अगले साल बदलेगी बस्तियों की किस्मत

ज्यादातर स्लम बस्तियां आज भी उपेक्षित : आशा लकड़ाफोटो सुनील संवाददाता रांची संयुक्त बस्ती समिति की ओर से बुधवार को बहुबाजार स्थित एचपीडीसी सभागार में जनसंवाद का आयोजन किया गया. इसमें राजधानी की विभिन्न स्लम बस्तियों में रहनेवालों ने अपनी समस्याएं रखीं. इस कार्यक्रम में मौजूद मेयर आशा लकड़ा ने कहा कि वह इस तथ्य […]

By Prabhat Khabar Print Desk | August 20, 2014 10:00 PM

ज्यादातर स्लम बस्तियां आज भी उपेक्षित : आशा लकड़ाफोटो सुनील संवाददाता रांची संयुक्त बस्ती समिति की ओर से बुधवार को बहुबाजार स्थित एचपीडीसी सभागार में जनसंवाद का आयोजन किया गया. इसमें राजधानी की विभिन्न स्लम बस्तियों में रहनेवालों ने अपनी समस्याएं रखीं. इस कार्यक्रम में मौजूद मेयर आशा लकड़ा ने कहा कि वह इस तथ्य को स्वीकार करती हैं कि ज्यादातर स्लम बस्तियां आज भी उपेक्षित हैं. जिन बस्तियों में शौचालय नहीं है, वहां नगर निगम की जमीन होने पर शौचालय निर्माण कराया जायेगा. इसके लिए यदि कोई अपनी जमीन उपलब्ध कराता है, तो निगम वहां निर्माण करायेगा. विकास के क्रम में यदि बस्तियों को हटाना पड़े, तो लोगों के पुनर्वास की समुचित व्यवस्था के बाद ही उन्हें हटाया जायेगा. विस चुनाव आचार संहिता के मद्देनजर इस वर्ष कुछ समस्याएं हो सकती हैं, पर 2015 में वह बस्तियों के विकास के लिए नयी योजनाएं लेकर आयेंगी. जनसंवाद के क्रम में लोगों ने बताया कि स्लम बस्तियों में शौचालय, शुद्ध पेयजल की किल्लत है. वहां रहनेवाले विद्यार्थियों को अपना जाति प्रमाण पत्र बनवाने में काफी कठिनाई होती है. आवासीय प्रमाण पत्र बनते ही नहीं. इससे उनकी शिक्षा पर विपरीत प्रभाव पड़ता है. पेंशन, राशन कार्ड बनवाने से जुड़ी समस्याएं भी हैं. अधिवक्ता अनुज कुमार ने कहा कि यदि जरूरी हो, तो कानूनी लड़ाई भी लड़ेंगे. झारखंड बचाओ आंदोलन के फादर स्टेन स्वामी ने कहा कि स्लम के लोगों के सवाल विकास, विस्थापन और आदिवासियों के हक-अधिकार से भी जुड़े सवाल हैं. समान मुद्दों पर साझा संघर्ष की जरूरत है. समिति के समन्वयक लखी दास ने कहा कि विकास की योजनाएं बस्तियों तक पहुंचे, इसके लिए एनओसी जरूरी है, पर यह बस्ती में रहनेवाले कहां से लेकर आयें? जेरोम जेराल्ड कुजूर व अन्य ने भी विचार रखे.

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