संवैधानिक दर्जा दिया जायेगा न्यायपालिका का डर दूर करने के लिए आयोग को संवैधानिक दर्जा दिया जायेगा, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सरकार सामान्य विधेयक के जरिये इसकी संरचना में कोई बदलाव नहीं कर सके. जहां संविधान संशोधन विधेयक के लिए दो तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है, वहीं सामान्य विधेयक के लिए सामान्य बहुमत की ही जरूरत होती है. बिल में एक प्रावधान जोड़ा गया है कि अगर प्रस्तावित आयोग के दो सदस्य किसी व्यक्ति के नाम का विरोध करते हैं, तो उस व्यक्ति की नियुक्ति नहीं हो सकेगी. यह निकाय के भीतर किसी भी तरह के टकराव को रोकेगा. चयन में इनकी होगी भागीदारी आयोग 24 उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों और न्यायाधीशों का एक स्थान से दूसरे स्थान पर तबादला करने की भी अनुशंसा करेगा. दो प्रतिष्ठित हस्तियों को चयन प्रधान न्यायाधीश, प्रधानमंत्री और लोकसभा में विपक्ष के नेता या निचले सदन में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता मिल कर करेंगे. सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता को रखने का प्रावधान इसलिए किया गया, क्योंकि लोकसभा में विपक्ष के नेता का पद कांग्रेस को मिलने को लेकर भ्रम है. प्रक्रियाएं होगी परिभाषित सरकार संविधान संशोधन विधेयक के साथ एक और विधेयक लायेगी. इसमें प्रस्तावित आयोग की प्रक्रियाओं को परिभाषित करेगी. संविधान संशोधन विधेयक के जरिये संविधान के अनुच्छेद 124 (उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति) और अनुच्छेद 217 (उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति) में संशोधन किया जायेगा. राजग-1 और यूपीए दो लायी थी बिल राजग-1 सरकार द्वारा 2003 में कॉलेजियम प्रणाली को बदलने का पिछला प्रयास सफल नहीं हो सका था. तत्कालीन सरकार ने संविधान संशोधन विधेयक पेश किया था, लेकिन जब विधेयक स्थायी समिति के पास था, तभी लोकसभा भंग हो गयी थी. मौजूदा वित्त मंत्री अरुण जेटली तब विधि मंत्री थे. यूपीए दो सरकार ने भी इसी तरह का विधेयक पेश किया था, लेकिन 15वीं लोकसभा के भंग किये जाने के कारण इसकी मियाद समाप्त हो गयी. क्या है प्रक्रिया किसी भी संविधान संशोधन विधेयक को संसद की मंजूरी मिलने के बाद इसे सभी राज्यों को भेजा जाता है और 50 फीसदी राज्य विधायिकाओं को इसका अनुमोदन करना होता है. इस प्रक्रिया में आठ महीने लग सकते हैं. अनुमोदन के बाद सरकार इसे राष्ट्रपति के पास उनकी मंजूरी के लिए भेजती है. कॉलेजियम व्यवस्था 1993 से हुई शुरू न्यायाधीशों द्वारा न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया 1993 में शुरू हुई थी, जब सरकार के सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को चुनने की व्यवस्था को बदल दिया गया था. सुप्रीम कोर्ट के 1993 के फैसले को निरस्त करने लिए संविधान में संशोधन की जरूरत होगी. सुप्रीम कोर्ट के 1993 के फैसले के बाद से ही कॉलेजियम व्यवस्था शुरू हुई थी.
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न्यायाधीश नियुक्ति में जोड़
संवैधानिक दर्जा दिया जायेगा न्यायपालिका का डर दूर करने के लिए आयोग को संवैधानिक दर्जा दिया जायेगा, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सरकार सामान्य विधेयक के जरिये इसकी संरचना में कोई बदलाव नहीं कर सके. जहां संविधान संशोधन विधेयक के लिए दो तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है, वहीं सामान्य विधेयक के लिए […]
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