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भारत-पाक वार्ता रद्द होना ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ : अमेरिका

जो कुछ हुआ, बावजूद उसके संबंधों में सुधार लायें25 अगस्त को होनी थी सचिव स्तरीय वार्ताअलगाववादी नेताओं को बातचीत के लिए बुलाने के विरोध में भारत ने वार्ता रद्द कीपाक ने कहा, वार्ता रद्द होना संबंधों को झटकाएजेंसियां, वाशिंगटनअमेरिका ने भारत और पाकिस्तान के बीच विदेश सचिव स्तर की वार्ता के रद्द होने को ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ […]

जो कुछ हुआ, बावजूद उसके संबंधों में सुधार लायें25 अगस्त को होनी थी सचिव स्तरीय वार्ताअलगाववादी नेताओं को बातचीत के लिए बुलाने के विरोध में भारत ने वार्ता रद्द कीपाक ने कहा, वार्ता रद्द होना संबंधों को झटकाएजेंसियां, वाशिंगटनअमेरिका ने भारत और पाकिस्तान के बीच विदेश सचिव स्तर की वार्ता के रद्द होने को ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ बताया है और दोनों देशों से कहा कि जो कुछ भी हुआ, उसके बावजूद द्विपक्षीय संबंधों में सुधार लायें. अमेरिकी विदेश विभाग की उप प्रवक्ता मैरी हार्फ ने संवाददाताओं से कहा, ‘हम द्विपक्षीय संबंधों के सभी पहलुओं में सुधार के भारत और पाकिस्तान के प्रयासों का समर्थन करते रहेंगे. और यही बात हम दोनों पक्षों को लगातार स्पष्ट करते रहेंगे.’ भारत ने सोमवार को दोनों देशों के बीच इसलामाबाद में 25 अगस्त को तय विदेश सचिव स्तरीय वार्ता को रद्द कर दिया था और बेहद साफ शब्दों में पाकिस्तान से कह दिया था कि वह वार्ता और अलगाववादियों के साथ सांठगांठ में से किसी एक को चुने. भारत ने पाकिस्तान के उच्चायुक्त अब्दुल बासित द्वारा अलगाववादी हुर्रियत नेताओं के साथ बातचीत पर कड़ी आपत्ति जताते हुए वार्ता को रद्द कर दिया है. पाकिस्तान ने वार्ता रद्द किये जाने को भारत-पाक संबंधों को ‘झटका’ बताया है और कश्मीरी नेताओं के साथ अपनी चर्चा को यह कहते हुए सही ठहराया है कि द्विपक्षीय वार्ता से पूर्व इस प्रकार की बैठकें ‘लंबे समय से की जाती रही हैं.’अमेरिकी नीति में बदलाव नहींहार्फ ने यह बात जोर देकर कही कि कश्मीर पर अमेरिकी नीति बदली नहीं है. हार्फ ने कहा, ‘हमारा लगातार यह मानना रहा है कि कश्मीर पर किसी भी प्रकार की बातचीत का चरित्र, संभावनाएं और गति इनका निर्धारण भारत और पाकिस्तान को करना है. इसमें कोई बदलाव नहीं है और आगे बढ़ते हुए यही हमारी स्थिति रहेगी.’शंाति के लिए आघात ‘: पाक मीडियाइसलामाबाद. भारत और पाकिस्तान के बीच विदेश सचिव स्तरीय वार्ता रद्द होने को पाक मीडिया ने ‘एक बड़ा आघात’ बताते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अपने शपथ ग्रहण समारोह में अपने पाक समकक्ष को आमंत्रित किये जाने के औचक कदम के बाद नया घटनाक्रम ‘पीछे लौटने’ वाली कार्रवाई है. डॉन ने लिखा है, ‘ पाक उच्चायुक्त द्वारा हुर्रियत के एक नेता के साथ वार्ता करने के कारण भारत द्वारा 25 अगस्त को निर्धारित विदेश सचिवों की बैठक को रद्द किये जाने से, इन उम्मीदों को बड़ा आघात लगा है कि दोनों देश संबंधों को सामान्य करने के लिए काम कर रहे हैं.’ इसने लिखा है कि विदेश सचिवों को ठप पड़े रिश्तों को आगे ले जाने के रास्तों की संभावनाएं तलाशने के लिए मुलाकात करनी थी. यह कदम मई में दिल्ली में प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और उनके समकक्ष मोदी के बीच हुई मुलाकात में लिये गये फैसले के अगले कदम के तौर पर उठाया जाना था.पीछे लौटनेवाला कदमसमाचारपत्र ने लिखा है कि भारत का यह फैसला प्रधानमंत्री मोदी द्वारा उनकी कश्मीर यात्रा के दौरान लगाये गये आरोपों और उसके बाद की कड़ी कूटनीतिक टिप्पणियों के पश्चात आया है. मोदी ने कश्मीर यात्रा के दौरान कहा था कि पाकिस्तान पारंपरिक युद्ध नहीं लड़ सकता और इसलिए वह छद्म युद्ध के जरिये भारत पर आतंकवाद थोप रहा है. दैनिक ने अनाम विश्लेषकों के हवाले से लिखा है कि वार्ता रद्द करना कूटनीतिक संबंधों के लिए बहुत पीछे लौट जाने जैसा है जिन्हें मोदी के उस औचक कदम से बल मिला था, जब उन्होंने दक्षिण एशिया के अन्य नेताओं के साथ शरीफ को मई में नई दिल्ली में अपने शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित किया था.पाक को झटकाएक अन्य प्रमुख पत्र द न्यूज इंटरनेशनल ने लिखा है कि वार्ता रद्द होने से पाकिस्तान को एक झटका और उप महाद्वीप के शांति प्रयासों को गहरा आघात लगा है. इसने लिखा है, ‘भारत ने पाकिस्तान को एक विकल्प दिया है विदेश सचिव स्तरीय वार्ता और कश्मीरी अलगाववादियों से मुलाकात के बीच एक को चुनने का.’ पत्र ने लिखा है कि विदेश विभाग में घंटों चले विचार-विमर्श के बाद प्रवक्ता ने इस बात पर सहमत होते हुए प्रतिक्रिया दी कि भारतीय फैसला एक ‘आघात’ है. लेकिन, उन्होंने न कोई बड़ी निराशा जाहिर की और न ही पुनर्विचार का प्रस्ताव दिया. पत्र ने इस मुद्दे पर पाकिस्तान के देर से प्रतिक्रिया दिये जाने की आलोचना की.कांग्रेस के निशाने पर सरकारपाकिस्तान के साथ पहले वार्ता के लिए राजी होने और बाद मंें उसे रद्द करने की सरकार की नीति की कांग्रेस ने आलोचना की, जबकि सरकार और भाजपा ने इस फैसले का पुरजोर समर्थन करते हुए कहा कि ऐसा नहीं हो सकता कि पड़ोसी देश अलगाववादियों के साथ चले और भारत सरकार से वार्ता भी करे. कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने कहा, पाकिस्तान नीति को लेकर सरकार ने स्वयं ही अपने को कोने में धकेल लिया है. ‘पहले तो वह पाकिस्तान से वार्ता करने पर राजी हुई, वह भी इसलामाबाद में. सरकार गहरी निद्रा में थी और जब इसका विरोध हुआ, तो वह उससे जागी.’ कांग्रेस नेता ने कहा, अब अलगाववादी सरकार को चुनौती दे रहे हैं और पाकिस्तानी उच्चायुक्त भी सरकार को चुनौती देते हुए अलगाववादियों से मुलाकात जारी रखे हुए हैं. उन्होंने सवाल किया ‘सरकार का ऐसे में अगला कदम क्या होगा. पाकिस्तान के प्रति सरकार की रणनीति क्या है.’भारत का रुख साफ : रविशंकरउधर, कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने सरकार के रुख का समर्थन करते हुए कहा, मामला एकदम साफ है. पाकिस्तान या तो भारत सरकार से वार्ता करे या वह अलगाववादियों से बात करे. पाकिस्तान ने पहले अलगाववादियों से बात करना चुना, जबकि उसे स्पष्ट बता दिया गया था कि अगर वह ऐसा करता है तो वार्ता को आगे बढ़ाना मुश्किल होगा. उन्होंने कहा, हम हमेशा कहते आये हैं कि आप मित्र बदल सकते हैं, पड़ोसी नहीं. लेकिन, समस्या यह है कि पाकिस्तान में नियंत्रण किसका है. वहां अलग-अलग सुर हैं. भाजपा नेता मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि पाकिस्तान को यह समझना चाहिए कि आतंकवाद और अलगाववाद के प्रति भारत का नजरिया समान है और यह भी कि भारत में ‘निजाम, नेतृत्व और नीयत’ बदल गयी है.शांति प्रक्रिया को गहरा आघातमाकपा की जम्मू कश्मीर ईकाई के प्रदेश सचिव मोहम्मद युसूफ तारीगामी ने कहा, ‘ताजा राजनयिक गतिरोध शांति प्रक्रिया को गहरा आघात है जिसका मकसद दोनों पडोसी देशों के बीच संबंधों को सामान्य करना था.’ तारीगामी ने कहा कि वार्ता प्रक्रिया को गति देने की जरूरत है और ऐसी कोई भी कार्रवाई जो राजनयिक संपर्को को बाधित करने वाली हो, उसे इस बैठक में ही उठाया जा सकता था.

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