरत थी, लोगों ने उससे ज्यादा खून दान किया. पैसे से भी सहायता की गयी. चिकित्सक भी दिन-रात लग गये उसे बचाने में.
पूरे राज्य से उसे सहायता मिली. इसका सुखद परिणाम भी आया. अमृता का पैर बच गया. उसका जीवन बच गया. यह संभव हुआ लोगों के सामने आने से. समाज में ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो अभाव में जी रहे हैं. साधन के अभाव में किसी का इलाज नहीं हो पा रहा है, कोई पढ़ नहीं पा रहा है, तो कोई खाली पेट सो जा रहा है. पर समाज में ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है, जो तन-मन-धन से ऐसे जरूरतमंद लोगों की सहायता के लिए हर समय खड़े रहते हैं. किसी की सहायता करने में, कुछ देने में अलग ही आनंद है. ऐसा ही एक अभियान देश में चल रहा है, जिसका नाम है ज्वाय ऑफ गिविंग (देने का आनंद) सप्ताह. इस अभियान के प्रेरणास्नेत हैं पदम भूषण नारायण वगुल. वे आइसीआइसीआइ बैंक के पूर्व चेयरमैन हैं. इस अभियान को आगे बढ़ाने के लिए आइआइएम के पूर्व छात्र वेंकट ने हाल ही में रांची में के प्रमुख लोगों से भेंट कर उन्हें प्रेरित किया था.
आप भी इस अभियान में शामिल होकर समाज के प्रति अपने दायित्व को निभा सकते हैं. दो अक्तूबर से ज्वाय ऑफ गिविंग सप्ताह मनाया जाता है. इस दौरान आप जरूरतमंदों के लिए जो भी देना चाहते हैं, खुल कर दीजिए. कई संस्थाएं ऐसी हैं, जो इस काम में लगी हैं. आप खुद तय करें कि किसके पास आप सामग्री, पैसा या अन्य चीजें पहुंचायें, जिससे वह जरूरतमंद को मिल सकें. आपने जो भी अर्जित किया है, वह इसी समाज से. इसलिए आपकी जिम्मेवारी बनती है कि आप जरूरतमंद लोगों की सहायता के लिए आगे आयें. दो अक्तूबर से आठ अक्तूबर तक ज्वाय ऑफ गिविंग सप्ताह मनायें और लोगों की सहायता करें. अपने बच्चों को इसमें जोड़ें. किसी स्कूल में जाकर जब आप गरीब बच्चों को किताब, कपड़ा, बिस्कुट या अन्य चीजें देंगे, तो आपको अजीब संतोष मिलेगा. यही तो असली आनंद है. इस अवसर को आप न गंवायें.