लगातार बदल रहे मौसम के लिए जिम्मेवार कौन ?

रतन कुमार महतोइस साल मार्च के महीने में ‘पश्चिमी विक्षोभ’ का प्रभावी रहना, फलस्वरूप कश्मीर, लेह, हिमाचल में बर्फबारी जारी रहना और पठार सह उत्तर भारत में बीच-बीच में वर्षा होना आदि मौसम में बदलाव के स्पष्ट संकेत हैं. यह स्थिति ग्लोबल स्तर पर भी दिख रही है. वैज्ञानिकों का मानना है कि मौसम में […]

By Prabhat Khabar Print Desk | March 23, 2019 2:17 AM

रतन कुमार महतो
इस साल मार्च के महीने में ‘पश्चिमी विक्षोभ’ का प्रभावी रहना, फलस्वरूप कश्मीर, लेह, हिमाचल में बर्फबारी जारी रहना और पठार सह उत्तर भारत में बीच-बीच में वर्षा होना आदि मौसम में बदलाव के स्पष्ट संकेत हैं. यह स्थिति ग्लोबल स्तर पर भी दिख रही है. वैज्ञानिकों का मानना है कि मौसम में बदलाव व क्लाइमेट चेंज के लिए कृत्रिम कारण व प्राकृतिक कारण दोनों जिम्मेदार हैं.

प्राकृतिक कारणों पर हमारा नियंत्रण नहीं हो सकता है, लेकिन कृत्रिम या मानव जनित कारणों पर नियंत्रण हो सकता है. हमें सचेत होना है कि हमारे करतूतों से हमारे साथ-साथ अन्य प्राणियों, जीव-जंतुओं के समक्ष संकट उत्पन्न न हो. मौसम के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए ही विश्व मौसम संगठन 23 मार्च को विश्व मौसम दिवस का आयोजन करता है.
इस वर्ष मौके के लिए ‘सूर्य, पृथ्वी और मौसम’ विषय चुना गया है. यह सर्व विदित है कि पृथ्वी पर होनेवाली क्रियाओं व घटनाओं के लिए सूर्य ही जिम्मेदार है. इसके गर्मी के बगैर मानव, जैव व उदिभद जगत की क्रियाएं नहीं हो सकती. इसकी गर्मी हमारे थलमंडल, जलमंडल और वायुमंडल को प्रभावित कर मौसम को प्रभावित करता है.
मौसम को प्रभावित करनेवाले कृत्रिम कारण
1. औद्योगिकरण
2. शहरीकरण
3. वाहनों में वृद्धि
4. जंगल की कटाई
5. जंगल की आग
6. फसल अवशिष्ट (पराली) जलाना
7. भूतल जल का अवशोषण
8. आराम तलवी जीवन पद्धति
9. ग्रीन हाउस गैस प्रभाव व ग्लोबल वार्मिंग आदि
मौसम को प्रभावित करन वाले प्राकृतिक कारण
1. पृथ्वी के चक्रण, झुकाव व अक्ष परिवर्तन
2. सौर विकिरण उतार-चढ़ाव
3. ज्वालामुखी विस्फोट
4. धूलभरी आंधी
5. खदानों व तेल कूपों में लगी आग
6. ध्रुवों का स्थान परिवर्तन आदि
बेन डेविडसन, अमेरिकन खगोल पर्यवेक्षक के अनुसार
भू-चुम्बकीय क्षेत्र 1600 ई से कमजोर होना शुरू हुआ.
1800 ई. से 2000 ई. तक 10 प्रतिशत कमजोर हुआ.
2014 ई. से तेजी से कमजोर हो रहा है.
चुम्बकीय तबदीली से बाढ़ आ सकती है.
दक्षिणी ध्रुव अंटार्कटिका से तथा उत्तरी ध्रुव आर्कटिक क्षेत्र से दूर होता जा रहा है.
वैज्ञानिक जेनिस एलएफ के अनुसार भू-चुम्बकीय परिवर्तन के कारण
तापमान अत्यधिक बढ़ सकता है.
लघु चाप प्रणाली कारगर हो सकती है.
अत्यंत प्रभावशाली तूफान उत्पन्न हो सकते हैं.
प्रजातियों के विलोपन का खतरा हो सकता है.
बड़े पैमाने पर प्राकृतिक प्रकोप हो सकते हैं.
पृथ्वी के चक्रों एवं प्रणालियों में भी परिवर्तन हो रहा है
हाल के वैज्ञानिक अध्ययन बताते हैं कि पृथ्वी के चक्रण, झुकाव कोण व अक्ष में परिवर्तन हुआ है एवं हो रहा है. इसलिए पृथ्वी के चक्रों एवं प्रणालियों में भी परिवर्तन हो रहा है. ज्ञात हो कि सूरज व पृथ्वी के बीच का झुकाव कोण 23.50 था, लेकिन उसमें विचलन हुआ है. ठीक इसी तरह पृथ्वी के अक्ष की स्थिति में भी विचलन हो रहा है.
यह विचलन काफी वर्षों की गतिमानता से होती है या फिर भूकंपों के झटके के कारण. स्मरणीय है कि वर्ष 2004 में सुमात्र में आये भूकंप के कारण दिन 6.8 माइक्रो सेकेंड छोटा हो गया था और मार्च 2011 में जपानों में आये 8.9 तीव्रता के भूकंप के कारण दिन 1.26 माइक्रोसेकेंड छोटा हो गया. पृथ्वी अपनी धुरी से करीबन 4 इंच खिसक गयी थी.
पोल-शिफ्ट सिद्धांत के अनुसार भी पृथ्वी का स्थानिक परिवर्तन होता है, जो भू-चुंबकीय पैटर्न में बदलाव पैदा करता है और पृथ्वी के सारे चक्रों जिनमें जलवायु भी है, को प्रभावित करता है. सौर लपटों के कारण अत्यधिक सौर्य ऊर्जा पृथ्वी पर आने पर भी पृथ्वी की अक्ष की स्थिति में परिवर्तन होता है. भू-चुंबकीय क्षेत्र में परिवर्तन होता है.
(लेखक अवकाश प्राप्त मौसम विज्ञानी हैं)

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