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जनता की चाह: अधिकारियों के तबादले में हो नीति का पालन, गुड गवर्नेस की उम्मीद

रांची: राज्य की नयी सरकार से गुड गर्वनेंस की उम्मीद है. इस दिशा में सबसे पहला कदम राज्य में जड़ जमाये तबादला उद्योग को समाप्त करना और साल में दो के बदले एक ही बार तबादले की नीति लागू करना है. राज्य में चल रहे तबादला उद्योग से जुड़ी चर्चित कहानियों से भ्रष्टाचार को बढ़ावा […]

रांची: राज्य की नयी सरकार से गुड गर्वनेंस की उम्मीद है. इस दिशा में सबसे पहला कदम राज्य में जड़ जमाये तबादला उद्योग को समाप्त करना और साल में दो के बदले एक ही बार तबादले की नीति लागू करना है. राज्य में चल रहे तबादला उद्योग से जुड़ी चर्चित कहानियों से भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने का संकेत मिलता है. तबादला उद्योग में ‘इस हाथ दे, उस हाथ ले’ का फारमूला चलता है. इससे विकास प्रभावित होता है,जबकि विकास ही नयी सरकार का प्रमुख मुद्दा है.

राज्य में लागू तबादले के नियम के तहत अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों के तबादले का अधिकार मुख्यमंत्री के पास सुरक्षित है. राज्य सेवा व उससे नीचे के अधिकारियों के तबादले का अधिकार विभागीय मंत्रियों के पास है. मुख्यमंत्री अपनी इच्छानुसार या मंत्रियों की सुविधा के अनुसार विभागीय सचिवों का तबादला करते रहे हैं. पर, सुप्रीम कोर्ट ने इस स्तर के अधिकारियों के तबादले के लिए कम से कम दो साल का समय निर्धारित करने और तबादले के लिए एक उच्च स्तरीय समिति गठित करने का आदेश दिया था. इस आदेश का अनुपालन अब तक राज्य सरकार ने नहीं किया है. उच्च स्तरीय समिति के गठन का प्रस्ताव कई बार तैयार हुआ. पर, मंत्रियों ने इसे इस तर्क के साथ अस्वीकार कर दिया, कि इससे अधिकारियों पर उनका नियंत्रण समाप्त हो जायेगा. राजनीतिक स्तर पर इस मुद्दे को न्यायिक आदेश, राज्य हित के बदले वर्चस्व की तराजू पर तौला गया. राजनीतिज्ञों की अनुचित मांग पूरी नहीं करने पर अफसरों के तबादले के अनेकों उदाहरण मौजूद हैं.

अपनी राजनीतिक और संवैधानिक शक्तियों के दुरुपयोग की वजह से झारखंड देश का इकलौता राज्य बना, जहां तत्कालीन एक ही सरकार में शामिल 50 प्रतिशत मंत्री भ्रष्टाचार के आरोप में जेल जा चुके हैं. दूसरी तरफ राज्य के छोटे-बड़े अधिकारी भी भ्रष्टाचार के आरोप में जेल जा चुके हैं. भ्रष्टाचार के आरोप में जेल जानेवालों में भारतीय प्रशासनिक सेवा, राज्य सेवा, इंजीनियरिंग सेवा सहित अन्य सेवा संवर्गो के कर्मचारी शामिल हैं. इस स्तर के अधिकारियों के तबादले का अधिकार मंत्रियों को भी है. वह भी साल में दो बार. इन तबादलों में विभागीय मंत्री अपने ही द्वारा बनाये गये तबादलों के नियमों का उल्लंघन करते हैं.

हर राजनीतिक दल विपक्ष में रहते हुए इन तबादलों में पैसों के लेन-देन का आरोप लगाता रहा है. पर, सत्ता में आने के बाद खुद ही तबादला उद्योग को गति देता रहा. इससे राज्य में विकास योजनाएं प्रभावित हुईं. बरसात की पहली बारिश में ही चेक डैमों का बहना, पहुंच पथ के बिना ही पुलों का निर्माण जैसे इंजीनियरिंग के अनेकों कारनामे इसी उद्योग के परिणाम स्वरूप अंजाम दिये गये. ऐसा करनेवालों को राजनीतिक संरक्षण मिला और उनके विरुद्ध कार्रवाई नहीं हुई. राज्य को गुड गर्वनेंस की ओर ले जाने के लिए तबादला उद्योग को रोकना पहला कदम होगा.

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