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राज्य सरकार को आवास बोर्ड का त्रहिमाम संदेश
हजारीबाग में आवास बोर्ड की सरकारी जमीन पर रहीम बख्स ने किया था दावा शकील अख्तर रांची : झारखंड आवास बोर्ड ने जमीन विवाद में केंद्र को पक्षकार बनाने के लिए राज्य सरकार को त्रहिमाम संदेश (एसओएस) भेजा है. इसमें यह कहा गया है कि हजारीबाग में भारत सरकार से मिली जमीन पर रहीम बख्श […]
हजारीबाग में आवास बोर्ड की सरकारी जमीन पर रहीम बख्स ने किया था दावा
शकील अख्तर
रांची : झारखंड आवास बोर्ड ने जमीन विवाद में केंद्र को पक्षकार बनाने के लिए राज्य सरकार को त्रहिमाम संदेश (एसओएस) भेजा है. इसमें यह कहा गया है कि हजारीबाग में भारत सरकार से मिली जमीन पर रहीम बख्श ने अपना दावा किया था.
अदालत ने छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (सीएनटी एक्ट) की उस धारा के तहत दावेदार के पक्ष में फैसला किया है, जिसे वर्ष 1974 में समाप्त कर दिया गया. अदालती फैसलों के आलोक में अब बोर्ड पर उसे 26.53 करोड़ रुपये का भुगतान करने का दबाव पड़ रहा है. इस स्थिति से निबटने के लिए केंद्र को पक्षकार बनाया जाना आवश्यक है.
आवास बोर्ड के एमडी दिलीप कुमार झा ने अपने त्रहिमाम संदेश में कहा है कि वर्ष 1984 में हजारीबाग के सारेल ग्राम में 22.25 एकड़ जमीन बोर्ड को दी गयी थी. इसमें खाता संख्या 95 के प्लॉट संख्या 51,428,247 की जमीन आंशिक तौर पर शामिल थी. इसमें प्लॉट संख्या 47 और 428 की जमीन भारत सरकार की (कैसरे हिंद) थी. बोर्ड को जमीन पर मकान का निर्माण कर आवंटित भी किया जा चुका है.
बोर्ड को मिली इस जमीन में से रहीम बख्श ने 10.40 एकड़ जमीन (प्लॉट 247,51) पर अपना दावा करते हुए टाइटल सूट दायर किया था. हजारीबाग के तत्कालीन न्यायाधीश( सब जज-थ्री) तबारक हुसैन ने जमीन को ‘कोड़कर’ करार देते हुए रहीम बख्श के पक्ष में फैसला दिया. साथ ही उसे जमीन वापस करने या भू अजर्न अधिनियम के तहत मुआवजा देने का आदेश दिया.
इसके बाद बोर्ड की ओर से न्यायालय में 1.97 करोड़ रुपये चेक जमा कराया गया. पर, दावेदार ने इसे लेने से इनकार कर दिया. न्यायालय ने सीएनटी एक्ट की धारा 43(डी) के तहत ‘कोड़कर’ मानते हुए धारा 64 के तहत रहीम बख्श के अधिकार की घोषणा कर दी. सीएनटी एक्ट की धारा 64 को 1947 में ही समाप्त कर दिया गया है. साथ ही किसी जमीन को ‘कोड़कर’ मानने के लिए यह आवश्यक है कि जिले के उपायुक्त ने जमीन को कोड़कर खेती योग्य बनाने की अनुमति दी हो. दावेदार रहीम बख्श के पास उपायुक्त का कोई ऐसा आदेश नहीं है. उनकी ओर से यह दावा किया गया है कि उनके पिता कनकु मियां को वर्ष 1930-31 में 5.50 एकड़ जमीन की बंदोबस्ती की गयी थी.
त्रहिमाम संदेश में कहा गया है कि इन कानूनी बिंदुओं को सुप्रीम कोर्ट तक चली लड़ाई के दौरान बोर्ड की ओर से नहीं उठाया गया. इसकी वजह से बोर्ड को सुप्रीम कोर्ट तक में हार का सामना करना पड़ा. इस मामले में राज्य सरकार के पक्षकार के रूप में उपायुक्त को प्रतिवादी बनाया गया था. पर, उनकी ओर से भी कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया. निचली अदालत के फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती नहीं दी. बोर्ड ने टाइटल सूट के फैसले को निरस्त करने के लिए याचिका भी दायर की थी. इसे निचली अदालत ने खारिज कर दिया.
इसके खिलाफ हाइकोर्ट में दायर याचिका(3624/2014) दायर की गयी. बोर्ड को मिली जमीन में कैसरे हिंद की जमीन भी है. इसलिए इस मामले में भारत सरकार को पक्षकार बनाया जाना आवश्यक है. इस बीच दावेदार ने बाजार दर पर मुआवजे की रकम हासिल करने के लिए हजारीबाग सब जज की अदालत में एक्सक्यूशन केस दायर कर दिया. अवर निबंधक के जमीन की कीमत 26.53 करोड़ रुपये आंकी है.
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