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विस्थापितों को दो माह में मुआवजा दें

रांची: हाइकोर्ट में बुधवार को सुवर्णरेखा बहुद्देशीय परियोजना के चांडिल डैम से होनेवाले विस्थापितों का पुनर्वास नहीं करने को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई हुई. चीफ जस्टिस प्रकाश टाटिया व जस्टिस जया राय की खंडपीठ ने सुनवाई करते हुए सरकार के रवैये पर कड़ी नाराजगी जाहिर की. खंडपीठ ने सरकार को सभी विस्थापितों को […]

रांची: हाइकोर्ट में बुधवार को सुवर्णरेखा बहुद्देशीय परियोजना के चांडिल डैम से होनेवाले विस्थापितों का पुनर्वास नहीं करने को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई हुई. चीफ जस्टिस प्रकाश टाटिया व जस्टिस जया राय की खंडपीठ ने सुनवाई करते हुए सरकार के रवैये पर कड़ी नाराजगी जाहिर की. खंडपीठ ने सरकार को सभी विस्थापितों को दो माह के अंदर मुआवजा भुगतान करने का निर्देश दिया. यह भी कहा कि यदि भुगतान नहीं किया जाता है, तो कार्रवाई की जायेगी. मामले की अगली सुनवाई के लिए खंडपीठ ने 27 सितंबर की तिथि निर्धारित की.

उपस्थित अधिकारियों से कोर्ट ने पूछा कि 1977 से योजना पर काम चल रहा है. अब तक क्यों नहीं पूरा हो पाया है. बिजली का उत्पादन क्यों नहीं किया जा रहा है. सिंचाई सुविधा क्यों नहीं दी गयी. परियोजना के प्रशासक अमिताभ कौशल व जल संसाधन विभाग के अभियंता प्रमुख अरुण कुमार सिंह सुनवाई के दौरान सशरीर उपस्थित थे. उन्होंने शपथ पत्र दायर कर बताया कि 14931 विस्थापित हैं. इसमें से 2875 का मामला लंबित है.

इन्हें नौकरी-मुआवजा नहीं दी जा सकी है. आवश्यक जल उपलब्ध नहीं रहने के कारण बिजली उत्पादन नहीं हो पा रहा है. 1977 में परियोजना शुरू हुई. उस वक्त प्राक्कलित लागत 129 करोड़ थी, जो बढ़ कर 6613.74 करोड़ रुपये हो चुकी है. मार्च 2015 तक परियोजना को पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है. प्रार्थी की ओर से अधिवक्ता एके साहनी ने पैरवी की.

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