डॉ सीके सिंह : स्मृति शेषडॉ सीके सिंह सेवानिवृत्ति के बाद भी लगातार काम करते रहे. उनका अधिकतर समय काम में ही गुजरता था. नौकरी के दौरान वह 16 घंटे से अधिक समय तक काम करते थे. वह अक्सर अपने सहयोगियों से यह कहा करते थे कि मरते दम तक काम करेंगे और काम करते हुए ही मरेंगे. इस वादे को वह निभा गये. इस तरह बीमार पड़ने के पहले भी सीआइटी व बीआइटी में काम करते रहे और जिंदगी छोड़ी. आज भी इंजीनियर डॉ सिंह से सहयोग लिया करते थे. टेक्निकल मामलों में फंसने पर उनका ही मार्गदर्शन इंजीनियरों को बचाता था. उनका व्यक्तित्व सबसे अलग रहा है. खुले दिल के डॉ सिंह सबकी मदद के लिए तैयार रहते थे. आज झारखंड में जो महत्वपूर्ण पुल और सड़क दिख रहे हैं, वह उनकी ही देन है. यहां तक कि पीएमजीएसवाइ, मुख्यमंत्री ग्राम सेतु योजना की शुरुआत भी उनके अभियंता प्रमुख कार्यकाल में हुई. उन्होंने इंजीनियरों के लिए भी बहुत कुछ किया. राष्ट्रीय व राज्य स्तर के टेक्निकल सेमिनार से लेकर अध्ययन व अध्यापन कार्य की वह रीढ़ थे. उन्होंने इंजीनियरिंग पर आधारित कई पुस्तकें लिखीं.उनके पास हर मामले का हल था. इंजीनियर अगर किसी मामले में फंसते थे, तो इसका निराकरण भी वही निकालते थे. उनके नेतृत्व में इंजीनियर रहना चाहते थे. 2002-03 के दरम्यान जब इंजीनियरों का आंदोलन हुआ, तो उसका नेतृत्व भी उन्होंने किया. उनकी एक आवाज पर सारे इंजीनियर जमा हो गये.शिवानंद रायलेखक इंजीनियर हैं और लंबे समय तक डॉ सिंह से जुड़े रहे हैं.
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मरते दम तक काम करने का वादा निभा गये (फोटो ट्रैक पर)
डॉ सीके सिंह : स्मृति शेषडॉ सीके सिंह सेवानिवृत्ति के बाद भी लगातार काम करते रहे. उनका अधिकतर समय काम में ही गुजरता था. नौकरी के दौरान वह 16 घंटे से अधिक समय तक काम करते थे. वह अक्सर अपने सहयोगियों से यह कहा करते थे कि मरते दम तक काम करेंगे और काम करते […]
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