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फोटो साउथ–स्वतंत्रता आंदोलन में पलामू की भूमिका

-डॉ. रामजीइंट्रो– 1857 के विद्रोह ने ब्रिटिश शासन की जड़ें हिला दी. इस विद्रोह की शुरुआत 10 मई 1857 को मेरठ में हुई, जब भारत की ब्रिटिश सेना के भारतीय सिपाही उठ खड़े हुए. विद्रोह की आग बंगाल से होते हुए बिहार के गांव-गांव तक फैल गयी. बिहार के पलामू जिले के घने जंगलों-बीहड़ों मंे […]

-डॉ. रामजीइंट्रो– 1857 के विद्रोह ने ब्रिटिश शासन की जड़ें हिला दी. इस विद्रोह की शुरुआत 10 मई 1857 को मेरठ में हुई, जब भारत की ब्रिटिश सेना के भारतीय सिपाही उठ खड़े हुए. विद्रोह की आग बंगाल से होते हुए बिहार के गांव-गांव तक फैल गयी. बिहार के पलामू जिले के घने जंगलों-बीहड़ों मंे ब्रिटिश शासन के खिलाफ शंखनाद किया गया. इस विद्रोह का नेतृत्व भोक्ता जनजाति के भ्राता द्वय नीलांबर-पीतांबर ने किया. सशस्त्र संघर्ष के सेनानी महानायक नीलांबर-पीतांबर अंगरेजों की आंखों में जल्द ही खटकने लगे. ब्रिटिश-विजय के आरंभ से ही देश के विभिन्न भागों की जनता कभी अपनी राजनीतिक दासता से प्रसन्न नहीं रही. कोई ऐसा साल भी न गुजरा, जब देश के किसी न किसी भाग में ब्रिटिश सत्ता का सशस्त्र विरोध न हुआ हो. आदिवासियों का विद्रोह 1831 में, भीलों का विद्रोह 1820-37 में व कोलो का विद्रोह 1829-33 में उल्लेखनीय है. मगर 1857 के विद्रोह ने ब्रिटिश शासन की जड़ें हिला दी. इस विद्रोह की शुरुआत 10 मई 1857 को मेरठ में हुई, जब भारत की ब्रिटिश सेना के भारतीय सिपाही उठ खड़े हुए. विद्रोह की आग बंगाल से होते हुए बिहार के गांव-गांव तक फैल गयी. बिहार के पलामू जिले के घने जंगलों-बीहड़ों मंे ब्रिटिश शासन के खिलाफ शंखनाद किया गया. इस विद्रोह का नेतृत्व भोक्ता जनजाति के भ्राता द्वय नीलांबर-पीतांबर ने किया. सशस्त्र संघर्ष के सेनानी महानायक नीलांबर-पीतांबर अंगरेजों की आंखों में जल्द ही खटकने लगे. भ्राता द्वय ने भोक्त-खचार जनजातियों के बीच अपनी गहरी पैठ बना ली थी. वे उन्हें शस्त्र-चालन तथा गुरिल्ला युद्ध करने में निपुण कर चुके थे. इनके एक आदेश पर सैकड़ों हाथ उठ जाते, कुछ भी कर गुजरते. इनकी आक्रामकता से परेशान ब्रिटिश शासक तंग आ चुके थे. अंगरेज अधिकारियों ने नीलांबर-पीतांबर को पकड़ने के लिए विशेष योजना बनायी. इस योजना के कार्यान्वयन के लिए छोटानागपुर के तत्कालीन कमिश्नर कैप्टन डाल्टन दो हजार जवानों की फौज लेकर पलामू पहुंचे. उसने इलाके के सभी राजे-रजवाड़े को भी इस अभियान में शामिल होने का हुक्मनामा जारी किया. 13 फरवरी, 1858 को कैप्टन डाल्टन कुटकू गांव के पास कोयल नदी को पार कर सबसे पहले चेमू गांव पहुंचा. अचानक इस हमले से विद्रोही घबरा गये और गांव छोड़ कर घने जंगलों में छिप गये. अंगरेजों ने पूरे चेमू गांव को तबाह कर दिया. नीलांबर-पीतांबर के मकान को ध्वस्त कर दिया गया. इसके बाद सनेया गांव में भी तबाही मचायी गयी. जो भी विद्रोही पकड़े गये, उन्हें फांसी दे दी गयी. इनमें गणपत व विश्वनाथ शाही मुख्य थे. अंगरेजों ने धूर्ततापूर्ण कार्रवाई कर पलामू के इस गदर को नेस्तनाबूद कर दिया. छल पूर्वक नीलांबर-पीतांबर को पकड़ लिया गया. इनके साथ कुमार सिंह, रतन मांझी, नारायण बनिया, शिवशंकर मांझी, परमानंद सिंह, नकलौत मांझी, राजा सिंह, भूखा साव, रेगा सिंह व टिकैत अनारस सिंह सहित 269 लोग पकड़ लिये गये. विद्रोह का नेतृत्व करने व ब्रिटिश शासन की अधीनता स्वीकार नहीं करने के आरोप में 28 मार्च, 1859 को लेस्लीगंज (छावनी) के एक बरगद पेड़ से लटका कर नीलांबर-पीतांबर को फांसी दे दी गयी. इस तरह 1857 का विद्रोह पलामू में समाप्त हो गया. परंतु स्वाधीनता आंदोलन समाप्त नहीं हुआ. आजादी के दीवाने सैकड़ों स्वतंत्रता सेनानियों ने ब्रिटिश शासन को चैन नहीं लेने दिया. उन्होंने पलामू के कई थानों पर आक्रमण किया, सरकारी दफ्तरों मंे तोड़-फोड़ की. जेल की सलाखों में महीनों रहे. परंतु आंदोलन की आग को बुझने नहीं दिया. इन्हीं की कुर्बानियों से हमें आजादी मिली. भले ही यह संघर्ष रक्त रंजित रहा, परंतु आजादी के दीवानों ने कभी हार नहीं मानी. ये लोग युवावस्था में आंदोलन में कूदे थे1. यदुवंश सहाय, 2 गणेश प्रसाद वर्मा, 3. चंद्रिका प्रसाद वर्मा, 4 रामचंद्र सिंह, 5 बलदेव कहार, 6 मोती सेठ, 7 कृष्णा मोहन प्रसाद, 8 प्रेमथोनाथ मुखर्जी, 9 अखौरी अवधेश्वर प्रसाद सिन्हा, 10 उमेश्वरी चरण, 11 गोलुकनाथ वर्मा, 12 राजेश्वर प्रसाद अग्रवाल, 13 विशेश्वरनाथ, 14 नंदकिशोर प्रसाद, 15 आदित्य राम, 16 मकेश्वरनाथ सिन्हा, 17 वेद प्रकाश, 18 सुखदेव राम, 19 महावीर राम, 20 नंदलाल प्रसाद, 21 डोमन राम, 22 महावीर प्रसाद, 23 इंद्रदेव प्रसाद, 24 कृष्णानंदेव प्रसाद, 25 सुकोमल दत्त, 26 नीलकंठ सहाय, 27 रॉबिन रिचर्ड, 28 लक्ष्मण प्रसाद, 29 रघुवीर प्रसाद, 30 सुखदेव सहाय, 31 शिव प्रसाद साह, 32 ऋषि कुमार सहाय, 33 हरि राम, 34 रामखेलवान सिंह, 35 सुरेश्वर प्रसाद, 36 त्रिवेणी तिवारी, 37 शिव सिंह, 38 भुवनेश्वर प्रसाद बाजपेयी, 39 रामसेवक साह, 40 रघुनाथ प्रसाद अग्रवाल, 41 रामाश्रय यादव, 42 ज्योतिप्रसन्न राय, 43 तुलसी तिवारी, 44 रामनारायण राम, 45 वासुदेव नारायण, 46 रिक्ष प्रकाश, 47 धीरेंद्र कुमार, 48 यमुना प्रसाद, 49 सरदार गुरुदर्शन सिंह व 50 सचिंद्र नाथ. इसके अतिरिक्त सैकड़ों स्वतंत्रता सेनानियों ने स्वाधीनता की लड़ाई लड़ी. जो गुमनामी के बियाबान में रह गये.-कुण्ड मुहल्ला, डालटनगंज(लेखक वरिष्ठ साहित्यकार हैं)

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