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मुश्किल डगर पर कांग्रेस, आसान नहीं है चुनौती

केंद्रीय नेतृत्व भी जानता है झारखंड में क्या है पार्टी की जमीनी हकीकतचुनावी विश्लेषणआनंद मोहनरांची : कांग्रेस के लिए चुनावी सफर आसान नहीं है. प्रदेश अध्यक्ष सुखदेव भगत के सामने लोकसभा के तुरंत बाद विधानसभा चुनाव एक बड़ी चुनौती है. झामुमो से कांग्रेस ने गंठबंधन तोड़ लिया है. प्रदेश अध्यक्ष की बात आला कमान ने […]

केंद्रीय नेतृत्व भी जानता है झारखंड में क्या है पार्टी की जमीनी हकीकतचुनावी विश्लेषणआनंद मोहनरांची : कांग्रेस के लिए चुनावी सफर आसान नहीं है. प्रदेश अध्यक्ष सुखदेव भगत के सामने लोकसभा के तुरंत बाद विधानसभा चुनाव एक बड़ी चुनौती है. झामुमो से कांग्रेस ने गंठबंधन तोड़ लिया है. प्रदेश अध्यक्ष की बात आला कमान ने सुनी. प्रदेश कांग्रेस की दलील थी कि जिन सीटिंग सीटों को झामुमो छोड़ रहा है, उसके सहारे चुनावी नाव घाट नहीं लगेगी. प्रदेश कांग्रेस केंद्रीय नेतृत्व को मनाने में सक्षम रहा, कि झामुमो जब तक दूसरी सीट नहीं छोड़ता है, तब तक सीटों की संख्या बढ़ाना आसान नहीं है. केंद्रीय नेतृत्व को भी जमीनी हकीकत मालूम है. कहें तो न नौ मन भारी, न नौ मन हल्का. जदयू और राजद के साथ गंठबंधन कर कांग्रेस आगे बढ़ी. यह गंठबंधन भी झारखंड की चुनावी गणित को मजबूत करने के बजाय, केंद्रीय स्तर पर राजद-जदयू के साथ हुई गंठबंधन की मजबूरी है. झारखंड से कहीं ज्यादा बिहार की चुनावी रणनीति के तहत राजद-जदयू के साथ कांग्रेस ने गंठबंधन किया. कांग्रेस को चुनावी मैदान में हर तरफ से रंजिश का सामना करना पड़ेगा. खतरा बाहर से कहीं ज्यादा अंदर है. संगठन अंदर की खेमाबंदी-गुटबाजी से पस्त है. टिकट बंटवारे में भी यह खुल कर सामने आया. प्रदेश के बड़े नेताओं ने प्रत्याशियों के लिए लाबिंग की. प्रदेश अध्यक्ष सुखदेव भगत ने ताल ठोंक कर गंठबंधन तो तोड़ लिया, लेकिन संगठन के अंदर बड़े नेताओं के राह अलग-अलग हैं. संगठन में नेताओं का अपना-अपना गणित है. दल-बदल की आंधी में कांग्रेस ने अपने मजबूत दावेदार भी खो दिये. माधवलाल सिंह, अनंत प्रताप देव जैसे नेताओं ने साथ छोड़ दिया. वहीं प्रदेश अध्यक्ष श्री भगत, आलमगीर आलम, मनोज यादव जैसे गिने-चुने नेता को छोड़ दें, तो बाकी चुनाव लड़ने के लिए भी तैयार नहीं हुए. केंद्रीय और प्रदेश नेतृत्व के कहने-मनाने के बाद भी दिग्गज चुनाव लड़ने को तैयार नहीं हुए. अब राजद-जदयू के साथ गंठबंधन का नफा-नुकसान आकलन चुनाव परिणाम के बाद होगा, लेकिन इतना साफ है कि कांग्रेस ने इन दोनों दलों से समझौता कर एक खास वोट बैंक को पकड़ने की कोशिश जरूर की है. वहीं भाजपा विरोधी वोट की गोलबंदी का प्रयास है. कांग्रेस के सामने चुनौती है कि वह इस वोट बैंक में झामुमो और झाविमो की सेंधमारी को रोके. भाजपा विरोधी वोट के बिखराव को रोकने के लिए कांग्रेस और उनके गंठबंधन वाले सहयोगी दलों को पसीना बहाना होगा. वर्तमान विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और सहयोगी दलों को एक -एक सीट पर चुनावी रणनीति के साथ उतरना होगा. पलामू, उत्तरी छोटानागपुर, संताल परगना के कुछ खास सीटों पर सहयोगी दलों से कांग्रेस को लाभ हो सकता है, लेकिन ज्यादातर सीटें पर अपने दमखम के भरोसे उतरना होगा.

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