तसवीर हैप्रवीण मंुडारांची. देश भर के आदिवासी लंबे समय से अपनी अलग धार्मिक पहचान के लिए संघर्षरत हैं. झारखंड में सरना कोड की मांग लगातार उठती रही है. अब संयुक्त राष्ट्र संघ के 14 वें यूनाइटेड नेशंस परमानेंट फोरम ऑन इंडीजिनस इश्यूज की बैठक में डॉ मीनाक्षी मंुडा ने सरना/आदि धरम कोड की आवश्यकता पर अपनी आवाज उठायी है. डॉ मीनाक्षी मंुडा एशिया पैसिफिक इंडीजिनस यूथ फोरम की प्रेसीडेंट हैं. यूनाइटेड नेशंस के इस फोरम में अपने वक्तव्य में मीनाक्षी मंुडा ने कहा कि सरना/आदि धरम विश्व की प्राचीनतम धर्मों में एक है. भारत में सरना धर्म पर आस्था रखनेवालों की संख्या 92 लाख के लगभग है. यह संख्या भारत की कुल आबादी का 8.2 प्रतिशत होता है. बावजूद इसके सबसे पुरानी जनजातीय समूह को अलग पहचान नहीं दी गयी है. आदि धर्म प्रकृति पूजा पर केंद्रित है. भारत के विभिन्न भागों में इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है. इसलिए एक सार्वभौमिक शब्द आदि धरम के लिए प्रयास किया जा रहा है. मीनाक्षी मंुडा ने इस मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र संघ से हस्तक्षेप करने की मांग की है. उन्होंने कहा है कि सरना/आदि धरम को भारत सरकार की ओर से अविलंब मान्यता दी जाये. सरना/आदि धर्म कोड को 2021 की जनगणना में शामिल किया जाये. इसके अलावा उन्होंने यह मांग भी की है कि आदिवासियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र घोषणा पत्र के पूर्ण क्रियान्वयन के लिए भारत सरकार पहल करे. मीनाक्षी ने यूएनपीएफआइ अध्यक्ष से अपील की, कि वे इस आंदोलन में सहयोग करें.
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सरना धर्म कोड की मांग संयुक्त राष्ट्र संघ में रखी
तसवीर हैप्रवीण मंुडारांची. देश भर के आदिवासी लंबे समय से अपनी अलग धार्मिक पहचान के लिए संघर्षरत हैं. झारखंड में सरना कोड की मांग लगातार उठती रही है. अब संयुक्त राष्ट्र संघ के 14 वें यूनाइटेड नेशंस परमानेंट फोरम ऑन इंडीजिनस इश्यूज की बैठक में डॉ मीनाक्षी मंुडा ने सरना/आदि धरम कोड की आवश्यकता पर […]
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