रांची : प्रभात खबर का ओपेन माइक कार्यक्रम, आदिवासी समाज में सामाजिक और राजनीतिक चेतना है जरूरी

रांची : प्रभात खबर सभागार में शनिवार को अोपेन माइक कार्यक्रम के तहत बदलते परिवेश में बदलता आदिवासी समाज विषय पर परिचर्चा हुई. इसमें डॉ रामदयाल मुंडा के पुत्र अौर केंद्रीय विश्वविद्यालय झारखंड के असिस्टेंट प्रोफेसर गुंजल इकिर, श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ अभय सागर मिंज अौर एशिया पैसीफिक इंडीजिनस यूथ नेटवर्क […]

By Prabhat Khabar Print Desk | September 16, 2018 6:44 AM
रांची : प्रभात खबर सभागार में शनिवार को अोपेन माइक कार्यक्रम के तहत बदलते परिवेश में बदलता आदिवासी समाज विषय पर परिचर्चा हुई. इसमें डॉ रामदयाल मुंडा के पुत्र अौर केंद्रीय विश्वविद्यालय झारखंड के असिस्टेंट प्रोफेसर गुंजल इकिर, श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ अभय सागर मिंज अौर एशिया पैसीफिक इंडीजिनस यूथ नेटवर्क फिलीपींस की प्रेसीडेंट डॉ मीनाक्षी मुंडा ने अपने विचार रखे. कार्यक्रम को वरिष्ठ पत्रकार अनुज सिन्हा ने भी संबोधित किया. मौके पर रांची विश्वविद्यालय पत्रकारिता विभाग की फैकल्टी अौर छात्र भी मौजूद थे.
आदिवासियत का विचार ही दुनिया को बचा सकता है : गुंजल इकिर : व्यक्तिवादी होना पर्यावरण या दुनिया के लिए सबसे बड़ा खतरा है. किसी समय दुनिया के सारे लोग, समुदाय या धरती को केंद्र में रखकर ही सोचते थे. अब इसे लोग भूल रहे हैं अौर सिर्फ अपने बारे में ही सोच रहे हैं. आदिवासियत एक विचारधारा है. इस विचारधारा में मानव जाति के साथ पेड़-पौधे अौर जीव समान रूप से सहभागी हैं.
यही विचार दुनिया को बचा सकता है. अब आदिवासी समुदाय में भी लोग अपनी संस्कृति और विचारधारा को भूलते जा रहे हैं. जो युवा हैं, उन्हें अपनी संस्कृति को जानना-समझना जरूरी है. गुंजल ने कहा कि बचपन में मुझे भी अपनी संस्कृति को लेकर अच्छी समझ नहीं थी. जब मैं अपने पिताजी डॉ रामदयाल मुंडा के साथ एक महीने के लिए अमेरिका गया था, तब वहां देखा कि अमेरिकन नगाड़ा और मांदर बजा कर नृत्य कर रहे हैं. वह समय मेरे लिए परिवर्तन का समय था. धीरे-धीरे मुझे अपनी संस्कृति की समझ आने लगी.
आदिवासी युवाओं को अपने अंदर की कमी को दूर करना होगा : डॉ अभय सागर मिंज
मुझे लगता है कि वर्तमान समय में आदिवासी समाज में सामाजिक अौर राजनीतिक चेतना जरूरी है. जो चीजें हमें प्रभावित करती हैं, हम उनसे भाग नहीं सकते. हमें सबसे पहले खुद को जानने-समझने की जरूरत है.
आदिवासी युवाअों को अपने अंदर की कमी को दूर करना होगा. यह राज्य हमें कैसे मिला यह जानना होगा. अपनी संस्कृति, इतिहास बोध के साथ ही हमारे अंदर आत्मविश्वास आयेगा. आदिवासी समाज के समक्ष कई चुनौतियां है. इनके मुद्दों को मीडिया में जगह नहीं मिल पाती. इस पर प्रभात खबर की अोर से कहा गया कि अखबार किसी भी समय ऐसे मुद्दों पर बातचीत के लिए तैयार है.
आदिवासी पिछड़ा है यह गलत अवधारणा है : डॉ मीनाक्षी मुंडा
आदिवासी पिछड़ा है यह गलत अवधारणा है. आदिवासी समुदाय पिछड़ा नहीं है. इस समुदाय में वक्त के साथ बदलाव आ रहा है अौर यह बदलाव कैसा है, इस पर हमें सोचना होगा. देश-दुनिया में झारखंड की अलग पहचान है.हमारे समाज का एक वर्ग एलीट क्लास में पहुंच गया है, जो पीछे मुड़ कर देखना नहीं चाहता. आदिवासी समाज में भाषा, पहचान, अस्तित्व को लेकर संघर्ष है.
हम सभी चाहते हैं कि हमें भी सारी सुविधाएं मिलीं, पर इन सुविधाअों की कीमत विस्थापन नहीं होना चाहिए. नये झारखंड से या सरकार से हमारी उम्मीदें बहुत ज्यादा नहीं हैं. एक तरह से यह ठीक भी है, क्योंकि इससे हमारे समुदाय में आत्मनिर्भरता की भावना बढ़ेगी.

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