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कैसी हो हमारी स्‍थानीय नीति ?

सरकार ने विधानसभा में घोषणा की है कि दो माह के अंदर राज्य की स्थानीय नीति घोषित कर दी जायेगी. इसे देखते हुए प्रभात खबर कैसी हो हमारी स्थानीय नीति श्रृंखला चला रहा है. कैसी हो स्थानीय नीति, इस मुद्दे पर आप भी अपने विचार हमें मेल कर सकते हैं या फिर लिख कर भेज […]

सरकार ने विधानसभा में घोषणा की है कि दो माह के अंदर राज्य की स्थानीय नीति घोषित कर दी जायेगी. इसे देखते हुए प्रभात खबर कैसी हो हमारी स्थानीय नीति श्रृंखला चला रहा है. कैसी हो स्थानीय नीति, इस मुद्दे पर आप भी अपने विचार हमें मेल कर सकते हैं या फिर लिख कर भेज सकते हैं. हमारा पता है : सिटी डेस्क, प्रभात खबर, 15-पी, कोकर इंडस्ट्रीयल एरिया, रांची या फिर हमें मेल करें.

मूल निवासी ही बनें झारखंड के भाग्य विधाता

डॉ गिरिधारी राम गौंझू

स्थानीयता का लाभ उन्हें मिले, जिनके पूर्वजों ने जंगल – झाड़ काट कर जमीन बनायी, गांव बसाया. इसलिए अंतिम सर्वे को स्थानीयता का आधार बनाना जरूरी है. जो यहां की भाषा – संस्कृति को जानते व मानते हैं,वहीं स्थानीय कहलायें. झारखंड के गठन के पीछे का मुख्य उद्देश्य शोषण के शिकार रहे मूल निवासियों को न्याय दिलाना था.

यहां की नौकरियों में जो थोड़े बहुत मूल निवासी नजर आते हैं, वह अनुसूचित जनजाति के आरक्षण के कारण है. सदान (गैरआदिवासी मूल निवासी) कहीं नहीं नजर आते. यहां की नौकरियों पर बिहार के लोगों का ही वर्चस्व रहा. कल, कारखाने, खदान, बांध के नाम पर झारखंडी उजड़ते रहे हैं.

1981 में जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग की स्थापना इस मकसद से की गयी कि यहां से शिक्षित छात्र गांव- देहात के बच्चों को उनकी मातृभाषा में पढ़ायेंगे. 1946 में डिग्री कॉलेज व 1960 में विश्वविद्यालय दिया गया. इस देरी का मकसद यही था कि यहां के लोग पढ़ायी लिखाई में पिछड़े रहें. मातृभाषाओं में पढ़ायी पर भी ध्यान नहीं दिया गया. नौ भाषाओं के इस विभाग में पिछले 25 वर्ष से सिर्फ तीन भाषा के शिक्षक हैं.

(लेखक जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष हैं)

मैट्रिक परीक्षा पास करना हो स्थानीयता का आधार

डॉ इरफान अंसारी

स्थानीय नीति एक ऐसा मुद्दा है, जिसका जल्द से जल्द समाधान किया जाना अत्यंत आवश्यक है. स्थानीय नीति लागू नहीं होने से यहां के लोगों में वैमनस्यता पैदा हो रही है. मेरा मानना है, कि वैसे व्यक्ति स्थानीय कहलाये जो यहां जन्म लिये हों. यहां से मैट्रिक पास किये हों. तृतीय व चतुर्थ वर्ग की नौकरी में स्थानीय को ही प्राथमिकता मिलनी चाहिए. महाराष्ट्र, बंगाल व उड़ीसा के तर्ज पर यहां स्थानीय नीति लागू की जानी चाहिए.

स्थानीय होने के लिए खतियान की कोई आवश्यकता नहीं है. मैं भी विदेश में पढ़ाई किया हूं, वहां मैंने देखा कि यदि कोई व्यक्ति पांच वर्षो से वहां रह रहा हो तो उसे वहां की नागरिकता दे दी जाती है. साथ ही अगर वह व्यक्ति विदेशी महिला से शादी कर लेता है, तो उसे वहां की नागरिकता दे दी जाती है. सरकार से मांग करता हूं की राज्य में जो एक लाख नियुक्ति की घोषणा की गयी है, वह स्थानीय नीति लागू होने के बाद ही की जाये. मैं भी झारखंड में पैदा हुआ हूं, मेरे पास भी 1932 का खतियान है. फिर भी मैं यहां से मैट्रिक पास करने वाले को स्थानीय मानने की मांग कर रहा हूं, क्योंकि झारखंड में वैमनस्यता उत्पन्न नहीं हो.

(लेखक कांग्रेस के विधायक हैं)

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