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राज्य में प्रति वर्ष 46000 बच्चों की मौत

रांची: राज्य में कुपोषण व स्वास्थ्य संबंधी कारणों से प्रतिवर्ष 46,000 बच्चों की मौत होती है. नवजात व अल्पायु शिशुओं की असमय मौत पर चिंता प्रकट करते हुए यूनिसेफ के अधिकारियों ने यह जानकारी दी. शुक्रवार को यूनिसेफ की ओर से आयोजित कार्यशाला में प्रतिनिधियों ने शिशु मृत्यु, बाल विवाह, अस्वच्छता, कुपोषण व टीकाकरण सहित […]

रांची: राज्य में कुपोषण व स्वास्थ्य संबंधी कारणों से प्रतिवर्ष 46,000 बच्चों की मौत होती है. नवजात व अल्पायु शिशुओं की असमय मौत पर चिंता प्रकट करते हुए यूनिसेफ के अधिकारियों ने यह जानकारी दी. शुक्रवार को यूनिसेफ की ओर से आयोजित कार्यशाला में प्रतिनिधियों ने शिशु मृत्यु, बाल विवाह, अस्वच्छता, कुपोषण व टीकाकरण सहित विभिन्न मुद्दों पर विस्तार से चर्चा की.

यूनिसेफ के पीपीइ ऑफिसर कुमार प्रेमचंद ने बताया कि एएचएस के सर्वे (2011-12 ) के अनुसार झारखंड में पांच साल से कम उम्र के 46000 बच्चें प्रतिवर्ष मौत के शिकार होते हैं. इनमें 20000 बच्चों की मृत्यु जन्म के 28 दिनों के अंदर होती है. इस तरह हर दिन 125 बच्चों की असमय मौत होती है.

उन्होंने कहा कि अभी भी मात्र 37. 6 प्रतिशत महिलाएं ही संस्थागत प्रसव का लाभ उठाती हैं. 60 प्रतिशत महिलाएं घर पर ही प्रसव करती हैं. जबकि सरकार की ओर से संस्थागत प्रसव के लिए 1400 रुपये की प्रोत्साहन राशि दी जाती है. राज्य के 35000 गांवों में एएनएम द्वारा बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचायी जाती है, फिर भी महज 65 प्रतिशत बच्चों का ही टीकाकरण हो पाता है. शिशु के जन्म के एक घंटे के अंदर स्तनपान कराने से 22 प्रतिशत बच्चों को मौत से बचाया जा सकता है, जबकि राज्य में सिर्फ 33 प्रतिशत माताएं ही जन्म के तुरंत बाद शिशु को स्तनपान कराती हैं.

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