सुनिए झारखंड के नायकों को : लोकतंत्र को ठोक-बजा कर देखने का है यह वक्त

ज्ञानेंद्रपति नीति तो बनती है, लेकिन उसे कार्यरूप देनेवाली रीति नदारद है झारखंड को स्वतंत्र राज्य बने करीब दो दशक हुए और आज चौथी विधानसभा के लिए चुनाव होने जा रहे हैं. जनता के लिए यह आकलन का भी अवसर है कि उनकी अपेक्षाएं कहां तक पूरी हुई. विकास के कुछ पहलू तो साफ दिखते […]

By Prabhat Khabar Print Desk | November 14, 2019 6:11 AM
ज्ञानेंद्रपति
नीति तो बनती है, लेकिन उसे कार्यरूप देनेवाली रीति नदारद है
झारखंड को स्वतंत्र राज्य बने करीब दो दशक हुए और आज चौथी विधानसभा के लिए चुनाव होने जा रहे हैं. जनता के लिए यह आकलन का भी अवसर है कि उनकी अपेक्षाएं कहां तक पूरी हुई. विकास के कुछ पहलू तो साफ दिखते हैं. सड़कें बेहतर हुईं हैं, हैंडपंप लगे हैं.
बीपीएल परिवारों को राशन भी उपलब्ध है. लेकिन साहित्य, संस्कृति एवं कला के संवर्धन के लिए सरकार की सक्रियता चिंतन के धरातल तक पर भी नहीं दिखी है. देखा यह जा रहा है कि नीति तो बनती है, लेकिन उसे कार्यरूप देने वाली रीति नदारद है. उदाहरण के लिए इसी नीति को लें कि हर गांव के पास एक खेल का मैदान होना चाहिए. बहुत पहले मैंने एक कविता लिखी थी– मिट गये मैदानों वाला गांव. वह मेरे गांव पथरगामा की व्यथा-कथा थी. आज भी पथरगामा अपने खोये हुए मैदान को खोज रहा है. दूसरे उदाहरण के रूप में सरकार द्वारा घोषित धान की फसल के समर्थन मूल्य को देखा जा सकता है, जिसका लाभ व्यवहारतः किसान को नहीं मिल पा रहा है.
आदिवासियों-मूलवासियों का विस्थापन भारतीय समाज की सबसे बड़ी त्रासदियों में एक है. वह दिल्ली हो या कोई और महानगर, वह मानव -चुंबक तो है ही, लेकिन वहां आदिवासी किशोरियों का घरेलू नौकरानियों के रूप में खटना और भांति-भांति के शोषण का शिकार होना एक ऐसा जीवन-प्रसंग है, जिसे अनदेखा कर हम अपनी सामूहिक शर्म से निजात पाने के अभ्यस्त हो चले हैं.
(प्रवीण तिवारी से बातचीत पर आधारित)
वोट की अपील
विधानसभा चुनाव में आप अपने मत का प्रयोग अवश्य करें. साथ ही अपने आस-पास के वैध वोटर को भी मत देने के लिए प्रेरित करें. इस देश के नागरिक होने के नाते अपने मताधिकार का प्रयोग अवश्य करें. वोट करें, राज्य गढ़ें. वोट देने मतदान स्थल पहुंचें. यह आपका संवैधानिक अधिकार है.

Next Article

Exit mobile version