कैचलाइन : व्यथास्लग : वृंदावन व बनारस में गुमनाम जीवन जीनेवाली महिलाओं की पीड़ाएजेंसियां, वृंदावन/वाराणसी तन पर सफेद साड़ी आते ही समाज के रिश्ते-नातों और दुनिया के रंगों से अलग कर दी गयी सैंकड़ों विधवाएं अब बदलते समय के साथ समाज की मुख्यधारा में लौटना चाहती हैं और इनमें से कई एक बार फिर विवाह बंधन में बधने का सपना भी रखती हैं.वृंदावन और बनारस में रह रही सैंकड़ों विधवाएं पिछले कई सालों से समाज की मुख्यधारा से दूर एक गुमनाम जिंदगी बिता रही है. इनमें अधिकतर विधवाएं पश्चिम बंगाल की हैं जो पति की मौत के बाद परिवार से निकाल दी गयीं और देश के कई हिस्सों में भटकने के बाद वृंदावन और बनारस के विभिन्न आश्रमों में पहुंची या खुद परिवार द्वारा यहां जबरन पहुंचा दी गयीं.मिले पुनर्विवाह का अधिकारएक अनुमान के अनुसार पति की मौत के बाद अभिशाप समझ कर परिवार द्वारा निकाली गयीं ऐसी महिलाओं की संख्या करीब चार करोड़ के आस-पास है. गैर समाज सेवी संस्थाओं की मदद से इनमें से कुछ को रहने और खाने का आसरा मिल जाता है लेकिन अभी भी बड़ी संख्या में ऐसी विधवाओं को समाज की मुख्य धारा में वापिस लाये जाने की जरूरत है. वृंदावन के मीरा सहवागिनी विधवा आश्रम में रह रही राजस्थान की सीमा चौधरी ने कहा है कि मैं यहां पिछले 10 सालों से रह रही हूं. पति के गुजर जाने के बाद भाई-भाभी ने मुझे यहां छोड़ दिया था. इसके बाद परिवार के किसी व्यक्ति ने मेरी सुधि नहीं ली. मेरा मानना है कि महिलाओं को विधवा होने के बाद पुरु षों की ही तरह फिर विवाह करने का अधिकार होना चाहिए.समाज के लोग साथ देंसमाज में तेजी से आ रहे बदलाव का ही नतीजा है कि अब खुद सीमा की इस राय से पंडित और धर्म के ठेकेदार भी इत्तफाक रखते हैं जिन्हें कभी विधवा विवाह का धुर विरोधी माना जाता था. वृंदावन में बरसों से रह रहे पंडित भ्रमणदास ने कहा है कि मैं विधवाओं के दोबारा विवाह के विरोध में नहीं हूं. यदि कोई महिला कम उम्र में विधवा हो जाती है तो उसे पुन: घर बसाने का मौका दिया जाना चाहिए. एक अन्य बुजुर्ग महिला ने कहा है कि विधवा आश्रम में रहने वाली महिलाओं को समाज से बिल्कुल दूर कर दिया जाता है. ऐसे में उन्हें फिर से रिश्ते जोड़ने का हक मिलना चाहिए लेकिन इसके लिए जरूरी है कि समाज के लोग इसमें उनका साथ दें.बदलाव की शुरुआत यहीं सेसुलभ इंटरनेशनल की मदद से वृंदावन में सात बनारस में पांच और उत्तराखंड में भी विधवा आश्रम चलाये जा रहे हैं जिनमें दो हजार से अधिक विधवाएं रह रही हैं. इनमें अधिकतर महिलाएं 60 की उम्र को पार कर चुकी हैं. लेकिन जो महिलाएं अभी युवा हैं और अपने पति को खो चुकी हैं वह समाज की मुख्यधारा में वापस लौटना चाहती हैं. बनारस में समाज सेवी संस्था द्वारा संचालित आश्रम में रह रही ऐसी ही कुछ महिलाएं अब सफेद साड़ी के बजाय रंगीन साड़ी और गहने पहन रही हैं. इनकी संख्या कम है लेकिन बदलाव की शुरुआत यहीं से हो रही है. ऐसी ही एक 27 वर्षीय निर्मला बदला हुआ नाम ने कहा है कि मैं पुनर्विवाह कर नये सिरे से अपनी जिंदगी की शुरुआत करना चाहती हूं.
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शादी करना चाहती हैं अधिकतर विधवाएं
कैचलाइन : व्यथास्लग : वृंदावन व बनारस में गुमनाम जीवन जीनेवाली महिलाओं की पीड़ाएजेंसियां, वृंदावन/वाराणसी तन पर सफेद साड़ी आते ही समाज के रिश्ते-नातों और दुनिया के रंगों से अलग कर दी गयी सैंकड़ों विधवाएं अब बदलते समय के साथ समाज की मुख्यधारा में लौटना चाहती हैं और इनमें से कई एक बार फिर विवाह […]
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