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गुमशुदा बच्चों का पता लगाने में सरकारें नाकाम

बिहार, छत्तीसगढ़ को सुप्रीम कोर्ट ने आड़े हाथ लियाएजेंसियां, नयी दिल्लीसुप्रीम कोर्ट ने गुमशुदा बच्चों का पता लगाने में विफल रहने और ऐसे मामलों में प्राथमिकी दर्ज नहीं करने पर गुरुवार को बिहार और छत्तीसगढ़ सरकार को आड़े हाथ लिया. चीफ जस्टिस एचएल दत्तू की अध्यक्षतावाली खंडपीठ ने राज्य सरकारों की निष्क्रियता पर नाराजगी व्यक्त […]

बिहार, छत्तीसगढ़ को सुप्रीम कोर्ट ने आड़े हाथ लियाएजेंसियां, नयी दिल्लीसुप्रीम कोर्ट ने गुमशुदा बच्चों का पता लगाने में विफल रहने और ऐसे मामलों में प्राथमिकी दर्ज नहीं करने पर गुरुवार को बिहार और छत्तीसगढ़ सरकार को आड़े हाथ लिया. चीफ जस्टिस एचएल दत्तू की अध्यक्षतावाली खंडपीठ ने राज्य सरकारों की निष्क्रियता पर नाराजगी व्यक्त की. कहा कि उनके इस रवैये के कारण ऐसे बच्चों के माता-पिता परेशान हो रहे हैं. दोनों राज्यों की प्रगति रिपोर्ट पर असंतोष जताते हुए कोर्ट ने उन्हें नयी रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया. छत्तीसगढ़ सरकार को राज्यसभा और शीर्ष अदालत में इस मामले में अलग-अलग आंकड़े देने पर भी फटकार लगायी. कोर्ट ने पाया कि सरकार ने करीब 9,500 लापता बच्चों के मामलों का जिक्र किया है, जबकि संसद में उसने करीब 11,500 बच्चों का आंकड़ा दिया था. जजों ने मामले की सुनवाई 13 नवंबर तक स्थगित करते हुए कहा, ‘यदि राज्यसभा और हमारे सामने दिये गये बयानों में गलती हुई, तो फिर आप ही परेशानी में पड़ेंगे.’इधर, बिहार की ओर से सॉलिसिटर जनरल रंजीत कुमार ने कहा कि एक साल में राज्य में गुमशुदा बच्चों के 2,874 मामले दर्ज किये गये, जबकि 2,241 बच्चों का पता लगाया गया. अभी भी 633 बच्चे लापता हैं. कोर्ट ने प्रगति रिपोर्ट का अवलोकन करने के बाद टिप्पणी की कि सिर्फ 40 फीसदी मामलों में ही प्राथमिकी दर्ज हुई है और 20 फीसदी बच्चे अभी भी लापता हैं.शीर्ष कोर्ट के 16 अक्तूबर के आदेश पर अमल करते हुए बिहार और छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव तथा पुलिस महानिदेशक कोर्ट में मौजूद थे. बचपन बचाओ आंदोलन की याचिका पर कोर्ट ने अक्तूबर में कहा था कि पुलिस को बच्चे की गुमशुदगी के बारे में सूचना मिलते ही ऐसे मामले में प्राथमिकी दर्ज करनी चाहिए और ऐसे बच्चों की तसवीर ‘चाइल्ड ट्रैक’ वेबसाइट पर अपलोड की जानी चाहिए. कोर्ट ने देश के प्रत्येक थाने में किशोर कल्याण अधिकारी नियुक्त करने का भी निर्देश दिया था.

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