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बांग्लादेश से ऐतिहासिक संधि चाहते हैं मोदी

एजेंसियां दिल्ली प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 16 दिसंबर से पहले भारत और बांग्लादेश के बीच लैंड बाउंड्री एग्रीमेंट (एलबीए) को संसद से मंजूरी दिलाने की पहल कर रहे हैं. 16 दिसंबर 1971 को ही भारतीय सेना ने पाकिस्तान आर्मी को सरेंडर करने के लिए मजबूर किया था. इसके बाद ही स्वतंत्र देश के तौर पर बांग्लादेश […]

एजेंसियां दिल्ली प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 16 दिसंबर से पहले भारत और बांग्लादेश के बीच लैंड बाउंड्री एग्रीमेंट (एलबीए) को संसद से मंजूरी दिलाने की पहल कर रहे हैं. 16 दिसंबर 1971 को ही भारतीय सेना ने पाकिस्तान आर्मी को सरेंडर करने के लिए मजबूर किया था. इसके बाद ही स्वतंत्र देश के तौर पर बांग्लादेश दुनिया के नक्शे पर सामने आया था. भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने पार्टी की बंगाल इकाई से भारत-बांग्लादेश के बीच द्विपक्षीय रिश्तों की अहमियत का हवाला देते हुए लैंड बाउंड्री एग्रीमेंट को लेकर उसकी आपत्तियों को दरकिनार करने के लिए कहा है. प्रधानमंत्री मोदी इस संधि को 16-17 दिसंबर से पहले संसद से मंजूरी दिलाना चाहते हैं. सितंबर 2011 में भारत और बांग्लादेश ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किया था, जब पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ढाका दौरे पर गये थे. हालांकि अभी तक इस समझौते को संसद की मंजूरी नहीं मिल पायी है. पूर्व यूपीए सरकार ने इस बिल को लोकसभा में पेश तो किया था, लेकिन उसे संसद की मंजूरी नहीं मिली थी. हालांकि राज्यसभा में पेश किये जाने की वजह से यह बिल अभी तक एक्सपायर नहीं हुआ है. पिछले साल पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने संसद के शीतकालीन सत्र के समाप्त होने से पहले इस संविधान संशोधन बिल (एलबीए) को राज्यसभा में पेश कर दिया था. हालांकि राज्यसभा में एनडीए की सरकार बहुमत में नहीं है लेकिन उसे उम्मीद है कि ऊपरी सदन में प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस इस बिल का विरोध नहीं करेगी. ऐसा इसलिए भी कि कांग्रेस ने ही इस बिल को राज्यसभा में पेश किया था. खुर्शीद ने इस बिल को लेकर जारी गतिरोध को तीन बार तोड़ने की कोशिश की लेकिन वह इसमें सफल नहीं हो पाये.आसान नहीं है डगरभारत और बांग्लोदश के बीच तीस्ता संधि पर हस्ताक्षर किये जाने से पहले काफी कुछ किये जाने की जरूरत है, लेकिन एलबीए को लागू कर भारत यह संदेश देने में सफल रहेगा कि वह वाकई में बांग्लादेश के साथ द्विपक्षीय रिश्तों को लेकर प्रतिबद्ध है. बांग्लादेश की शेख हसीना सरकार इस समझौते का अनुमोदन कर चुकी है. बिल का मकसद भारत और बांग्लादेश के बीच नये सिरे से सीमा को तय करना है. भाजपा की बंगाल यूनिट और राज्य की सत्ताधारी पार्टी तृणमूल कांग्रेस दोनों ही एलबीए का विरोध कर रही हैं. उन्हें लगता है कि इस समझौते की वजह से भारत को अपनी जमीन गंवानी पड़ सकती है.

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