रांची : अमीरों की जगह गरीबों पर खर्च होगा बैंकों का पैसा

सरकार की योजनाओं को जमीनी स्तर पर मजबूती से लागू कराना है उद्देश्य रांची : देश के विकास में बैंकों की सीधी भागीदार का मार्ग प्रशस्त किया जा रहा है. सरकार की मंशा अब अमीरों की जगह गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों को लोन उपलब्ध कराने की है. बैंकिंग इतिहास में पहली बार बैंक से […]

By Prabhat Khabar Print Desk | August 26, 2019 5:53 AM
सरकार की योजनाओं को जमीनी स्तर पर मजबूती से लागू कराना है उद्देश्य
रांची : देश के विकास में बैंकों की सीधी भागीदार का मार्ग प्रशस्त किया जा रहा है. सरकार की मंशा अब अमीरों की जगह गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों को लोन उपलब्ध कराने की है. बैंकिंग इतिहास में पहली बार बैंक से जुड़ी सेवाओं को लेकर उनसे सेल्फ एसेसमेंट कराया जा रहा है, जिसका उद्देश्य सरकार की योजनाओं को जमीनी स्तर पर मजबूती से लागू कराना है.
इसके तहत पहले शाखा या क्षेत्रीय स्तर, फिर राज्य स्तर और आखिर में राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा और नतीजों पर उनकी रेटिंग तय की जायेगी. महीने भर चलनेवाले अभियान में अगले पांच साल के लिए देश के विकास के लिए सक्रिय भागीदार के रूप में सरकारी बैंकों की भूमिका तलाशी जायेगी. चर्चा का मकसद बैंकिंग सेक्टर को राष्ट्रीय प्राथमिकताओं से जोड़ने के साथ ही बैंकों को स्थानीय मुद्दों और क्षेत्रीय विकास की संभावनाओं से भी जोड़ा जायेगा.
बड़े स्तर पर बदलाव की तैयारी
बैंकों को ग्राहकों के प्रति अधिक जवाबदेह बनाकर उन्हें जरूरतमंदों को लोन प्रदान करने की है. कॉरपोरेट और बड़े पूजीपतियाें को मिलने वाले लाखों-करोड़ के लोन की जगह पर वह इसे टुकड़ों मेें बांटकर जरूरतमंदों और इसके बीच चलाये जाने वाली कल्याणकारी योजनाओं पर खर्च करेगी. सरकार की सोच है कि अमीरों की जगह पर गरीब कर्ज लेने व चुकाने दोनों में ईमानदार हैं.
बैंकों को प्रदर्शन के आधार पर मिलेगी रैंकिंग
17 और 18 अगस्त को केंद्र के पैरामीटर पर चर्चा के बाद 22 और 23 अगस्त को राज्य स्तरीय बैंकर्स समिति की बैठक में जारी पैरामीटर के आधार पर रिपोर्ट कार्ड प्रस्तुत किया जाना है. सबसे अाखिर में बैंकों के शिर्ष अधिकारी सरकार के साथ बैठक कर बैंकों का क्षमता के आधार पर उनकी रेटिंग तय करेंगे.
बैंककर्मियों को सता रहा डर
राज्य के लीड बैंक और एआइबीआेसी से जुड़े एक अधिकारी ने बताया कि सरकार रेटिंग तय कर मर्जर व प्राइवेटाइजेशन के लिए अनुकूल वातावरण तैयार कर रही है. सरकार की मंशा समझ के परे है, पहले ही नोटबंदी के प्रयोग से देश की अर्थव्यवस्था की चुनौतियों का सामना कर रहा है.
वह निजी क्षेत्र का मॉडल लेना चाहती है, जबकि निजी क्षेत्र के बैंकों के लिए साख का संकट पहले से है. सरकार की नीतियों से बैंक का एक बड़े वर्ग में अविश्वास का माहौल है कि कहीं डिमोनेटाइजेशन और धारा 370 की तरह पीएम बैंक रिफार्म के नाम पर इसके मर्जर व प्राइवेटाइजेशन की घोषणा न कर दें.

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