Lok Sabha Election: बोले युवा, जो रोजगार देगा उसे वोट देंगे

रांची:लोकसभा चुनाव की मतदाता सूची में 8.4 करोड़ मतदाता जुड़े हैं. 18 साल के नये मतदाता 1.5 करोड़ हैं. युवा मतदाताओं की यह संख्या काफी अहम है. इस लोकसभा चुनाव में युवाओं को रिझाने में हर एक पार्टियां लगी है. इस चुनाव में युवा किन मुद्दों पर वोट करेंगे? यह बड़ा सवाल है.प्रभात खबर डॉट […]

By Prabhat Khabar Print Desk | March 13, 2019 5:59 PM

रांची:लोकसभा चुनाव की मतदाता सूची में 8.4 करोड़ मतदाता जुड़े हैं. 18 साल के नये मतदाता 1.5 करोड़ हैं. युवा मतदाताओं की यह संख्या काफी अहम है. इस लोकसभा चुनाव में युवाओं को रिझाने में हर एक पार्टियां लगी है. इस चुनाव में युवा किन मुद्दों पर वोट करेंगे? यह बड़ा सवाल है.प्रभात खबर डॉट कॉम ने युवाओं से बातचीत में इस सवाल का जवाब जानने की कोशिश की.

रोजगार सबसे बड़ा मुद्दा
रांची के कोचिंग संस्थान में सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे है छात्रों ने खुलकर अपनी बात रखी. अनुप्रिया कहतीं है हमारे लिए तो सबसे बड़ा मुद्दा शिक्षा और रोजगार ही हैं. नौकरियां आ रही है लेकिन कटऑफ हाई है. जो बचता है वह हमारे हिस्से नहीं है. मैं तो मानती हूं आरक्षण नौकरी में नहीं होना चाहिए. शिक्षा में आरक्षण मिले लेकिन उन्हें जो गरीब है. इस कोचिंग संस्थान में बैकिंग की तैयारी कर रहे, अंकित किड़ो ने कहा, हर साल IBPS की सीट कम हो रही है. इस बार सिर्फ 4 हजार सीटें थी. हमारे लिए हर साल मौके कम हो रहे हैं. अगर हमारी सीट बढ़ायी जायेगी, तो हमें और अवसर मिलेगा. युवा बेरोजगार है, उनकी समस्या का हल निकालना चाहिए. छात्र कहते हैं नौकरियां आ रही है लेकिन कम है. सरकार वादे करती है लेकिन अब सिर्फ उन वादों पर नहीं जायेंगे. इस बार विचार करेंगे.

रोहित कहते हैं, नौकरियां कम हो रही है खासकर बैंकिंग के क्षेत्र में. कटऑफ हाई हो रहे हैं. रेलवे की वेंकैसी भी बहुत देर बाद आयी है. मुझे लगता है चुनाव की वजह से नौकरियां इस बार ज्यादा निकाली गयी है. नौकरी आयी लेकिन करोड़ों में फार्म भरे गये. नौकरियां देर से आयी तो युवा बेरोजगार की फौज भी बड़ी हो गयी. मुझे लगता है बैकिंग में रोजगार की संभावना ज्यादा होनी चाहिए. बैंक जिस तरह एनपीए पर ध्यान दे रहे है वह ठीक है लेकिन एक बैंक दूसरे से विलय कर रहा है उससे हमें नुकसान है. बैंक में कई काम अब निजी कंपनियों को दिया जा रहा है. जो रोजगार की संभावना थी, उसे भी कम कर दिया गया. छात्र कहते हैं, कभी – कभी ऐसा हुआ है कि बैंक की नौकरी की तैयारी के साथ- साथ कई दूसरे विकल्प पर भी ध्यान देना पड़ता है क्योंकि यहां रोजगार कम हैं. रेलवे सहित कई दूसरे क्षेत्रों में भी जाना पड़ता है. हम प्राइवेट नौकरी भी करना चाहते हैं लेकिन वहां भविष्य नहीं है कुछ भी तय नहीं है कि नौकरी कबतक रहेगी.
फॉर्म के पैसे ज्यादा लगते हैं और नौकरी भी कम है
बैंकिंग के फॉर्म भरने में 600 रुपये लगते हैं. छात्र घर से दूर सरकारी नौकरी की तैयारी के लिए बाहर रहते हैं. पैसे घर से मंगाते हैं. रोहित कहते हैं, सरकार अगर हमारे फार्म की कीमत कर दे ,तो बेहतर होगा. आर्थिक रूप से कमजोर लोग वहन नहीं कर पाते. सुसरिता भी 2017 से तैयारी कर रहे हैं वह वोट देना चाहती हैं लेकिन उनका वोटर कार्ड गांव का है वह रांची में रहकर पढ़ाई करती हैं.
कई बार परीक्षा में शामिल हुई हैं लेकिन अबतक सफल नहीं हुई. यहां छात्रों की शिकायत यह भी रही कि हर बार सिलेबस बदल जाता है. हर बार नये तरीके से तैयारी करनी पड़ती है. कैटेगरी बट जाती है, आरक्षण के बाद हमारे लिए कुछ बचता नहीं है. विद्यार्थी को जो लाभ मिला है नयी आरक्षण के तहत उसके लिए भी दौड़ना होगा. कई तरह के कागजात तैयार करने होंगे. कई तरह की परीक्षा भी बीच में रद्द हो जाती है. जेपीएससी का उदाहरण है कई मामले अबतक कोर्ट में अटके हैं.

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