14.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

हिंदी में बात करते थे बुल्के

रांची: बुल्के शोध संस्थान में डॉ कामिल बुल्के की 104वीं जयंती मनायी गयी. इस अवसर पर डॉ मंजू ज्योत्सना ने कहा कि उन्होंने फादर बुल्के को हिंदी के अतिरिक्त किसी और भाषा में बोलते नहीं सुना. वर्ष 1962 में संत जेवियर्स कॉलेज में अध्ययन के दौरान उनके संपर्क में आयी थीं. फादर की किताबों की […]

रांची: बुल्के शोध संस्थान में डॉ कामिल बुल्के की 104वीं जयंती मनायी गयी. इस अवसर पर डॉ मंजू ज्योत्सना ने कहा कि उन्होंने फादर बुल्के को हिंदी के अतिरिक्त किसी और भाषा में बोलते नहीं सुना. वर्ष 1962 में संत जेवियर्स कॉलेज में अध्ययन के दौरान उनके संपर्क में आयी थीं. फादर की किताबों की दुनिया में उन्हें अपनत्व का बोध होता था. उन्होंने शोध के लिए भी कहीं बाहर से पुस्तक नहीं ली. फादर बुल्के न सिर्फ हिंदी के लिए बल्कि उनके जीवन के लिए भी उपयोगी साबित हुए.

वह इलाहाबाद विवि के पहले छात्र थे, जिसने अपना शोधपत्र हिंदी में प्रस्तुत किया था. रामकथा पर उनका शोध और शब्दकोश अद्वितीय हैं. फादर मथियस डुंगडुंग ने बताया कि कामिल का अर्थ श्रेष्ठ है. अपने नाम की तरह वह श्रेष्ठ व्यक्ति थे. आज भी शोध संस्थान के विद्यार्थी उनके ज्ञान से लाभान्वित होते हैं.

अरुण कुमार ने बताया कि अपने स्कूली दिनों में वह फादर के पास विदेशी डाक टिकट के संग्रह के लिए आते थे. बाद में उनकी कृतियां देखीं और उनके भक्त बने. निदेशक फादर इमानुएल बखला ने कहा कि वे एक छात्र के रूप में फादर बुल्के से मिले थे. तब वे पूरी तन्मयता से शब्दकोश का निर्माण कर रहे थे. कंप्यूटर का युग नहीं था. इसलिए हाथ से लिखते रहते थे. एक शब्द का सही अर्थ खोजने के लिए पूरा दिन लगा देते थे. कार्यक्रम में अजय तिर्की, मीरा, अलका, निर्मल, भगीरथ सिंह समेत कई लोग मौजूद थे.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें